उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि पीड़ित और आरोपी के बीच समझौता हो जाने के बावजूद बलात्कार और हत्या जैसे संगीन आरोपों में आपराधिक कार्यवाही निरस्त नहीं की जा सकती है। न्यायालय के अनुसार समाज पर इसका गलत प्रभाव पड़ेगा।
न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति एन वी रमण की खंडपीठ ने कहा कि दूसरे अपराध, जो सार्वजनिक शांति व्यवस्था से संबंधित नहीं हों और दो व्यक्तियों या समूह तक ही सीमित हों, पक्षों में समझौता होने के बाद निरस्त किये जा सकते हैं।
न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च न्यायालय कार्यवाही निरस्त करने के लिये अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है जो प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। बलात्कार और हत्या आदि जैसे गंभीर अपराधों से संबंधित मामलों की कार्यवाही निरस्त नहीं की जा सकती क्योंकि इसका समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि गंभीर अपराध के मामलों में यह नहीं कहा जा सकता कि वे दो व्यक्तियों या समूह तक सीमित थे और ऐसे अपराधों को निरस्त करने से समाज में गलत संदेश जायेगा।
न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामले, जिनमें पक्षों में समझौता हो जाता है, अभियोजन पंगु अभियोजन बन जाता है और पंगु अभियोजन को आगे बढ़ाना समय और उर्जा की बर्बादी है।
शीर्ष अदालत ने विभिन्न दोषियों द्वारा दायर याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इन याचिकाओं में उनके खिलाफ लंबित कार्यवाही निरस्त करने का अनुरोध करते हुये कहा गया था कि पीड़ितों के साथ उनका सौहार्दपूर्ण तरीके से समझौता हो गया है।
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