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This Article is From Jan 10, 2013

सीमा पर शहीद सुधाकर ने कहा था, मौत से कभी डरना नहीं

नई दिल्ली: सीमा पर शहीद हुए लांसनायक सुधाकर सिंह का उनके पैतृक गांव सीधी में अंतिम संस्कार किया गया। इससे पहले शहीद लांसनायक हेमराज का मथुरा में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था।

पाकिस्तान के हमले में शहीद हुए 30 साल के सुधाकर सिंह 11 साल से फौज में थे। बेटे की मौत से टूटे पिता (सच्चिदानंद सिंह) को याद आया कि बेटा कहा करता था, मौत कभी भी आ सकती है, इससे डरना नहीं है।

शहीद जवान सुधाकर के पिता किसान हैं। गांव में गुजारे की मुश्किलों ने सुधाकर को प्रेरित किया कि वह फौज में जाए। शहीद लांसनायक सुधाकर सिंह ने अपने घर जो आखिरी चिट्ठी लिखी थी, इसमें उन्हें घर की याद आ रही थी, वे जल्दी आने वाले थे, लेकिन ड्यूटी ने रोक लिया। अब वह कभी नहीं आएंगे। उनका चार महीने का बेटा जब बड़ा होगा तो अपने उस पिता की बहादुरी के किस्से सुनेगा, जिसे वह ठीक से पहचान भी नहीं पाया।

इससे पहले बुधवार को लांसनायक हेमराज सिंह का मथुरा जिले के शेरगढ़ में अंतिम संस्कार किया गया। बेटे का शव देखकर मां बिलख उठी। बहादुर बेटे पर नाज तो था, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बर करतूत देख दिल बिलख उठी। शेरनगर में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्से की लहर उठी है। लोग जवाब मांग रहे हैं कि भारत सरकार पाकिस्तान के खिलाफ क्या कार्यवाही कर रही है।

वैसे, बहादुरी और शहादत इस गांव के लिए नई चीज नहीं है। गांव के 15 लोग फौज में हैं। शहीद हेमराज के चाचा लेखराज सिंह ने बताया कि हेमराज भी गांव के दूसरे लोगों की तरह 10 साल की उम्र में ही फौज में भर्ती होने की बात किया करते थे। वह 11 साल से फौज में थे। 2004 में उनकी शादी धर्मावती देवी से हुई। उनके तीन बच्चे हैं। एक बेटा और दो बेटियां। बड़ी बेटी निर्मला सात साल की है जबकि छोटी शिवानी बस तीन साल की। बीच में पांच साल का बेटा प्रिंस है। परिवार में दो भाई हैं, जो खेती करते हैं। दो साल पहले उनके किसान पिता पीतांबर सिंह की मौत हो चुकी है।

हेमराज 32 साल के थे। उनके शव के साथ दुश्मनों ने बुरा सलूक किया, लेकिन उस जज्बे का वह बाल भी बांका न कर सके, जिसने हेमराज सिंह को शहीद बनाया।

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