कोरोना के बहाने बिहार की अशिक्षा भी धरातल पर पूरी तरह उभरकर सामने आ गई है. देश ही नहीं, संपूर्ण विश्व में जानलेवा कोरोना महामारी तांडव मचा रहा है. उसे नियंत्रित करने के लिए पिछले दो सालों में तीन से चार महीने के लिए लॉकडाउन करना पड़ रहा है. फिर भी थोड़ी सी लापरवाही से लोग वायरस की चपेट में आ जा रहे हैं. इलाज में परेशानी के अलावा बेतहाशा खर्च हो रहा है. यदि अस्पताल जाने की नौबत आये तो वहां बेड, ऑक्सीजन, दवा और वेंटीलेटर की मारामारी और फिर वहां से जिंदा लौटने की कोई गारंटी भी नहीं. लाखों का खर्च अलग. कई मामलों में शव को कंधा देने वाले तक नहीं मिलते. लोग संस्कार में शामिल नहीं होते.
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संक्रमण पर नियंत्रण के लिए अभी पूरे देश में वैक्सीनेशन का दौर चल रहा है. बिहार सरकार ने पंचायत स्तर पर घर-घर पहुंच टीका लगाने का अभियान चलाया है. लेकिन वहां स्वास्थ्यकर्मी को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. लोग दकियानूसी कहानियों और दिग्भ्रमित करने वाली बातों का बहाना बना कोरोना वैक्सीन लेने से इंकार कर रहे हैं. वैक्सीन एक्सप्रेस गांव और टोलों तक पहुंच रही है. लोगों को कोरोना से बचने के लिए टीका लगाने की जरूरत बतायी जा रही है. लेकिन गांव वाले भ्रम की बातें बता कोरोना टीका लगाने से इनकार कर रहे हैं. कोई कहता है कि टीका लगाने से लोगों की मौत हो जाती है तो कोई इससे नपुंसक होने की बात कहता है.
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कई लोग तो कहते हैं कि इससे बीमार पड़ जायेंगे और शरीर शिथिल हो जायेगा जैसी बातें करते हैं. लेकिन किसी के पास इन कहानियों का कोई प्रमाण नहीं है. हालांकि इन्हीं लोगों के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो औरों में हौसला भरते हैं, लेकिन वैक्सीन लेने वालों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है. आंगनवाड़ी सेविका-सहायिका, आशा कार्यकर्ता और जीविका समूह की महिलाएं भी लोगों को समझाने में लगी हैं. उन्हें भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. लेकिन बेहतर उपलब्धि नहीं मिल रही है. एएनएम बताती है कि दिनभर में मुश्किल से एक वायल यानी दस लोगों को टीका दे पा रही है. डॉक्टर भी लोगों के इस अंधविश्वास से परेशान हैं.
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