दिल्ली उच्च न्यायालय ने तीन माह के लिए 24 अगस्त तक विभिन्न क्षेत्रों के न्यूनतम एवं अधिकतम हवाई किराया निर्धारित करने के केंद्र सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह नीतिगत निर्णय है जो कोविड-19 संकट के दौरान की गई एक “अस्थायी व्यवस्था” है. मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि तीन महीने की अवधि के लिए नागर विमानन मंत्रालय का 21 मई का आदेश साफ तौर पर कहता है कि आवश्यक यात्राओं तक विमान यात्रा सीमित करने के लिए न्यूनतम किराया निर्धारित किया गया है. पीठ ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा, “यह ध्यान में रखा जाना चाहिए, कि वर्तमान परिस्थितियों में जब एयरलाइन परिचालनों पर विभिन्न प्रतिबंध लागू हैं और हवाई किराए की अधिकतम सीमा सरकार ने तय की है, साथ ही न्यूनतम किराया भी निर्धारित किया गया है ताकि यात्रियों के साथ-साथ एयरलाइन एजेंसियों में संतुलन बिठाया जा सके.”
पीठ ने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी की मौजूदा स्थिति में, सरकार की इस शक्ति के उपयोग को “मनमाना या अतार्किक नहीं कहा जा सकता है.” इसने कहा कि यह भी ध्यान में रखना होगा कि वैश्विक महामारी के दौरान विचित्र तरह की समस्याओं का सामना किया जा रहा है और इनके लिए प्रायोगिक समाधानों की जरूरत है.
पीठ ने कहा, “इस तरह की समस्या का कोई गणितीय समाधान नहीं हो सकता. सरकार को इस वक्त कुछ हद तक छूट देनी होगी. इसलिए हम इस मामले के गुण-दोष को नहीं देख रहे हैं.” पीठ ने मंत्रालय के 21 मई के आदेश को चुनौती देने वाली वीर विक्रांत चौहान की याचिका का निस्तारण करते हुये ये टिप्पणियां कीं.
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