नई दिल्ली:
जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) परिसर में पुलिस को निर्बाध प्रवेश देने के मामले में आलोचना झेल रहे वाइस चांसलर (वीसी) एम. जगदीश कुमार ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इसका खंडन किया।
वैसे, एनडीटीवी के पास एक पत्र है जो इन आरोपों की पुष्टि करता है। यह पत्र यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार की ओर से डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (साउथ डिस्ट्रिक्ट) को लिखा गया था। पत्र में कहा गया है, 'वीसी ने जरूरत पड़ने पर पुलिस को जेएनयू परिसर में प्रवेश की इजाजत दी। 11 फरवरी को लिखे इस पत्र में इसके अलावा अन्य कोई शर्त नहीं लगाई गई है।' इसके अगले दिन यानी 12 फरवरी को पुलिस का एक बड़ा दल अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की तीसरी बरसी के मौके पर 9 फरवरी को लगाए गए भारत विरोधी नारों की जांच के लिए जेएनयू परिसर में दाखिल हुआ। गौरतलब है कि आतंकी अफजल गुरु को 2013 में फांसी दी गई थी।
जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने दावा किया है कि वे इस बात के चश्मदीद हैं कि पुलिस ने बिना किसी वारंट के हॉस्टल में प्रवेश किया और कथित तौर पर उन स्टूडेंट्स को ले गई जो इस विवादास्पद घटना में शामिल हुए थे।पुलिस ने जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया।
यूनिवर्सिटी की उच्च स्तर पर फैसला लेने वाली इकाई, कमेटी ऑफ डीन्स ने इसके बाद वीसी को एक पत्र लिखकर कहा कि वह परिसर में पुलिस की इस तरह मौजूदगी का समर्थन नहीं करती। NDTV के पास मौजूद पत्र में एक सदस्य सीपी चंद्रशेखर कहते हैं कि इस कदम से यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता को खतरा पैदा हो गया है।
उधर, वीसी ने NDTV को दिए एक इंटरव्यू में इस बात को दोहराया कि उन्होंने पुलिस को जेएनयू परिसर में सशर्त प्रवेश की अनुमति दी थी और वह भी केवल एक दिन के लिए। हालांकि वरिष्ठ सहयोगियों के पुरजोर विरोध के बाद वाइस चांसलर को अपने कदम को आंशिक रूप से वापस लेना पड़ा। जैसे ही पुलिस दल ने परिसर में प्रवेश कर स्टूडेंट्स पर कार्यवाही शुरू की, जेएनयू प्रशासन ने पुलिस को लिखा कि 'वहां पुलिस प्रशासन की ओर से अनुचित हस्तक्षेप की आशंका है। और उन्हें उम्मीद है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए आवश्यक सावधानी बरतेगी।'
वैसे, एनडीटीवी के पास एक पत्र है जो इन आरोपों की पुष्टि करता है। यह पत्र यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार की ओर से डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (साउथ डिस्ट्रिक्ट) को लिखा गया था। पत्र में कहा गया है, 'वीसी ने जरूरत पड़ने पर पुलिस को जेएनयू परिसर में प्रवेश की इजाजत दी। 11 फरवरी को लिखे इस पत्र में इसके अलावा अन्य कोई शर्त नहीं लगाई गई है।' इसके अगले दिन यानी 12 फरवरी को पुलिस का एक बड़ा दल अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की तीसरी बरसी के मौके पर 9 फरवरी को लगाए गए भारत विरोधी नारों की जांच के लिए जेएनयू परिसर में दाखिल हुआ। गौरतलब है कि आतंकी अफजल गुरु को 2013 में फांसी दी गई थी।
जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने दावा किया है कि वे इस बात के चश्मदीद हैं कि पुलिस ने बिना किसी वारंट के हॉस्टल में प्रवेश किया और कथित तौर पर उन स्टूडेंट्स को ले गई जो इस विवादास्पद घटना में शामिल हुए थे।पुलिस ने जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया।
यूनिवर्सिटी की उच्च स्तर पर फैसला लेने वाली इकाई, कमेटी ऑफ डीन्स ने इसके बाद वीसी को एक पत्र लिखकर कहा कि वह परिसर में पुलिस की इस तरह मौजूदगी का समर्थन नहीं करती। NDTV के पास मौजूद पत्र में एक सदस्य सीपी चंद्रशेखर कहते हैं कि इस कदम से यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता को खतरा पैदा हो गया है।
उधर, वीसी ने NDTV को दिए एक इंटरव्यू में इस बात को दोहराया कि उन्होंने पुलिस को जेएनयू परिसर में सशर्त प्रवेश की अनुमति दी थी और वह भी केवल एक दिन के लिए। हालांकि वरिष्ठ सहयोगियों के पुरजोर विरोध के बाद वाइस चांसलर को अपने कदम को आंशिक रूप से वापस लेना पड़ा। जैसे ही पुलिस दल ने परिसर में प्रवेश कर स्टूडेंट्स पर कार्यवाही शुरू की, जेएनयू प्रशासन ने पुलिस को लिखा कि 'वहां पुलिस प्रशासन की ओर से अनुचित हस्तक्षेप की आशंका है। और उन्हें उम्मीद है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए आवश्यक सावधानी बरतेगी।'
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