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This Article is From Nov 12, 2016

नोटबंदी पर पांच गांव से ग्राउंड रिपोर्ट, जानिए कैसे हैं गांव के हालात...

नोटबंदी पर पांच गांव से ग्राउंड रिपोर्ट, जानिए कैसे हैं गांव के हालात...
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर मंगलवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में 500 और 1000 रुपये के नोटों को आधी रात से अमान्य‍ घोषित कर दिया. PM के इस कदम के पीछे सबसे बड़ी वजह थी काला-धन के ऊपर लगाम लगाना. प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद देशभर में मोटे तौर पर समर्थन का माहौल बना. कई लोगों को दिक्‍कतों का भी सामना करना पड़ा. सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को झेलनी पड़ रही है जो देहाती इलाकों में रहते हैं, जहां बैंक या पोस्ट ऑफ़िस की सुविधा नहीं है या लोगों को सही जानकारी नहीं है.

ऐसे में गुरुवार के दिन NDTV इंडिया के पांच सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश और बिहार के पांच गांवों का दौरा कर लोगों की समस्याओं को जानने की कोशिश की.

बिहार के जहानाबाद  के अमीरगंज गांव से मुकेश  कुमार : बिहार के जहानाबाद ज़िले से करीब 12 किलोमीटर दूर अमीरगंज गांव है.  गांव में जायजा लेने के लिए हमारे सहयोगी मुकेश कुमार पहुंचे. मुकेश के गांव में पहुंचते ही लोगों ने अपनी समस्याएं बताना शुरू की. लोगों का कहना था उनके पास 500 और 1000 रुपया का नोट तो है लेकिन सामान नहीं मिल रहा है.दुकानदार इस नोट को लेने के लिए तैयार नहीं है. जिनके के पास खुल्ले पैसे नहीं है वह उधारी से अपना काम चला रहे हैं.  गांव के पास बैंक है और कुछ लोगों का बैंक में खाता भी है लेकिन लोगों के पास सही जानकारी नहीं है. लोग इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि कहीं उनका रुपया वापस न मिले..

इस गांव के रहने वाले रामदेव यादव ने बताया कि उनके पिता रामाशीष यादव का निधन हो गया है और दुकानदार 500 और 1000 रुपये के नोट से समान देने से इनकार कर रहे हैं! 13 नवंबर को श्राद्ध है, पर परिवार के पास 500 एवं 1000 के नोट है. ऐसे स्थिति में श्राद्धकर्म के समान की खरीदारी नहीं हो पाई है ! बैंक भी महज 4000 रुपये ही बदल कर दे रहे हैं, जबकि श्रद्धा कर्म में लगभग 50 हज़ार से ऊपर का खर्च आ रहा है. ऐसे में बेटे के साथ पूरा गांव मृतक रामाशीष यादव के श्रद्धाकर्म को लेकर चिंतित है.

इटावा के जरहोली गांव से अरशद ज़माल : हमारे सहयोगी अरशद जमाल इटावा मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर चंबल नदी के किनारे सटे गांव जरहोली पहुंचे जो खेतिहर किसान-मज़दूरों का गांव है. अरशद का कहना है इन गांव में रहने वाले किसान और मज़दूर 500 और 1000 रुपये के नोट बंद होने से परेशानी में है. बाजार में खाद, साग-सब्जी बेचने
वालों ने 500 रुपये के नोट लेने से मना कर रहे हैं. जानवर के लिए चारा मिलने में भी दिक्कत हो रही है.

जरहोली गांव के किसान जागेश्वर सिंह कहते है कि बड़े नोटों के बंद होने से मज़दूरों को काफी परेशानी हो रही है. बैंक 10 किलोमीटर दूर है. गांव से जाओ तो वहां लंबी-लंबी कतारों में खड़े हो तब तक दिनभर की मजदूरी खत्म.वहीं गांव की नीलम कहती है कि खाद लेने बाजार गए तो 500 का नोट लेने से मना कर दिया. दूध, साग-सब्जी की भी परेशानी है. जानवरों के लिए चारा तक बाजार से नहीं आ पा रहा है. बैंक और डाक खाने बहुत दूरी पर है.

थान सिंह के बेटे की कल लगुन का प्रोग्राम था लेकिन बड़े नोट होने की वजह से उनको रिश्तेदारों से उधार लेना पड़ा. पंडित जी ने भी न्योछावर के 500 रुपये का नोट लेने से मना कर दिया और 100-100 के नोट लिए. इस तरह से भारी परेशानियों से गांव के लोग झूझ रहे है.

जमुई के हरनी गांव से गौतम कुमार : हमारे सहयोगी मुकेश कुमार ने जमुई से 25 किलोमीटर दूर हरनी गांव का दौरा किया. गौतम का कहना है कि 1000 और 500 रुपए के नोट को बंद होने के बाद ग्रामीण क्षेत्र में मज़दूर एवं किसानों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. अचानक इन नोटों पर लगे बैन की वजह से ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी करने वाले लोग जो दिहाड़ी पर काम करते हैं, उनको काफी परेशानी होने लगी है. उनके घरों में खाने-पीने में दिक्कत हो रही है. इस गांव में चार-पांच छोटी-छोटी किराना दुकान हैं जहां से ग्रामीण प्रतिदिन राशन का सामान लेते हैं. इन नोटों पर बैन होने के बाद से दुकानदार अब पैसे लेने से इनकार कर रहा है.

बुलंदशहर के गंगेरिया गांव से मनीष शर्मा का रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के गंगेरिया गांव में हमारे सहयोगी मनीष शर्मा पहुंचे. यह गांव बुलंदशहर से करीब सात किलोमीटर दूर है. इस गांव के पास लगी एक साप्ताहिक बाजार का मनीष ने जायज़ा लिया. यह बाजार हफ्ते में एकबार लगती है और करीब एक दर्जन से भी ज्यादा गांव के लोग यहां आते हैं. ज्यादा से ज्यादा आम आदमी इस बाजार में आते हैं. मनीष का कहना है दुकानदारों ने उन्हें बताया कि कल बाजार में कम भीड़ थी. बाजार में रौनक नहीं थी. लोग सिर्फ 500 और 1000 का नोट लेकर आ रहे है. खुल्ले की समस्या थी.

मनीष ने एक महिला ने बात की जिसका कहना था कि उसके पास एक 500 रुपया का नोट कई दिनों से है और दुकानदार लेने के लिए तैयार नहीं है. दुकानदार यह भी शर्त रखी कि ज्यादा सामान खरीदो तभी खुल्ला हो पाएगा. फिर मजबूरन महिला को 300 रुपया का सामान खरीदना पड़ा.

कानपुर के सनिगवां गाव से अरुण अग्रवाल : अरुण अग्रवाल कानपुर से 20 किलोमीटर दूर ग्रामीण इलाके सनिगवां गांव पहुंचे. अरुण ने बताया कि 1000 और 500 के नोट बंद होने से शहरी क्षेत्रों के अपेक्षा ग्रामीण इलाके के लोगों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इस गांव और आसपास के इलाके में न तो कोई बैंक है और न ही कोई डाकखाना है.सनिगवां गांव के लोगों ने मेहनत मजदूरी करके 1000 और 500 के जो नोट जमा किए थे अब वो इस बात को लेकर घबराया हुए है कि वो अपने नोट बदलवाने कहां जाएं?

गांव के निवासी रामनाथ मिश्र ने अरुण से बात करते हुए बोला कि तकलीफ हो रही है. उनका बैंक में खाता नहीं है. दुकानदार भी इस नोट के बदले सामान देने के लिए तैयार नहीं है. गांव में न कोई बैंक है न पोस्ट ऑफ़िस. गांव के दूसरे लोग भी परेशान नज़र आए.

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