प्रकाश करात की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलितों को अधिकार दिलाने के नाम पर सीपीएम सबसे बुलंद आवाज़ उठाती है लेकिन पार्टी के बनने के 50 साल बाद भी इसकी पोलित ब्यूरो जैसी महत्वपूर्ण इकाई में मुसलमान और महिलाएं कभी कभार और इक्का दुक्का ही दिखती है। पार्टी के इतिहास में आज तक कोई दलित पोलित ब्यूरो का सदस्य नहीं बना।
वृंदा करात सीपीएम की महत्वपूर्ण पोलित ब्यूरो में अकेली महिला सदस्य हैं। ये सदस्यता भी उन्हें 2005 में दी गई। एक जमाने में वृंदा करात खुद अपनी पार्टी के भीतर महिलाओं की अनदेखी के खिलाफ आवाज़ उठा चुकी हैं लेकिन आज भी उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि सीपीएम में महिलाओं की नुमाइंदगी निर्णायक क्यों नहीं है।
विशाखापट्टनम में पार्टी के महासम्मेलन के दौरान पूछे गये सवालों के जवाब में वृंदा करात ने कहा, 'हमारी पार्टियों की सभी इकाइयों में महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन मैं ये नहीं कहूंगी कि ये प्रगति संतोषजनक है।'
गौरतलब है कि सीपीएम ने संसद में महिला आरक्षण बिल के समर्थन में आवाज़ उठाई लेकिन पार्टी चुनावों में महिलाओं को टिकट देने में दूसरी पार्टियों से बहुत अलग नहीं दिखी है। बात सिर्फ महिलाओं की नहीं है पार्टी में निर्णायक जगहों में दलितों की नुमाइंदगी को लेकर भी सवाल हैं। सीपीएम के 51 साल के इतिहास में एक भी दलित पोलित ब्यूरो में नहीं है और पोलित ब्यूरो में तकरीबन सभी सदस्य ऊंची जाति के हैं। सिर्फ एमए बेबी ईसाई समुदाय से हैं पर कोई दलित नहीं।
सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि आप लोगों को हमारी पार्टी के सम्मेलन के खत्म होने का इंतज़ार करना चाहिये। लेकिन विशाखापट्टनम में जमा हुए जानकार कहते हैं कि सीपीएम ने अपनी पार्टी में महत्वपूर्ण पदों के लिये दलित नेताओं को तैयार ही नहीं किया तो कैसे दलित नेता पोलित ब्यूरो में आएंगे। मलयालम मनोरमा अखबार के पत्रकार जोमी थॉमस का कहना है, 'पार्टी में ऊंची जाति के लोगों का शुरू से दबदबा रहा है और वही नेता महत्वपूर्ण पदों पर बने रहते हैं।'
पार्टी की संगठनात्मक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पार्टी के नेता दबे कुचले लोगों के मुद्दों में दिलचस्पी नहीं लेते जिससे जनाधार घट रहा है। संकट ये ही है कि पार्टी की पोलित ब्यूरो में अभी कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है। हालांकि एक बार मज़दूर नेता मोहम्मद अमीन ज़रूर पोलित ब्यूरो सदस्य बने। माना जा रहा है कि इस बार पश्चिम बंगाल से सांसद मोहम्मद सलीम को जगह मिल सकती है लेकिन क्या ये काफी होगा।
वृंदा करात सीपीएम की महत्वपूर्ण पोलित ब्यूरो में अकेली महिला सदस्य हैं। ये सदस्यता भी उन्हें 2005 में दी गई। एक जमाने में वृंदा करात खुद अपनी पार्टी के भीतर महिलाओं की अनदेखी के खिलाफ आवाज़ उठा चुकी हैं लेकिन आज भी उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि सीपीएम में महिलाओं की नुमाइंदगी निर्णायक क्यों नहीं है।
विशाखापट्टनम में पार्टी के महासम्मेलन के दौरान पूछे गये सवालों के जवाब में वृंदा करात ने कहा, 'हमारी पार्टियों की सभी इकाइयों में महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन मैं ये नहीं कहूंगी कि ये प्रगति संतोषजनक है।'
गौरतलब है कि सीपीएम ने संसद में महिला आरक्षण बिल के समर्थन में आवाज़ उठाई लेकिन पार्टी चुनावों में महिलाओं को टिकट देने में दूसरी पार्टियों से बहुत अलग नहीं दिखी है। बात सिर्फ महिलाओं की नहीं है पार्टी में निर्णायक जगहों में दलितों की नुमाइंदगी को लेकर भी सवाल हैं। सीपीएम के 51 साल के इतिहास में एक भी दलित पोलित ब्यूरो में नहीं है और पोलित ब्यूरो में तकरीबन सभी सदस्य ऊंची जाति के हैं। सिर्फ एमए बेबी ईसाई समुदाय से हैं पर कोई दलित नहीं।
सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि आप लोगों को हमारी पार्टी के सम्मेलन के खत्म होने का इंतज़ार करना चाहिये। लेकिन विशाखापट्टनम में जमा हुए जानकार कहते हैं कि सीपीएम ने अपनी पार्टी में महत्वपूर्ण पदों के लिये दलित नेताओं को तैयार ही नहीं किया तो कैसे दलित नेता पोलित ब्यूरो में आएंगे। मलयालम मनोरमा अखबार के पत्रकार जोमी थॉमस का कहना है, 'पार्टी में ऊंची जाति के लोगों का शुरू से दबदबा रहा है और वही नेता महत्वपूर्ण पदों पर बने रहते हैं।'
पार्टी की संगठनात्मक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पार्टी के नेता दबे कुचले लोगों के मुद्दों में दिलचस्पी नहीं लेते जिससे जनाधार घट रहा है। संकट ये ही है कि पार्टी की पोलित ब्यूरो में अभी कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है। हालांकि एक बार मज़दूर नेता मोहम्मद अमीन ज़रूर पोलित ब्यूरो सदस्य बने। माना जा रहा है कि इस बार पश्चिम बंगाल से सांसद मोहम्मद सलीम को जगह मिल सकती है लेकिन क्या ये काफी होगा।
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