FTII में विरोध प्रदर्शन करते छात्रों की फाइल फोटो
पुणे:
एफटीआईआई में लंबे समय से जारी हड़ताल के बीच छात्रों द्वारा संस्थान के निदेशक का घेराव किए जाने के बाद अब वहां बाउंसरों को तैनात कर दिया गया है। इस फैसले को लेकर संस्थान के निदेशक प्रशांत पथराबे की खासी आलोचना भी हो रही है, हालांकि पथराबे ने इस फैसले को उचित ठहराया है।
पथराबे का कहना है कि छात्रों ने जब उन्हें उनके केबिन में बंद कर दिया, तो उसके बाद ही परिसर में 'असुरक्षित वातावरण' के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। हालांकि संस्थान के ही कार्यवाहक डीन उनकी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने इस कदम से यह कहते हुए असहमति जताई कि इसने संस्थान को सैन्य शिविर का रूप दिया।
वहीं एफटीआईआई के निदेशक ने कहा, 'मैंने अतिरिक्त सुरक्षा के लिए नहीं कहा था, लेकिन यह सही है कि मैंने सोमवार की शाम छात्रों द्वारा ऑफिस केबिन में घेराव किए जाने के दौरान 11 घंटे की अपनी अग्निपरीक्षा के दौरान काफी असुरक्षित महसूस किया। एफटीआईआई प्रशासन ने घटना के बाद अतिरिक्त सुरक्षा पर फैसला लिया।'
जबकि संस्थान के ही कार्यवाहक डीन संदीप चटर्जी ने परिसर में अतिरिक्त सुरक्षा कदम के तौर पर बाउन्सरों की तैनाती को जोरदार तरीके से अस्वीकार कर दिया और कहा कि इसने शैक्षणिक संस्थान को 'सैन्य शिविर' का रूप दिया।
चटर्जी के अलावा एफटीआईआई छात्रों, फैकल्टी मेंबर्स और पूर्व छात्रों ने इस कदम पर काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इसने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में हालात के बारे में गलत धारणा पेश की है और छात्रों को 'अपराधी या आतंकवादी' के तौर पर पेश किया है।
यहां तक कि तीन सदस्यीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दल ने भी बाउंसरों के रूप में सुरक्षा कड़ी करने पर अलग रुख अपनाया। इस दल ने सभी पक्षों के साथ टेलीविजन अभिनेता और बीजेपी सदस्य गजेंद्र चौहान को संस्थान का प्रमुख नियुक्त किए जाने के खिलाफ चल रही 72 दिवसीय हड़ताल का समाधान ढूंढने के लिए वार्ता की। प्रतिनिधिमंडल के नेता एस एम खान ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी राय है कि परिसर में सुरक्षा कड़ी करने की जरूरत नहीं है।
पथराबे ने हालांकि कहा कि घेराव के दौरान छात्रों ने उन्हें 'यातना' दी और उन्होंने जो फुटेज वितरित किया वह सचाई को दबाने लिए 'चयनात्मक लीक' था।
पथराबे का कहना है कि छात्रों ने जब उन्हें उनके केबिन में बंद कर दिया, तो उसके बाद ही परिसर में 'असुरक्षित वातावरण' के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। हालांकि संस्थान के ही कार्यवाहक डीन उनकी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने इस कदम से यह कहते हुए असहमति जताई कि इसने संस्थान को सैन्य शिविर का रूप दिया।
वहीं एफटीआईआई के निदेशक ने कहा, 'मैंने अतिरिक्त सुरक्षा के लिए नहीं कहा था, लेकिन यह सही है कि मैंने सोमवार की शाम छात्रों द्वारा ऑफिस केबिन में घेराव किए जाने के दौरान 11 घंटे की अपनी अग्निपरीक्षा के दौरान काफी असुरक्षित महसूस किया। एफटीआईआई प्रशासन ने घटना के बाद अतिरिक्त सुरक्षा पर फैसला लिया।'
जबकि संस्थान के ही कार्यवाहक डीन संदीप चटर्जी ने परिसर में अतिरिक्त सुरक्षा कदम के तौर पर बाउन्सरों की तैनाती को जोरदार तरीके से अस्वीकार कर दिया और कहा कि इसने शैक्षणिक संस्थान को 'सैन्य शिविर' का रूप दिया।
चटर्जी के अलावा एफटीआईआई छात्रों, फैकल्टी मेंबर्स और पूर्व छात्रों ने इस कदम पर काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इसने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में हालात के बारे में गलत धारणा पेश की है और छात्रों को 'अपराधी या आतंकवादी' के तौर पर पेश किया है।
यहां तक कि तीन सदस्यीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दल ने भी बाउंसरों के रूप में सुरक्षा कड़ी करने पर अलग रुख अपनाया। इस दल ने सभी पक्षों के साथ टेलीविजन अभिनेता और बीजेपी सदस्य गजेंद्र चौहान को संस्थान का प्रमुख नियुक्त किए जाने के खिलाफ चल रही 72 दिवसीय हड़ताल का समाधान ढूंढने के लिए वार्ता की। प्रतिनिधिमंडल के नेता एस एम खान ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी राय है कि परिसर में सुरक्षा कड़ी करने की जरूरत नहीं है।
पथराबे ने हालांकि कहा कि घेराव के दौरान छात्रों ने उन्हें 'यातना' दी और उन्होंने जो फुटेज वितरित किया वह सचाई को दबाने लिए 'चयनात्मक लीक' था।
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