प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने आज दावा किया कि 126 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद का मूल करार कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए शासनकाल में अंतिम चरण तक पहुंचने के बाद भी पूरा नहीं हो सका था, क्योंकि तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी को लगा था कि प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ है और फिर उन्होंने मामले की समीक्षा के निर्देश दिए थे. सूत्रों ने एंटनी के दखल का जिक्र करते हुए कहा कि 126 मध्यम बहुद्देशीय लड़ाकू विमानों (एमएमआरसीए) की खरीद के लिए यूपीए शासनकाल के दौरान कोई करार नहीं हुआ था. राफेल करार के मुद्दे पर कांग्रेस मोदी सरकार पर लगातार हमले कर रही है. पार्टी का दावा है कि उसके शासनकाल में जिस करार पर बात हुई थी वह मोदी सरकार द्वारा फ्रांस से 58,000 करोड़ रुपए की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए किए गए करार की तुलना में काफी किफायती था.
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सूत्रों ने बताया कि हो सकता है एंटनी की आशंकाएं वाजिब रही हों और दखल देने के पीछे उनके ठोस तर्क हों. तत्कालीन रक्षा मंत्री से मंजूरी मिलने के बाद कीमत के बाबत बातचीत करने वाली समिति उस वक्त करार का परीक्षण कर रही थी. उन्होंने यह भी कहा कि राफेल को ‘एल 1’ वेंडर घोषित किए जाने के बाद ‘यूरोफाइटर टाइफून’ ने अपनी कीमतों में 25 फीसदी कमी लाने की पेशकश की थी. एक सूत्र ने कहा, ‘‘तय प्रक्रिया के मुताबिक, विजेता बोली लगाने वाले की घोषणा कर देने के बाद ऐसा प्रस्ताव कतई स्वीकार्य नहीं था. आप ऐसा नहीं कर सकते.’’ राफेल करार में ‘‘घोटाले’’ का आरोप लगाते हुए कांग्रेस मोदी सरकार से पूछ रही है कि क्या राफेल की प्रति विमान कीमत (12 दिसंबर 2012 को खुली अंतरराष्ट्रीय बोलियों के मुताबिक) 526.1 करोड़ रुपए है या मोदी सरकार की ओर से किए गए करार में (मौजूदा लेन-देन दरों के मुताबिक) प्रति विमान कीमत 1,570.8 करोड़ रुपए है.
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यूपीए सरकार ने वायुसेना के लिए 126 एमएमआरसीए विमानों की खरीद के लिए 2007 में निविदाएं आमंत्रित की थीं और बातचीत के बाद राफेल और यूरोफाइटर टाइफून विमान मुहैया कराने की रेस में थी. बहरहाल, यूपीए शासनकाल में करार को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था.
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सूत्रों ने बताया कि हो सकता है एंटनी की आशंकाएं वाजिब रही हों और दखल देने के पीछे उनके ठोस तर्क हों. तत्कालीन रक्षा मंत्री से मंजूरी मिलने के बाद कीमत के बाबत बातचीत करने वाली समिति उस वक्त करार का परीक्षण कर रही थी. उन्होंने यह भी कहा कि राफेल को ‘एल 1’ वेंडर घोषित किए जाने के बाद ‘यूरोफाइटर टाइफून’ ने अपनी कीमतों में 25 फीसदी कमी लाने की पेशकश की थी. एक सूत्र ने कहा, ‘‘तय प्रक्रिया के मुताबिक, विजेता बोली लगाने वाले की घोषणा कर देने के बाद ऐसा प्रस्ताव कतई स्वीकार्य नहीं था. आप ऐसा नहीं कर सकते.’’ राफेल करार में ‘‘घोटाले’’ का आरोप लगाते हुए कांग्रेस मोदी सरकार से पूछ रही है कि क्या राफेल की प्रति विमान कीमत (12 दिसंबर 2012 को खुली अंतरराष्ट्रीय बोलियों के मुताबिक) 526.1 करोड़ रुपए है या मोदी सरकार की ओर से किए गए करार में (मौजूदा लेन-देन दरों के मुताबिक) प्रति विमान कीमत 1,570.8 करोड़ रुपए है.
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यूपीए सरकार ने वायुसेना के लिए 126 एमएमआरसीए विमानों की खरीद के लिए 2007 में निविदाएं आमंत्रित की थीं और बातचीत के बाद राफेल और यूरोफाइटर टाइफून विमान मुहैया कराने की रेस में थी. बहरहाल, यूपीए शासनकाल में करार को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था.
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