नई दिल्ली:
देश के दो पूर्वोत्तर राज्यों असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाला देश के सबसे लंबा पुल बनकर तैयार है. सादिया और ढोला को जोड़ने वाले इस पुल को ढोला-सादिया ब्रह्मपुत्र पुल का नाम दिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (शुक्रवार) सुबह साढ़े दस बजे उसका उद्घाटन करेंगे. संयोग से इसी दिन नरेंद्र मोदी की सरकार अपने तीन साल पूरे कर रही है. इस पुल की अहमियत न सिर्फ यहां के लोगों के विकास से जुड़ी है, बल्कि सामरिक तौर पर भी ये अहम भागीदारी निभाएगा. इस पुल से सुदूर उत्तर-पूर्व के लोगों के लिए आने जाने की सुविधा हो जाएगी, कारोबार को बढ़ावा भी मिलेगा.. साथ ही इसके चालू होने से सेना को असम के पोस्ट से अरुणाचल-चीन बॉर्डर पर पहुंचने में आसानी होगी.
एक नज़र इस शानदार पुल की खासियतों पर...
बेशक इस पुल का नाम ब्रह्मपुत्र पुल है, लेकिन ये उसकी एक अहम सहायक नदी लोहित पर बना है, जो पूरब से पश्चिम बहती हुई आकर ब्रह्मपुत्र में मिलती है... लिहाजा आप कह सकते हैं कि ये पुल उत्तर-पूर्व के भी उत्तर-पूर्वी हिस्से को मुख्यधारा से जोड़ने का काम करेगा. ये पूरा इलाका चीन सीमा की वजह से सामरिक तौर पर बेहद अहम माना जाता है. इन इलाकों में अभीतक आने जाने के लिए आमतौर पर नावों का ही सहारा रहा है.. ऐसे में गूगल अर्थ की तस्वीरों में किसी लकीर की तरह दिखने वाला यह पुल इस पूरे इलाके के लिए लाइफ लाइन साबित होने वाला है.
एक नज़र इस शानदार पुल की खासियतों पर...
- ढोला-सादिया ब्रह्मपुत्र पुल की लंबाई 9.15 किमी है.
- इस लिहाज से ये बांद्रा-वर्ली सी-लिंक से भी 30% लंबा है.
- ये पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किमी और अरुणाचल की राजधानी ईटानगर से 300 किमी दूर है.
- जबकि चीन की सीमा का एरियल डिस्टेंस या हवाई दूरी 100 किमी से भी कम की है.
- तेजपुर के करीब कलाईभोमोरा पुल के बाद ब्रह्मपुत्र पर अगले 375 किमी याली ढोला तक बीच में कोई दूसरा पुल नहीं है.
- अभीतक इस इलाके में नदी के आरपार सारे कारोबार नावों के जरिए ही होते रहे हैं.
- इसे बनाने का काम 2011 में शुरू हुआ और इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत 950 करोड़ की है.
- ये पुल 182 खंभों पर टिका है.
- यह ब्रिज पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम-अरुणाचल को जोड़ेगा.
- जनता के आने जाने और कारोबार के अलावा इससे सेना की आवाजाही में भी बेहद सुविधा होगी.
- इससे चीन सीमा तक के सफर में 4 घंटे की कटौती होगी.
- पुल इतना मजबूत बनाया गया है कि 60 टन के मेन बैटल टैंक भी गुजर सकें.
- इतना ही नहीं ये भूकंप के झटके भी आसानी से झेल सकता है.
बेशक इस पुल का नाम ब्रह्मपुत्र पुल है, लेकिन ये उसकी एक अहम सहायक नदी लोहित पर बना है, जो पूरब से पश्चिम बहती हुई आकर ब्रह्मपुत्र में मिलती है... लिहाजा आप कह सकते हैं कि ये पुल उत्तर-पूर्व के भी उत्तर-पूर्वी हिस्से को मुख्यधारा से जोड़ने का काम करेगा. ये पूरा इलाका चीन सीमा की वजह से सामरिक तौर पर बेहद अहम माना जाता है. इन इलाकों में अभीतक आने जाने के लिए आमतौर पर नावों का ही सहारा रहा है.. ऐसे में गूगल अर्थ की तस्वीरों में किसी लकीर की तरह दिखने वाला यह पुल इस पूरे इलाके के लिए लाइफ लाइन साबित होने वाला है.
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