
मध्य प्रदेश में अपनों की खींचतान से जूझ रही है कांग्रेस ( फाइल फोटो )
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चुनाव से पहले कांग्रेस में खींचतान
कांग्रेस सिंधिया को बना सकती है सीएम पद का चेहरा
प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश की छुट्टी
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2013 जैसे हालात आज भी : 2013 के विधानसभा चुनाव की करें, तो समझ में आता है कि चुनाव से पहले राज्य के क्षत्रपों दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किस तरह पार्टी की जीत की बजाय अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में दिलचस्पी दिखाई थी. यही कारण था कि कांग्रेस चुनाव में वैसे नतीजे नहीं पा सकी जैसी उम्मीद राज्य के लोग कर रहे थे. आगामी विधानसभा चुनाव में लगभग एक साल का वक्त है, यह बात सही है कि राज्य में सरकार की नीतियों के खिलाफ एक बड़े वर्ग में रोष है. ऐसे में कांग्रेस नेताओं को लगने लगा है कि सत्ता उनके हाथ आ सकती है. बस इसी उम्मीद के चलते नेताओं ने अपने मनमाफिक समीकरण बनाना शुरू कर दिए हैं. सबसे पहले उन्होंने मिलकर प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश की छुट्टी करा दी.
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मोहन प्रकाश को हटाना क्या बडी गलती : प्रदेश के प्रभारी रहे मोहन प्रकाश बड़े नेताओं को ज्यादा महत्व देने की बजाय निचले स्तर यानी जिला व ब्लॉक स्तर पर जाकर काम कर रहे थे। प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के साथ उनका बेहतर तालमेल था, उन्होंने लगभग पूरे प्रदेश का दौरा किया, प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, क्योंकि उनकी नजर में जमीनी स्तर पर तैयारी ज्यादा जरूरी थी. यह बात नेताओं को रास कम आ रही थी, लिहाजा सभी ने लामबंद होकर मोहन प्रकाश को प्रदेश प्रभारी पद से हटवा दिया. यह पहली बड़ी चूक मानी जा रही है, क्योंकि कांग्रेस की सियासत में वे पहले ऐसे प्रदेश प्रभारी रहे, जिन्होंने सीधे कार्यकर्ताओं से संवाद किया और बीते लगभग छह सालों में राज्य की राजनीति को करीब से समझा. इतना ही नहीं, उनका किसी गुट से नाता नहीं था.
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रणनीति पर भारी चहेते : कांग्रेस सूत्रों की मानें तो बड़े नेताओं को लग रहा था कि मोहन प्रकाश प्रभारी रहे तो उनके चहेतों को आसानी से विधानसभा का टिकट नहीं मिल पाएगा, क्योंकि पिछले चुनाव में मोहन प्रकाश ने उन उम्मीदवारों की पैरवी की थी, जो भाजपा को टक्कर देने में सक्षम थे. इसके चलते प्रकाश की कई नेताओं से अनबन भी हुई थी. लिहाजा, इस बार ऐसा न हो, इसी के चलते चुनाव से पहले ही मोहन प्रकाश की छुट्टी करा दी.
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कौन होगा विधानसभा चुनाव में चेहरा : प्रदेश में 65 प्रतिशत युवा मतदाता हैं, उसे ध्यान में रखकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी चेहरे के तौर पर पेश कर सकती है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को अगर किसी को चेहरे के तौर पर पेश करना है तो जल्दी ऐलान कर देना चाहिए, देर हुई तो पार्टी के लिए चेहरा घोषित करना मुसीबत बन जाएगा. लेकिन प्रदेश के दिग्गज नेताओं में अभी तक इस पर सहमति बनती नहीं दिखाई दे रही है. कमलनाथ ने सिंधिया का नाम लिया तो दिग्विजय सिंह का कहना है कि नाम तो हाईकमान तय करेगा.
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प्रदेश अध्यक्ष को भी हटने की बात : कांग्रेस के भीतर क्या स्थिति है, इतने में पता चल जाती है. दूसरी तरफ प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव को हटाने की चर्चाओं से भी पार्टी की गतिविधियां प्रभावित हो रही है. आने वाले दिन कांग्रेस के लिए अहम हैं, क्योंकि नए नेतृत्व संबंधी फैसले को पार्टी के नेताओं ने ही चुनौती देना शुरू कर दिया तो कांग्रेस और कमजोर होगी. भाजपा तो इसी के इंतजार में है.
इनपुट : आईएनएस
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