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प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने बुधवार को सरकार को चेताया कि न्यायाधीशों को जवाबदेह बनाने के लिए कानून लागू करते समय वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आघात न करे।
66वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कपाड़िया ने कहा, "न्यायिक उत्तरदायित्व को न्यायिक स्वतंत्रता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि संविधान के तहत न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच जो शक्तियों का बंटवारा किया गया है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीनों अंगों के पीठासीन व्यक्तियों को भी इसका समर्थन करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "जवाबदेह बनाए जाने से हम भयभीत नहीं हैं, लेकिन न्यायाधीशों को जवाबदेह बनाते समय न्यायिक स्वतंत्रता पर आंच नहीं आनी चाहिए।"
न्याय को लोकतंत्र के लिए ऑक्सीजन की संज्ञा देते हुए कपाड़िया ने कहा, "कृपया न्याय का गला न घोंटें।" न्यायाधीशों को फैसला लिखते समय अधिक सावधान रहने की हिदायत देते हुए कपाड़िया ने कहा कि उन्हें संविधान के शब्दों और संविधान सभा की बहसों को ध्यान में रखना चाहिए।
इससे पहले अपने संबोधन में केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने शेयर और परस्पर विरोधी दावों की चुनौतियों से निपटने में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की।
वहीं, महान्यायवादी गुलाम वाहनवती ने लोगों से अपील की कि वे खुद को कमतर न आंकें। इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण पारीख ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का लिखा संदेश पढ़कर सुनाया, जिसमें लोगों को अपनी मातृभूमि के प्रति उनके दायित्व तथा अपने अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
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