नई दिल्ली:
दिल्ली के उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अब नया विवाद सेक्रेटरी सर्विसेज़ पर सामने आया है। रविवार दोपहर बाद अरविंद केजरीवाल ने सेक्रेटरी सर्विसेज़ के ऑनिंदो मजूमदार को शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव का आदेश निकालने के चलते हटा दिया था और उनका कामकाज प्रधान सचिव राजेंदर कुमार को दे दिया था। लेकिन लगभग एक घंटे बाद ही उप राज्यपाल ने सेक्रेटरी सर्विसेज़ के बाबत उनसे सलाह न लेने की बात कहकर उन्हें भी पद पर बने रहने के निर्देश दिए।
इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल नजीब जंग को तीन पन्नों की चिट्ठी लिखकर उनपर असंवैधानिक तरीके से कार्यवाहक मुख्य सचिव की नियुक्ति करने का आरोप लगाया था। जबकि उप-राज्यपाल का कहना है कि नियमों के मुताबिक मुख्य सचिव के पद को 35 घंटे से ज़्यादा खाली नहीं रखा जा सकता। इसी के चलते जब दिल्ली सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया, तो उन्होंने कार्यवाहक मुख्य सचिव के पद पर वरिष्ठता के हिसाब से शकुंतला गैमलिन की नियुक्ति कर दी।
इस पूरे मामले में दिल्ली के उप राज्यपाल के दफ्तर ने सफ़ाई जारी की है। इसमें कहा गया है कि उप राज्यपाल ने ऐसी कोई काम नहीं किया है, जो गलत हो। आज तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है जो संविधान के खिलाफ हो। इस मामले में भी मुख्यमंत्री से कागज़ों पर सलाह ली गई और इससे जुड़ा नोटशीट देखी जा सकती है। मुख्यमंत्री की तरफ से तकरीबन 40 घंटे की देरी की वजह से उप राज्यपाल के कहने पर आदेश जारी किया गया, क्योंकि मुख्य सचिव का पद खाली नहीं रखा जा सकता है। मुख्य सचिव की ज़रूरत सिर्फ रोज़मर्रा के कामकाज के लिए ही नहीं, बल्कि ऐसे काम के लिए भी है जो अचानक आ जाए। यह पता चला है कि प्रमुख सचिव (सेवा) को उनके पद से हटा दिया गया है। इसके लिए उप राज्यपाल की इजाज़त नहीं ली गई है। राज्यपाल ने इस आदेश को पलट दिया है।
इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल नजीब जंग को तीन पन्नों की चिट्ठी लिखकर उनपर असंवैधानिक तरीके से कार्यवाहक मुख्य सचिव की नियुक्ति करने का आरोप लगाया था। जबकि उप-राज्यपाल का कहना है कि नियमों के मुताबिक मुख्य सचिव के पद को 35 घंटे से ज़्यादा खाली नहीं रखा जा सकता। इसी के चलते जब दिल्ली सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया, तो उन्होंने कार्यवाहक मुख्य सचिव के पद पर वरिष्ठता के हिसाब से शकुंतला गैमलिन की नियुक्ति कर दी।
इस पूरे मामले में दिल्ली के उप राज्यपाल के दफ्तर ने सफ़ाई जारी की है। इसमें कहा गया है कि उप राज्यपाल ने ऐसी कोई काम नहीं किया है, जो गलत हो। आज तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है जो संविधान के खिलाफ हो। इस मामले में भी मुख्यमंत्री से कागज़ों पर सलाह ली गई और इससे जुड़ा नोटशीट देखी जा सकती है। मुख्यमंत्री की तरफ से तकरीबन 40 घंटे की देरी की वजह से उप राज्यपाल के कहने पर आदेश जारी किया गया, क्योंकि मुख्य सचिव का पद खाली नहीं रखा जा सकता है। मुख्य सचिव की ज़रूरत सिर्फ रोज़मर्रा के कामकाज के लिए ही नहीं, बल्कि ऐसे काम के लिए भी है जो अचानक आ जाए। यह पता चला है कि प्रमुख सचिव (सेवा) को उनके पद से हटा दिया गया है। इसके लिए उप राज्यपाल की इजाज़त नहीं ली गई है। राज्यपाल ने इस आदेश को पलट दिया है।
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