सेना के जवानों के शिकायत के वीडियो सामने आने पर रक्षा मंत्रालय हरकत में आ गया है.
नई दिल्ली:
सेना में सेवादारी सिस्टम या कहें अधिकारियों को मिलने वाले सहायक सिस्टम पॉलिसी की समीक्षा होगी. सोशल मीडिया पर जवानों के शिकायती वीडियो के आने के बाद रक्षा मंत्रालय हरकत में आ गया है. मंत्रालय ने साफ तौर पर सेना से कहा है कि वह सहायक सिस्टम की समीक्षा करे.
इस समीक्षा में देखा जाएगा कि क्या सेना के अधिकारी के साथ सहायक के तौर पर काम कर रहे जवान, फील्ड के साथ-साथ उसके घर पर तो तैनात नहीं हैं. यह भी पता किया जाएगा कि यह सहायक, फील्ड के साथ-साथ पीस स्टेशन में अधिकारी के घर और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ भी तो काम में नहीं लगे हुए हैं. यह सब पता करने का आदेश रक्षा मंत्रालय ने सेना को दिया है. मंत्रालय ने सेना से कहा है कि फील्ड स्टेशनों में सैन्य अधिकारियों की मदद के लिए सहायक की नियुक्ति की बात तो समझ आती है, लेकिन पीस-एरिया (जहां शांति है और युद्ध के हालात नहीं हैं) में यह तर्कसंगत नहीं है.
अब यह भी पता लगाया जाएगा कि अधिकारी के साथ सहायक का काम कर रहे जवान से कोई ऐसा काम तो नहीं कराया जा रहा जो उसकी ड्यूटी ऑफ चार्टर में नहीं है. खुद थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत कह चुके हैं कि यह सहायक सिस्टम जिसे सेना की जुबान में बड्डी सिस्टम भी कहा जाता है, बेहद अच्छा है, और उसमें अधिकारी के जूते और बेल्ट तक चमकाने का काम शामिल है. कई बार ऐसा देखा गया है कि अधिकारी अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के काम भी इन सहायकों से कराते हैं. मंत्रालय के मुताबिक सहायकों से सैन्य अधिकारियों के परिवार वालों से जुड़े कामकाज और घर का कामकाज नहीं कराया जाना चाहिए. हालांकि सेना में पहले से ही हर महीने सहायक सिस्टम का ऑडिट होता है, लेकिन इसका कड़ाई से पालन नहीं होता है. लेकिन रक्षा मंत्रालय के आदेश के बाद इसका पालन कड़ाई से किया जाएगा.
फिलहाल थल सेना सहायक प्रथा को खत्म करने के मूड में नहीं है, जबकि वायुसेना और नौसेना में इसे खत्म कर दिया गया है. और तो और न तो पाकिस्तान की सेना और न ही अमेरिका की सेना में यह प्रथा है. थल सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने जिस तरह से इस प्रथा की हिमायत की उससे कई सवाल खड़े होते हैं. खासकर इस बात से कोई इनकार नहीं किया जा सकता कि कई जगहों पर सहायक के बिना काम नहीं चल सकता है, लेकिन यह भी सच है कि इसका दुरुपयोग भी बहुत हो रहा है जिस वजह से जवानों का असंतोष सोशल मीडिया के जरिए समाने आ रहा है. खुद सेना प्रमुख ने कहा कि थल सेना में करीब 36 हजार अधिकारी हैं. सेना में कैप्टन, मेजर रैंक के अधिकारियों और कमांडिंग अधिकारी को एक ही सहायक मिलता है. ऊपर की रैंक के अधिकारियों को दो सहायक मिलते हैं. सेना प्रमुख ने यह जरूर कहा कि भविष्य में जवानों को सेवादार न बनाया जाए इसके विकल्प तलाशे जा रहे हैं. ऐसे कार्यों के लिए अलग से सहायक नियुक्त किए जा सकते हैं.
जानकार बताते हैं कि अधिकारी को सहायक देने की प्रथा आजादी से पहले 1942 के आसपास शुरू हुई थी. अमूमन सहायक का कार्य अधिकारी को जरूरी कार्य में मदद करना और सुरक्षा मुहैया कराना होता था. लेकिन बाद में इनसे कई ऐसे काम कराए जाने लगे जो काम नौकर से कराए जाते हैं. मसलन जूते पॉलिश करने से लेकर कपड़े धोने तक का काम. सेना में जिस जवान यज्ञ प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी शिकायत की थी उसकी पत्नी की मानें तो उसे बरेली के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है और किसी भी तरह उसे पागल घोषित कर सेना से निकालने की तैयारी है. यज्ञ प्रताप की पत्नी ऋचा की हालत अब काफी खराब हो गई है क्योंकि वह अपने पति के प्रति सेना के अधिकारियों के खराब व्यवहार को लेकर भूख हड़ताल पर है. हालत बिगड़ने पर परिवार वालों ने उसे रीवा के अस्पताल में भर्ती कराया है.
इस समीक्षा में देखा जाएगा कि क्या सेना के अधिकारी के साथ सहायक के तौर पर काम कर रहे जवान, फील्ड के साथ-साथ उसके घर पर तो तैनात नहीं हैं. यह भी पता किया जाएगा कि यह सहायक, फील्ड के साथ-साथ पीस स्टेशन में अधिकारी के घर और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ भी तो काम में नहीं लगे हुए हैं. यह सब पता करने का आदेश रक्षा मंत्रालय ने सेना को दिया है. मंत्रालय ने सेना से कहा है कि फील्ड स्टेशनों में सैन्य अधिकारियों की मदद के लिए सहायक की नियुक्ति की बात तो समझ आती है, लेकिन पीस-एरिया (जहां शांति है और युद्ध के हालात नहीं हैं) में यह तर्कसंगत नहीं है.
अब यह भी पता लगाया जाएगा कि अधिकारी के साथ सहायक का काम कर रहे जवान से कोई ऐसा काम तो नहीं कराया जा रहा जो उसकी ड्यूटी ऑफ चार्टर में नहीं है. खुद थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत कह चुके हैं कि यह सहायक सिस्टम जिसे सेना की जुबान में बड्डी सिस्टम भी कहा जाता है, बेहद अच्छा है, और उसमें अधिकारी के जूते और बेल्ट तक चमकाने का काम शामिल है. कई बार ऐसा देखा गया है कि अधिकारी अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के काम भी इन सहायकों से कराते हैं. मंत्रालय के मुताबिक सहायकों से सैन्य अधिकारियों के परिवार वालों से जुड़े कामकाज और घर का कामकाज नहीं कराया जाना चाहिए. हालांकि सेना में पहले से ही हर महीने सहायक सिस्टम का ऑडिट होता है, लेकिन इसका कड़ाई से पालन नहीं होता है. लेकिन रक्षा मंत्रालय के आदेश के बाद इसका पालन कड़ाई से किया जाएगा.
फिलहाल थल सेना सहायक प्रथा को खत्म करने के मूड में नहीं है, जबकि वायुसेना और नौसेना में इसे खत्म कर दिया गया है. और तो और न तो पाकिस्तान की सेना और न ही अमेरिका की सेना में यह प्रथा है. थल सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने जिस तरह से इस प्रथा की हिमायत की उससे कई सवाल खड़े होते हैं. खासकर इस बात से कोई इनकार नहीं किया जा सकता कि कई जगहों पर सहायक के बिना काम नहीं चल सकता है, लेकिन यह भी सच है कि इसका दुरुपयोग भी बहुत हो रहा है जिस वजह से जवानों का असंतोष सोशल मीडिया के जरिए समाने आ रहा है. खुद सेना प्रमुख ने कहा कि थल सेना में करीब 36 हजार अधिकारी हैं. सेना में कैप्टन, मेजर रैंक के अधिकारियों और कमांडिंग अधिकारी को एक ही सहायक मिलता है. ऊपर की रैंक के अधिकारियों को दो सहायक मिलते हैं. सेना प्रमुख ने यह जरूर कहा कि भविष्य में जवानों को सेवादार न बनाया जाए इसके विकल्प तलाशे जा रहे हैं. ऐसे कार्यों के लिए अलग से सहायक नियुक्त किए जा सकते हैं.
जानकार बताते हैं कि अधिकारी को सहायक देने की प्रथा आजादी से पहले 1942 के आसपास शुरू हुई थी. अमूमन सहायक का कार्य अधिकारी को जरूरी कार्य में मदद करना और सुरक्षा मुहैया कराना होता था. लेकिन बाद में इनसे कई ऐसे काम कराए जाने लगे जो काम नौकर से कराए जाते हैं. मसलन जूते पॉलिश करने से लेकर कपड़े धोने तक का काम. सेना में जिस जवान यज्ञ प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी शिकायत की थी उसकी पत्नी की मानें तो उसे बरेली के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है और किसी भी तरह उसे पागल घोषित कर सेना से निकालने की तैयारी है. यज्ञ प्रताप की पत्नी ऋचा की हालत अब काफी खराब हो गई है क्योंकि वह अपने पति के प्रति सेना के अधिकारियों के खराब व्यवहार को लेकर भूख हड़ताल पर है. हालत बिगड़ने पर परिवार वालों ने उसे रीवा के अस्पताल में भर्ती कराया है.
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