विजय माल्या पिछले साल अप्रैल में देश से बाहर चले गए थे
नई दिल्ली:
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने विजय माल्या से जुड़े लोन डिफॉल्ट मामले में आईडीबीआई बैंक और किंगफिशर एयरलाइंस के आठ पूर्व अफसरों को गिरफ्तार कर लिया, जिसमें आईडीबीआई बैंक के पूर्व सीएमडी योगेश अग्रवाल भी शामिल हैं. सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट दायर कर दी है. भगोड़ा घोषित हो चुके शराब कारोबारी माल्या के खिलाफ भी चार्जशीट फाइल की गई है. आखिर किंगफिशर को 1000 करोड़ रुपये का लोन मंजूर करने में आईडीबीआई बैंक के पूर्व प्रमुख की क्या भूमिका थी और कैसे नियमों का उल्लंघन किया गया?
सीबीआई सूत्रों का दावा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों की अनदेखी की गई और किंगफिशर की खस्ता माली हालत और कमजोर क्रेडिट रेटिंग के बावजूद माल्या को तीन हिस्सों में लोन मंजूर किया गया.
सीबीआई के सूत्रों अनुसार, किंगफिशर ने 1 अक्टूबर, 2009 को 750 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट लोन के लिए आईडीबीआई को आवेदन दिया. इस आवदेन के लंबित रहने के दौरान ही माल्या ने 150 करोड़ रुपये के शॉर्ट टर्म (कम अवधि) लोन की मांग को लेकर 6 अक्टूबर को तत्कालीन आईडीबीआई प्रमुख योगेश अग्रवाल से मुलाकात की. अगले ही दिन किंगफिशर ने आधिकारिक रूप से इस लोन के लिए आवदेन दिया और तत्काल यह मंजूर हो गया.
4, नवंबर को एक बार फिर किंगफिशर ने एक अन्य शॉर्ट टर्म लोन के लिए आईडीबीआई को आवेदन दिया, जो कि फिर उसी दिन मंजूर हो गया. किंगफिशर के चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर (सीएफओ) रघुनाथन ने माल्या और अग्रवाल की मीटिंग का जिक्र करते हुए आईडीबाई को खत लिखा, जिससे यह लोन उसी दिन पास हो गया.
किंगफिशर के कॉरपोरेट लोन के आवेदन पर आईडीबीआई की क्रेडिट कमिटी उसी महीने बैठक करने वाली थी. इसके लिए किंगफिशर को अपने शेयरों को गिरवी रखना था, जो लोन के लिए एक अनिवार्य शर्त थी. लेकिन सीबीआई ने बताया कि 10 नवंबर को माल्या ने किंगफिशर सीएफओ रघुनाथन को मेल करके कहा कि शेयरों को गिरवी रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने खुद आईडीबीआई के सीएमडी से चर्चा कर ली है. महीने की 24 तारीख को आईडीबीआई क्रेडिट कमिटी की इस बाबत बैठक हुई और योगेश अग्रवाल ने कथित रूप से माल्या की शर्तों को स्वीकार करते हुए ब्योरे को मंजूरी दे दी.
सीबीआई सूत्रों का यह भी दावा है कि लोन के एक हिस्से के रूप में प्राप्त 263 करोड़ रुपये को देश से बाहर भेज दिया गया और इसका इस्तेमाल किंगफिशर के पुराने कर्ज को चुकाने के लिए किया गया. लगातार कोशिशों के बावजूद आईडीबीआई के गिरफ्तार पूर्व कर्मचारियों के वकीलों ने इन आरोपों पर टिप्पणी करने के NDTV के आग्रह पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
विभिन्न बैंकों के 9000 करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट मामले में कई जांच शुरू होने के बाद विजय माल्या पिछले साल अप्रैल में देश से बाहर चले गए थे. अपने खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद माल्या पूछताछ के लिए न तो सीबीआई के सामने और न ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने पेश हुए.
फिलहाल ब्रिटेन में रह रहे माल्या ने ट्वीट कर कहा है, 'अब तक, इस मिनट तक अदालत में चली सुनवाई के बाद इस बारे में कि किंगफिशर एयरलाइंस पर बैंकों का कितना कर्ज है और मुझ पर व्यक्तिगत तौर पर कितना कर्ज है इस बारे में अंतिम तौर पर कुछ भी तय नहीं हुआ है.' माल्या ने लगातार जारी ट्वीट में हाल के घटनाक्रमों को लेकर मीडिया कवरेज पर भी चिंता जताई और कहा कि जब तक उन्हें किसी अदालत से दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक वह बेगुनाह हैं.'
सीबीआई सूत्रों का दावा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों की अनदेखी की गई और किंगफिशर की खस्ता माली हालत और कमजोर क्रेडिट रेटिंग के बावजूद माल्या को तीन हिस्सों में लोन मंजूर किया गया.
सीबीआई के सूत्रों अनुसार, किंगफिशर ने 1 अक्टूबर, 2009 को 750 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट लोन के लिए आईडीबीआई को आवेदन दिया. इस आवदेन के लंबित रहने के दौरान ही माल्या ने 150 करोड़ रुपये के शॉर्ट टर्म (कम अवधि) लोन की मांग को लेकर 6 अक्टूबर को तत्कालीन आईडीबीआई प्रमुख योगेश अग्रवाल से मुलाकात की. अगले ही दिन किंगफिशर ने आधिकारिक रूप से इस लोन के लिए आवदेन दिया और तत्काल यह मंजूर हो गया.
4, नवंबर को एक बार फिर किंगफिशर ने एक अन्य शॉर्ट टर्म लोन के लिए आईडीबीआई को आवेदन दिया, जो कि फिर उसी दिन मंजूर हो गया. किंगफिशर के चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर (सीएफओ) रघुनाथन ने माल्या और अग्रवाल की मीटिंग का जिक्र करते हुए आईडीबाई को खत लिखा, जिससे यह लोन उसी दिन पास हो गया.
किंगफिशर के कॉरपोरेट लोन के आवेदन पर आईडीबीआई की क्रेडिट कमिटी उसी महीने बैठक करने वाली थी. इसके लिए किंगफिशर को अपने शेयरों को गिरवी रखना था, जो लोन के लिए एक अनिवार्य शर्त थी. लेकिन सीबीआई ने बताया कि 10 नवंबर को माल्या ने किंगफिशर सीएफओ रघुनाथन को मेल करके कहा कि शेयरों को गिरवी रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने खुद आईडीबीआई के सीएमडी से चर्चा कर ली है. महीने की 24 तारीख को आईडीबीआई क्रेडिट कमिटी की इस बाबत बैठक हुई और योगेश अग्रवाल ने कथित रूप से माल्या की शर्तों को स्वीकार करते हुए ब्योरे को मंजूरी दे दी.
सीबीआई सूत्रों का यह भी दावा है कि लोन के एक हिस्से के रूप में प्राप्त 263 करोड़ रुपये को देश से बाहर भेज दिया गया और इसका इस्तेमाल किंगफिशर के पुराने कर्ज को चुकाने के लिए किया गया. लगातार कोशिशों के बावजूद आईडीबीआई के गिरफ्तार पूर्व कर्मचारियों के वकीलों ने इन आरोपों पर टिप्पणी करने के NDTV के आग्रह पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
विभिन्न बैंकों के 9000 करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट मामले में कई जांच शुरू होने के बाद विजय माल्या पिछले साल अप्रैल में देश से बाहर चले गए थे. अपने खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद माल्या पूछताछ के लिए न तो सीबीआई के सामने और न ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने पेश हुए.
फिलहाल ब्रिटेन में रह रहे माल्या ने ट्वीट कर कहा है, 'अब तक, इस मिनट तक अदालत में चली सुनवाई के बाद इस बारे में कि किंगफिशर एयरलाइंस पर बैंकों का कितना कर्ज है और मुझ पर व्यक्तिगत तौर पर कितना कर्ज है इस बारे में अंतिम तौर पर कुछ भी तय नहीं हुआ है.' माल्या ने लगातार जारी ट्वीट में हाल के घटनाक्रमों को लेकर मीडिया कवरेज पर भी चिंता जताई और कहा कि जब तक उन्हें किसी अदालत से दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक वह बेगुनाह हैं.'
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