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This Article is From Feb 29, 2020

NPR से लेकर विशेष राज्य का दर्जा की मांग करके क्या नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति साख दांव पर लगा दी?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को विशेष राज्य का दर्जा चाहिए.

NPR से लेकर विशेष राज्य का दर्जा की मांग करके क्या नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति साख दांव पर लगा दी?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार- (फाइल फोटो)
पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को विशेष राज्य का दर्जा चाहिए. यह मांग शुक्रवार को विधिवत रूप से उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के सामने इस आधार पर रखी है कि दोहरे अंक का विकास दर लगातार बरकरार रखने के बावजूद कई मापदंड जैसे ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वाले, प्रति व्यक्ति आय, औद्योगीकरण, सामाजिक और भौतिक आधारभूत सरंचना पर यह राष्ट्रीय औसत से काफ़ी नीचे है. नीतीश ने यह मांग कर साफ किया कि भले केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा बिहार के वोटरों से वादा करने के बाद भी पूरा नहीं किया गया लेकिन वो अपनी मांग पर कायम हैं. नीतीश के इस बयान से न तो उनके सहयोगी भाजपा के नेता खुश हैं और न विपक्षी राजद के नेता खुश हैं, क्योंकि दोनों के लिए यह मुद्दा गले की फांस हैं. बिहार के भाजपा नेता जानते हैं कि नीतीश की बात तथ्यों और तर्कों पर सही है लेकिन उनमें क्षमता नहीं है कि यह मांग मनवा सके.

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वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का कहना है कि एक और मुद्दा जिस पर नीतीश को घेर रहे थे उस पर नीतीश ने अन्य मुख्यमंत्रियों के सामने अपनी मांग रखकर उस मुद्दे का कॉपीराइट अपने ही पास रखा है. लेकिन इससे पूर्व भी तीन अलग-अलग मुद्दे पिछले दिनों ऐसे रहे जहां, उन्होंने नीतीश ने रुख को साफ किया है. एनआरसी और एनपीआर पर के खिलाफ विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कराके भाजपा और राजद की बैचेनी बढ़ाई हुई है.

इस मुद्दे पर भले भाजपा के नेता यह कहे कि जब एनआरसी नहीं हो रहा तो एनपीआर भी बहुत प्रासंगिक नहीं रहा, लेकिन उनकी दिक्कत यह है कि सर्वसम्मति के प्रस्ताव पर उनकी सहमति होने के कारण अब एनपीआर पर दूसरे दलों पर वो बहुत ज़्यादा आक्रामक नहीं हो सकते. केंद्र ने नीतीश कुमार के बातों को माना तो उसका श्रेय भी जनता दल यूनाइटेड लेगा और नहीं मानने पर मीडिया इस बात को तूल देगी कि कैसे मोदी-शाह नीतीश की मांगों को और बिहार विधानसभा के प्रस्ताव का अपमान किया. वहीं राजद के वरिष्ठ विधायक मानते हैं कि ये प्रस्ताव नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक इसलिए है कि उनके पास जनता के पास सरकार को घेरने का एक मुद्दा इस प्रस्ताव के बाद हाथ से निकल गया. हालांकि तेजस्वी अपने जनसभा और सोशल मीडिया में इस बात का भरपूर श्रेय लेते हैं कि उनके दबाव के कारण ऐसा हुआ जो आंशिक रूप से सच भी है.

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इसके बाद जातीय जनगणना का विषय हैं. जो बिहार के प्रमुख दलों की मांग में वर्षों से शामिल रहा हैं. नीतीश ने इस विषय पर भी एक बार फिर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करवाया जो तेजस्वी यादव की मांग थी. लेकिन भाजपा को लगता है कि केंद्र सरकार अगर इस बात को मानेगी तो फिर जनता में तेजस्वी और नीतीश में श्रेय लेने की होड़ होगी और यह मांग नहीं मानी गयी तो फिर नीतीश-भाजपा के संबंध में तनाव, दरार जैसी खबर प्रमुखता से छपेगी. लेकिन तेजस्वी के समर्थकों का मानना है कि नीतीश ने जिस तेजी से मांगों पर केंद्र सरकार के पास विधानसभा से प्रस्ताव इस मुद्दे पर भेजा, उससे उनके पास मीडिया और जनता के सामने बात करने के लिए कुछ खास नहीं बचता. 

भाजपा के लिए दिक्कत है कि बिहार में उनके एक सहयोगी रामविलास पासवान ने वो चाहे दिल्ली के दंगे हो या दिल्ली विधानसभा चुनाव में एनडीए की करारी हार के कारण हो, सार्वजनिक रूप से भाजपा के नेताओं को ज़िम्मेदार माना और कार्रवाई की मांग की. लेकिन नीतीश ने अभी तक अपना कुछ नहीं कहा है.हालांकि वो भी सभी चीजों को समझते हैं, लेकिन नीतीश फिलहाल मौन हैं जो भाजपा के नेताओं को और परेशान कर रही है.

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जहां नीतीश फिलहाल आक्रामक दिखते हैं और राजनीतिक लाभ उन्हें ज्यादा दिख रहा हैं लेकिन अगर केंद्र ने उनकी मांगो को नहीं माना तो नीतीश को भी मालूम हैं कि मीडिया और विपक्ष उनके अपमान को भी प्रमुखता से उठा सकता हैं. ऐसे में नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति साख दांव पर लगा दी है.

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