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This Article is From Nov 04, 2017

जर्मनी में सोमवार से जलवायु परिवर्तन सम्मेलन : अमेरिका के रुख से आम आदमी पर पड़ेगा बोझ

बिहार में इस साल आई बाढ़ और देश के कई हिस्सों में बार बार पड़े रहे सूखे की घटनाएं सामान्य आपदाएं नहीं हैं.

जर्मनी में सोमवार से जलवायु परिवर्तन सम्मेलन : अमेरिका के रुख से आम आदमी पर पड़ेगा बोझ
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
नई दिल्‍ली: जर्मनी के बॉन शहर में सोमवार से जलवायु परिवर्तन सम्मेलन शुरू हो रहा है. इस दौरान 2 साल पहले पेरिस में हुए समझौते को लागू करने के लिये नियम बनाए जाएंगे. लेकिन अमेरिका के इस समझौते से हटने की घोषणा के बाद सबकी नज़र इस बात पर है कि बाकी देशों क्या क्या रुख रहेगा. ये चिंता बड़ी हो गई है कि क्या धरती को बचाने की कोशिशों का बोझ अब भारत जैसे देशों के आम आदमी की जेब पर पड़ेगा?

बिहार में इस साल आई बाढ़ और देश के कई हिस्सों में बार बार पड़े रहे सूखे की घटनाएं सामान्य आपदाएं नहीं हैं. जानकार और कई रिसर्च ये साबित कर चुके हैं कि बेतहाशा बारिश और बार बार पड़ने वाली सूखे जैसी घटनाएं पर्यावरण में जमा हो रहे कार्बन और धरती के बढ़ते तापमान के कारण है जिसके लिये अमीर देश ज़िम्मेदार हैं. लेकिन पर्यावरण में अब तक सबसे अधिक कार्बन फैलाने वाले अमेरिका ने अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है.

इस साल की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भले ही पेरिस समझौते से बाहर निकलने की घोषणा कर ली हो लेकिन कानूनी रूप से अमेरिका 2020 तक इस समझौते से जुड़ा रहेगा और जर्मनी में सम्मेलन के दौरान उसके प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे. एक्शन एड के हरजीत सिंह कहते हैं, “पेरिस समझौता जो 2020 से लागू होगा उसकी नियमावली अभी बन रही है. इस वार्ता में सबसे ज्यादा काम रूल बुक पर होगा कि क्या नियम रहेंगे कैसे समझौता लागू होगा. अब देखना ये है कि अमेरिका का रुख क्या रहता है. तकनीकी रूप से तो वो इसका हिस्सा रहेंगे लेकिन जो नियम बन रहे हैं उसका उनसे कोई सरोकार नहीं होना चाहिये क्योंकि वो पेरिस एग्रीमेंट का पार्ट ही नहीं हैं.”

अमेरिका के पीछे हटने से एक सवाल और खड़ा हो रहा है. गरीब और विकासशील देशों को साफ सुथरी बिजली के लिये जो तकनीक और पैसे की मदद विकसित देशों की ओर से मिलने वाली थी उसका बंटवारा क्या नये सिरे से होगा? मिसाल के तौर पर 2 साल पहले पेरिस में हुए समझौते के तहत भारत ने 2022 तक 1,75,000 मेगावाट के सौर और पवन ऊर्जा के प्लांट लगाने का वादा किया है. इसके लिये हर साल 2.5 लाख करोड़ रुपये चाहिये. विकसित देशों की ओर से सस्ते कर्ज़ और तकनीकी मदद के बिना ये काफी मुश्किल काम है जिसका वादा पेरिस समझौते में किया गया है. क्या यूरोपीय देश अमेरिका की ओर से मिलने वाली रकम की भरपाई को तैयार होंगे. अगर नहीं तो क्या इस लड़ाई का बोझ विकासशील देशों को ही उठाना होगा.

सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वारयरेंमेंट यानी सीएसई के चन्द्रभूषण के मुताबिक, “अमेरिका के पीछे हटने से बोझ बाकी देशों पर पड़ेगा. यूरोपीय देशों को भी इसका भार उठाना होगा और भारत जैसे विकासशील देशों को भी. हमारे देश के आम आदमी की जेब पर इसका बोझ पड़ेगा.” जहां एक ओर आम आदमी पर साफ ऊर्जा के लिये कोई सेस लगाया जा सकता है वहीं नए उद्यमियों के लिये रोज़गार के मौके हैं और उन दूर दराज़ के इलाकों में बिजली पहुंचाने का सुनहरा अवसर जो ग्रिड से नहीं जुड़े हैं.

दिल्ली के विशाल जैन और उनके साथियों ने 2 साल पहले ही सौर ऊर्जा से जुड़ा काम शुरू किया और उन्हें लगता है कि देश में संभावनाएं उनके लिये दरवाज़े खोल रही हैं. उनका कारोबार पूरे देश में फैल रहा है. 2015-16 में उन्होंने 2 करोड़ का कारोबार किया लेकिन इस साल उन्हें उम्मीद है कि वो 75 करोड़ से अधिक का कारोबार कर पाएंगे.

VIDEO: जलवायु परिवर्तन की जंग : पेरिस समझौते को लागू करने के लिए बनेंगे नियम

जैन की तरह बहुत सारे उद्यमियों के लिये आने वाले दिनों में सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में हाथ आजमाने का मौका है। अभी देश में सौर और पवन ऊर्जा समेत साफ सुथरी ऊर्जा का उत्पादन 50 गीगावाट से भी कम होता है। भारत ने धरती के तापमान को कम रखने के लिये 2 साल पहले पेरिस सम्मेलन में जो वादे किये उसके मुताबिक 2022 तक देश में 1,00,000 मेगावाट सौर ऊर्जा के संयंत्र लगेंगे जिसमें 40,000 मेगावाट रूफटॉप होगा यानी छतों पर सोलर पैनल लगेंगे. इसके तहत घरों, दफ्तरों और स्कूलों में जमकर सोलरपैनल की सप्लाई होगी. इसके अलावा 60,000 मेगावाट पवन ऊर्जा और 15,000 मेगावाट बायोमास या छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट होंगे.

जानकार कहते हैं कि रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ाते हुए उन इलाकों में बिजली पहुंचाने का सुनहरा मौका है जो अब भी ग्रिड से नहीं जुड़े हैं. भारत की करीब 30 करोड़ आबादी के पास अब भी बिजली नहीं है. इन लोगों तक पहुंचने के साथ-साथ ये मौका ग्राम पंचायतों या छोटे सामुदायिक संगठनों को मज़बूत करने का भी है.

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