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This Article is From Nov 18, 2014

डेंगू ने बदली जिंदगी की दिशा, चौ. कुलदीप ने सफाई को बनाया जीवन लक्ष्य

डेंगू ने बदली जिंदगी की दिशा, चौ. कुलदीप ने सफाई को बनाया जीवन लक्ष्य
चौधरी कुलदीप की तस्वीर
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से स्वच्छता अभियान को अपना महत्वपूर्ण मिशन बनाया है, तब से बीजेपी नेताओं समेत कई सेलीब्रेटी झाड़ू उठाकर फोटो खिंचवाने निकल पड़े हैं।

हम देख रहे हैं, फोटो तो खिंच रही है लेकिन, मूल काम सफाई और जागरुकता नहीं फैल रही है। हम रिपोर्टर कई लोगों से मिलते हैं, भले वो चैनल की खबरें न बन सकें। पर उनका काम हमें प्रभावित कर जाता है।

ऐसे ही एक नाम है चौ. कुलदीप। बाहरी दिल्ली के एक गांव जगतपुर के बाशिंदे हैं। पता चला कि जगतपुर गांव में डेंगू और मलेरिया के बहुत सारे मामले हैं। जब इस गांव पहुंचा तो एक शख्श अपने 10 से 12 लोगों के साथ नालियों में दवा छिड़क रहा था.. नालियों की सफाई कर रहा था और लोगों को डेंगू से बचने की सलाह दे रहा था...

मैंने समझा कि शायद कोई नेता या निगम कर्मचारी होगा। मेरी न तो कभी उनसे मुलाकात हुई थी न ही बातचीत। उन्हें पता ही नहीं था कि राष्ट्रीय मीडिया का कोई शख्श इस गांव आया है।

मैंने पूछा, क्या आप नेता हैं, उन्होंने कहा, नहीं। मुझे नेतागीरी में कोई दिलचस्पी नहीं है। तो आप जरूर मोदी के स्वच्छता अभियान के समर्थक होंगे। उन्होंने कहा, मेरा पूरा परिवार कांग्रेसी है।

तब तक उनके साथ आए दो तीन लोगों को पीली टीशर्ट पहने देखा जिस पर कुलदीप समाजसेवक लिखा था। जिंदगी टर्निंग प्वाइंट...

पांच साल पहले कुलदीप को डेंगू हुआ था, प्लेटलेट्स 6000 हज़ार से नीचे आ गई थी। हफ्ते भर आईसीयू में रहकर किसी तरह उन्हें दोबारा जिंदगी मिली। तब से कुलदीप बताते हैं कि उन्हें भरोसा हो गया कि ये उनका दूसरा जन्म है। डेंगू से ठीक होते ही पहले शिक्षा विभाग की सरकारी नौकरी छोड़ी।

फिर कुछ दोस्त और 15 लोगों को नौकरी पर रखा और गांव की गंदगी साफ करने के काम में जुट गए। सुबह उठना स्कूटर से गांव के चक्कर लगाना जहां गंदगी हो वहां अपने लोगों को भेजकर सफाई करवाना।

ये उनकी दिनचर्या में शामिल है। डेंगू और मलेरिया के बढ़ते मामलों को देखकर उन्होंने निगम से दवा छिड़कने की गुहार लगाई, लेकिन निगम जब सुस्त पड़ा रहा तो खुद ही दवा छिड़काव की मशीन और दवा लाकर इलाके में छिड़कने लगे।

जगतपुर गांव में वो अपने चार भाइयों के साथ एक ही घर में रहते हैं। कुलदीप की मां मजाक में उन्हें जमादार कहकर पुकारती है।
घर से संपन्न हैं इसलिए अपनी सफाई टीम को करीब सवा लाख रुपये महीने में तनख्वाह बांटते है। वह सफाई को लेकर इतने भावुक कि कई बार जब गंदगी की शिकायत को लेकर उनके पास किसी का फोन आता है। तो वो स्कॉर्पियों में खुद अपने सफाई कर्मचारियों के साथ मौके पर जाते हैं।

अब लोग भले उन पर हंसे, लेकिन उन्हें गली-मोहल्लों के सफाई का जुनून सवार है। बीजेपी के नवरत्नों में अच्छे चेहरे और राजनीतिक फायदे के लिए मुफीद साबित होने वालों के बजाए इस तरह के कुछ लोग शामिल होते तो शायद बदलाव की बयार और तेज होती।

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