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This Article is From Jan 02, 2019

सोहराबुद्दीन मामले में अदालत ने कहा, सीबीआई हत्याओं की मंशा बताने में नाकाम रही 

कोर्ट ने कहा सीबीआई, अधिकारियों और स्थानीय नेताओं के बीच किसी सांठगांठ को साबित करने में असफल रही.

सोहराबुद्दीन मामले में अदालत ने कहा, सीबीआई हत्याओं की मंशा बताने में नाकाम रही 
प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:

सोहराबुद्दीन शेख ( sohrabuddin case) और उसके सहयोगी तुलसी राम प्रजापति के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में सभी 22 आरोपियों को हाल में बरी करने वाली विशेष सीबीआई (CBI) अदालत ने अपने विस्तृत फैसले में कहा कि जांच एजेंसी हत्याओं की मंशा बताने में नाकाम रही. विशेष सीबीआई (CBI) न्यायाधीश एस जे शर्मा का 358 पृष्ठ का फैसला सोमवार को उपलब्ध कराया गया. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को तार्किक संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा. सीबीआई (CBI) , अधिकारियों और स्थानीय नेताओं के बीच किसी सांठगांठ को साबित करने में असफल रही. इन स्थानीय नेताओं में से कुछ इस मामले में आरोपी भी थे. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई हत्याओं की मंशा बताने में भी नाकाम रही और इसलिए इसकी कोई संभावना नहीं कि वरिष्ठ अधिकारी किसी साजिश का हिस्सा रहे हों. 

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अदालत ने 2010 में सीबीआई के मुख्य जांच अधिकारी रहे और सोहराबुद्दीन तथा कौसर बी की हत्याओं की जांच करने वाले अमिताभ ठाकुर की गवाही का भी हवाला दिया. न्यायाधीश ने कहा कि एक तरफ ठाकुर ने आरोप पत्र में आरोप लगाया कि कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जैसे नेताओं को हत्याओं से ‘‘राजनीतिक एवं मौद्रिक'' लाभ हुआ, लेकिन अदालत में उनसे पूछताछ में उन्होंने कहा कि उनके पास यह साबित करने के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि सुनवाई का सामना कर रहे आरोपियों को इस तरह का लाभ हुआ.

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बता दें कि सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने फैसले में किसी तरह की साजिश से इनकार करते हुए सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया था. विशेष अदालत ने कहा था कि है कि जो भी साक्ष्य और सबूत पेश किए गए, उसमें किसी तरह की साजिश नहीं दिखती. इस मामले में शुरुआत में कुल 38 आरोपी थे, लेकिन मुकदमा शुरू होने से पहले ही आरोपी नेता और IPS अधिकारी आरोप मुक्त हो गए. बचे 22 आरोपियों में 21 जूनियर पुलिसकर्मी और एक बाहरी व्यक्ति हैं. हालांकि, अब इस मामले में सभी को कोर्ट ने बरी कर दिया है. इस मामले में आरोपियों की लिस्ट में अमित शाह का नाम भी शामिल था, जिसकी वजह से फैसले के सियासी मायने भी निकाले जा रहे थे. हालांकि, उन्हें 2014 में आरोप मुक्त कर दिया गया था. शाह इन घटनाओं के वक्त गुजरात के गृह मंत्री हुआ करते थे.(इनपुट भाषा से)     

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