एचटी कपास के बीज की बिक्री और इस्तेमाल पर भारत में रोक लगी हुई है
नई दिल्ली:
इस साल खरीफ के मौसम में गैरकानूनी हर्बीसाइड टॉलरेंट (एचटी) कपास के संकर बीजों के लगभग 35 लाख पैकेटों की बिक्री की गई है. साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (एसएबीसी) द्वारा उपलब्ध कराए गए अनुमान से यह जानकारी मिली है. इन पैकेटों को तेलंगाना और महाराष्ट्र के बाद गुजरात, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में बेचा गया है. यह रिपोर्ट पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएवंसीसी) को सौंपी गई है. गैर-कानूनी एचटी कपास संकर बीजों की बिक्री 1350 रुपये प्रति पैकेट में की गई है जबकि सरकार द्वारा मंजूर बीटी कपास संकर का दाम 800 रुपये प्रति पैकेट है. छोटे किसानों ने अकेले इस सीजन में इन बीजों पर 472 करोड़ रुपये का खर्च किए हैं.
पढ़ें: पंजाब में पिछले डेढ़ महीने में एक दर्जन कपास किसानों ने की ख़ुदकुशी
रिपोर्ट में बताया गया कि प्रति एकड़ में 1.5 से 1.7 पैकेट की औसत खपत होती है. गैर-कानूनी ढंग से बेचे गए बीजों को देश के 300 लाख एकड़ में से लगभग 22 लाख एकड़ में रोपा गया है. और यदि एक हेक्टेयर अथवा 2.471 एकड़ में रोपाई का अनुमान लगाएं तो लगभग 9 लाख किसानों ने इन गैर-कानूनी कपास के संकर बीजों को रोपा है. कम से कम दो सरकारी शोध संस्थानों नागपुर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च और हैदराबाद में तेलंगाना सरकार की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड ट्रांसजेनिक क्रॉप्स मॉनीटरिंग लैबोरेटरी की जांच रिपोर्टों ने अस्वीकृत एचटी संकर लगाने की आधिकारिक पुष्टि की है.
रोचक बात यह है कि किसान इन बीजों को इतने उच्च दामों पर खरीद रहे हैं क्योंकि तकनीक के लिए उनकी भूख अनुमान से कहीं ज्यादा है. सामान्य कपास में जब पौधा मिट्टी से बाहर आता है, किसान इन पर हर्बीसाइड नहीं डाल सकते क्योंकि केमिकल खरपतवार और फसल के बीच अंतर नहीं कर सकता है. लेकिन एचटी टेक्नोलॉजी का उपयोग करने पर सिर्फ खरपतवार ही मरते हैं और फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता.
VIDEO: किसानों के संकट की परवाह किसे?
एसएबीसी के आंकड़ों में पता चला है कि अस्वीकृत एचटी हाइब्रिड की लोकप्रियता किसानों में बहुत ज्यादा है. वर्ष 2015-16 में गैर-कानूनी एचटी कपास के लगभग 8 लाख पैकेटों को खरीदा एवं रोपा गया था, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 13 लाख पैकेट था. यह वृद्धि दर्शाती है कि यदि किसानों को पहुंच दी जाए तो वे महंगे दामों में भी नई तकनीक को अपनाने के लिए बिल्कुल तैयार हैं.
एचटी कॉटन हाइब्रिड्स की गैर-कानूनी बिक्री को संगठित एवं अनिबंधित सीड्स ऑपरेटर्स व कुछ निबंधित बीज कंपनियों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है. इन्हें 'बिगबॉल', 'वीडगार्ड', 'वीड्सगार्डस', 'बॉलगार्ड', 'आरकॉट', 'क्रिल' जैसे ब्रांडों की लेबलिंग एवं विवरण के साथ बेचा जाता है. इस गतिविधि ने सिर्फ किसानों को ही धोखा नहीं दिया है बल्कि कानूनी रूप से स्वीकृत कपास उत्पादों के कॉपीराइट्स सहित बौद्धिक संपदा अधिकारों का भी उल्लंघन किया है.
(इनपुट आईएएनएस से)
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रिपोर्ट में बताया गया कि प्रति एकड़ में 1.5 से 1.7 पैकेट की औसत खपत होती है. गैर-कानूनी ढंग से बेचे गए बीजों को देश के 300 लाख एकड़ में से लगभग 22 लाख एकड़ में रोपा गया है. और यदि एक हेक्टेयर अथवा 2.471 एकड़ में रोपाई का अनुमान लगाएं तो लगभग 9 लाख किसानों ने इन गैर-कानूनी कपास के संकर बीजों को रोपा है. कम से कम दो सरकारी शोध संस्थानों नागपुर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च और हैदराबाद में तेलंगाना सरकार की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड ट्रांसजेनिक क्रॉप्स मॉनीटरिंग लैबोरेटरी की जांच रिपोर्टों ने अस्वीकृत एचटी संकर लगाने की आधिकारिक पुष्टि की है.
रोचक बात यह है कि किसान इन बीजों को इतने उच्च दामों पर खरीद रहे हैं क्योंकि तकनीक के लिए उनकी भूख अनुमान से कहीं ज्यादा है. सामान्य कपास में जब पौधा मिट्टी से बाहर आता है, किसान इन पर हर्बीसाइड नहीं डाल सकते क्योंकि केमिकल खरपतवार और फसल के बीच अंतर नहीं कर सकता है. लेकिन एचटी टेक्नोलॉजी का उपयोग करने पर सिर्फ खरपतवार ही मरते हैं और फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता.
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एसएबीसी के आंकड़ों में पता चला है कि अस्वीकृत एचटी हाइब्रिड की लोकप्रियता किसानों में बहुत ज्यादा है. वर्ष 2015-16 में गैर-कानूनी एचटी कपास के लगभग 8 लाख पैकेटों को खरीदा एवं रोपा गया था, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 13 लाख पैकेट था. यह वृद्धि दर्शाती है कि यदि किसानों को पहुंच दी जाए तो वे महंगे दामों में भी नई तकनीक को अपनाने के लिए बिल्कुल तैयार हैं.
एचटी कॉटन हाइब्रिड्स की गैर-कानूनी बिक्री को संगठित एवं अनिबंधित सीड्स ऑपरेटर्स व कुछ निबंधित बीज कंपनियों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है. इन्हें 'बिगबॉल', 'वीडगार्ड', 'वीड्सगार्डस', 'बॉलगार्ड', 'आरकॉट', 'क्रिल' जैसे ब्रांडों की लेबलिंग एवं विवरण के साथ बेचा जाता है. इस गतिविधि ने सिर्फ किसानों को ही धोखा नहीं दिया है बल्कि कानूनी रूप से स्वीकृत कपास उत्पादों के कॉपीराइट्स सहित बौद्धिक संपदा अधिकारों का भी उल्लंघन किया है.
(इनपुट आईएएनएस से)