कांग्रेस ने असम और पूर्वोत्तर के कई अन्य राज्यों को विशेष अधिकार देने वाले कानूनी प्रावधानों के पक्ष में मजबूत जनमत तैयार करने और भाजपा को घेरने के मकसद से जनसंपर्क अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है. इस जनसपंर्क के माध्यम से वह पूर्वोत्तर की जनता को इस बारे में आगाह करेगी कि केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा जम्मू-कश्मीर से 370 के मुख्य प्रवाधान हटाने जैसा कोई कदम पूर्वोत्तर के 'संवैधानिक रक्षा कवच' अनुच्छेद 371 के संदर्भ में भी उठा सकती है.
मुख्य विपक्षी पार्टी का कहना है कि अमित शाह के बयान के बाद पूर्वोत्तर के लोगों में इसको लेकर चिंता और डर पैदा हो गया है कि आखिर गृह मंत्री को यह सफाई क्यों देनी पड़ रही है? गत शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में यहां पूर्वोत्तर को लेकर हुई उच्च स्तरीय बैठक में यह तय हुआ कि अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार के कदम की पृष्ठभूमि में पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेदों के विषय पर सीधे जनता से संपर्क किया जाए और इस पर जनमत तैयार किया जाए.
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बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल, पूर्वोत्तर के राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता मौजूद थे.
इस बैठक में शामिल रहे असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया, 'भाजपा ने जो (जम्मू-कश्मीर में) विशेष दर्जा खत्म किया उसका क्या असर हुआ है? उसे मुद्दा बनाकर जनता के पास ले जाना तय हुआ है.' उन्होंने कहा, '370 और 371 में ज्यादा फर्क नहीं है. जम्मू-कश्मीर के लोगों को 370 के तहत विशेष अधिकार मिले हुए थे . उसी तरह असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों को 371ए, 371बी, 371सी तथा कुछ अन्य अनुच्छेदों के तहत विशेष सुरक्षा मिली हुई है. यह पूर्वोत्तर के लिए संवैधानिक रक्षा कवच है. किसी भी हालत में इसे हटाया नहीं जाना चाहिए.'
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बोरा ने कहा, 'अमित शाह को बयान देने की जरूरत क्यों पड़ी? 370 हटाने की मांग जरूर कुछ लोग कर रहे थे लेकिन देश के किसी कोने से एक भी आदमी ने 371 को हटाने की मांग नहीं की. शाह के ताजा बयान से पूर्वोत्तर के लोगों को चिंता हो गयी है. लोगों में अब यह डर पैदा हो गया है कि कहीं 371 को न हटा दिया जाए.' उन्होंने कहा, 'हम जनता के बीच इस मुद्दे को ले जाने , उन्हें इस पर जागरूक करने का काम शुरू कर रहे हैं. असम में जनसंपर्क तत्काल शुरू हो रहा है और दूसरे राज्यो में भी जल्द शुरू होगा.' दरअसल, पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर के राज्यों की चिंताओं को दूर करते हुए कहा था कि क्षेत्र से जुड़े विशेष कानून को नहीं छुआ जाएगा.
गौरतलब है कि अनुच्छेद 371, 371 ए, 371 बी, 371 सी, 371 डी, 371 ई, 371एफ, 371 जी, 371 एच, 371 आई और 371जे के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों और देश के कुछ अन्य प्रदेशों को कुछ विशेष अधिकार मिले हुए हैं. मसलन, अनुच्छेद 371 बी असम के लिए है जिसके तहत भारत के राष्ट्रपति राज्य विधानसभा की समितियों के गठन और कार्यों के लिए राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों को शामिल कर सकते हैं.
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इसी तरह, अनुच्छेद 371 ए नगालैंड के लिए है. इसके मुताबिक संसद, नगालैंड की विधानसभा की मंजूरी के बिना नगा लोगों से जुड़ी हुई सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक नियमों, कानूनों और नगा परंपराओं द्वारा किए जाने वाले न्याय और नगा लोगों की जमीन के मामलों में कानून नहीं बना सकती है.
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