नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के खिलाफ झारखंड में चारा घोटाले से संबंधित मुकदमे की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश के तबादले की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली। न्यायालय फैसला बाद में सुनाएगा।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि याचिका पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 9 जुलाई को इस मामले में फैसला सुनाये जाने पर अंतरिम रोक लगाते हुए झारखंड सरकार और केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जवाब तलब किए थे।
राजद की याचिका का जद (यू) नेता राजीव रंजन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने जोरदार प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि यदि मुकदमे की सुनवाई के अंत में न्यायाधीश बदला जाता है तो यह न्याय का माखौल होगा।
शांति भूषण ने कहा कि न्यायाधीश को बदलने से पूरे देश में एक गलत संदेश जाएगा। उन्होंने अब न्यायाधीश के तबादले के लिए याचिका दायर करने पर राजद नेता की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि यह न्यायाधीश 2011 से मुकदमे की सुनवाई कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पूरा देश देख रहा है और महत्वपूर्ण नेताओं से संबंधित आपराधिक मामले इस तरह से खिंचते रहेंगे तो इससे गलत संदेश जाएगा। यही नहीं न्यायाधीश के तबादले से न्यायिक व्यवस्था के प्रति जनता का विश्वास भी डगमगाएगा।
चारा घोटाले में मुकदमा चलाने वाली एजेन्सी सीबीआई ने इस तरह से राजीव रंजन के हस्तक्षेप पर आपत्ति की और कहा कि वह राजनीतिक हैं और राजनीतिक लड़ाई की न्यायालय में अनुमति दी जा सकती।
लालू प्रसाद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने भी शांति भूषण की दलील पर आपत्ति करते हुए कहा कि आपराधिक मामले में तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
न्यायाधीशों ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि वे इस पर बाद में फैसला सुनाएंगे। न्यायाधीशों ने जांच एजेन्सी और लालू प्रसाद के वकील से पूछा की यदि इस चरण में न्यायाधीश बदला जाता है तो सुनवाई पूरी होने में कितना वक्त लगेगा।
सालिसीटर जनरल मोहन पराशरन ने कहा कि जांच एजेन्सी को सारी कार्यवाही पूरी करने में 30 से 40 दिन लगेंगे जबकि जेठमलानी ने कहा कि उन्हें अपने बचाव के लिए करीब दस दिन लगेंगे।
न्यायालय लालू यादव की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में विशेष न्यायाधीश पीके सिंह के खिलाफ पक्षपात के आरोप लगाते हुये कहा गया है कि वह नीतीश कुमार सरकार के शिक्षा मंत्री पी के शाही के रिश्तेदार हैं जो उनके सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी हैं।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले झारखंड में सीबीआई की विशेष अदालत को इस मामले में 15 जुलाई को फैसला सुनाने से रोक दिया था।
यह मामला चाइबासा ट्रेजरी से 1990 के दौरान कथित रूप से छल से 37.7 करोड़ रुपये निकाले जाने से संबंधित है। इस मामले में बिहार सरकार ने फरवरी, 1996 में प्राथमिकी दर्ज की थी लेकिन बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया था।
जांच एजेन्सी ने एक साल की जांच के बाद 1997 में आरोप पत्र दाखिल किया था। इस मामले में सन 2000 में अभियोग निर्धारित हुये थे जिसके बाद विशेष अदालत ने लालू प्रसाद यादव और 44 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ सुनवाई शुरू की थी।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि याचिका पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 9 जुलाई को इस मामले में फैसला सुनाये जाने पर अंतरिम रोक लगाते हुए झारखंड सरकार और केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जवाब तलब किए थे।
राजद की याचिका का जद (यू) नेता राजीव रंजन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने जोरदार प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि यदि मुकदमे की सुनवाई के अंत में न्यायाधीश बदला जाता है तो यह न्याय का माखौल होगा।
शांति भूषण ने कहा कि न्यायाधीश को बदलने से पूरे देश में एक गलत संदेश जाएगा। उन्होंने अब न्यायाधीश के तबादले के लिए याचिका दायर करने पर राजद नेता की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि यह न्यायाधीश 2011 से मुकदमे की सुनवाई कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पूरा देश देख रहा है और महत्वपूर्ण नेताओं से संबंधित आपराधिक मामले इस तरह से खिंचते रहेंगे तो इससे गलत संदेश जाएगा। यही नहीं न्यायाधीश के तबादले से न्यायिक व्यवस्था के प्रति जनता का विश्वास भी डगमगाएगा।
चारा घोटाले में मुकदमा चलाने वाली एजेन्सी सीबीआई ने इस तरह से राजीव रंजन के हस्तक्षेप पर आपत्ति की और कहा कि वह राजनीतिक हैं और राजनीतिक लड़ाई की न्यायालय में अनुमति दी जा सकती।
लालू प्रसाद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने भी शांति भूषण की दलील पर आपत्ति करते हुए कहा कि आपराधिक मामले में तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
न्यायाधीशों ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि वे इस पर बाद में फैसला सुनाएंगे। न्यायाधीशों ने जांच एजेन्सी और लालू प्रसाद के वकील से पूछा की यदि इस चरण में न्यायाधीश बदला जाता है तो सुनवाई पूरी होने में कितना वक्त लगेगा।
सालिसीटर जनरल मोहन पराशरन ने कहा कि जांच एजेन्सी को सारी कार्यवाही पूरी करने में 30 से 40 दिन लगेंगे जबकि जेठमलानी ने कहा कि उन्हें अपने बचाव के लिए करीब दस दिन लगेंगे।
न्यायालय लालू यादव की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में विशेष न्यायाधीश पीके सिंह के खिलाफ पक्षपात के आरोप लगाते हुये कहा गया है कि वह नीतीश कुमार सरकार के शिक्षा मंत्री पी के शाही के रिश्तेदार हैं जो उनके सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी हैं।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले झारखंड में सीबीआई की विशेष अदालत को इस मामले में 15 जुलाई को फैसला सुनाने से रोक दिया था।
यह मामला चाइबासा ट्रेजरी से 1990 के दौरान कथित रूप से छल से 37.7 करोड़ रुपये निकाले जाने से संबंधित है। इस मामले में बिहार सरकार ने फरवरी, 1996 में प्राथमिकी दर्ज की थी लेकिन बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया था।
जांच एजेन्सी ने एक साल की जांच के बाद 1997 में आरोप पत्र दाखिल किया था। इस मामले में सन 2000 में अभियोग निर्धारित हुये थे जिसके बाद विशेष अदालत ने लालू प्रसाद यादव और 44 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ सुनवाई शुरू की थी।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
उच्चतम न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट, लालू प्रसाद यादव, चारा घोटाला, झारखंड, Supreme Court, Fodder Scam, Lalu Prasad Yadav