नागरिकता (संशोधन) बिल के सोमवार को लोकसभा में पारित हो जाने के बाद अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति ने कहा, "नागरिकता के लिए किसी भी तरह का धार्मिक परीक्षण किए जाने से किसी देश के 'लोकतांत्रिक मूल्यों के मूल सिद्धांतों का क्षरण हो सकता' है..." लोकसभा में विधेयक के पारित होने पर समिति ने कहा, "भारत तथा अमेरिका, दोनों के ही मूल में धार्मिक अनेकतावाद शामिल है, और यह हमारे साझे मूल्यों का बेहद अहम हिस्सा है... नागरिकता के लिए किसी भी तरह का धार्मिक परीक्षण इसी सर्वाधिक आधारभूत सिद्धांत का क्षरण करता है..."
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग ने भी एक अन्य बयान बिल को लेकर मिलती-जुलती चिंता व्यक्त की, और कहा, "यह बिल प्रवासियों को नागरिकता देने का मार्ग खोलता है, जिसमें विशेष रूप से मुस्लिमों को निकाला गया है, जिससे धर्म के आधार पर नागरिकता के लिए कानूनी मार्ग खुल जाएगा..."
बता दें, लोकसभा ने नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का पात्र बनाने का प्रावधान है. निचले सदन में विधेयक पर सदन में सात घंटे से अधिक समय तक चली चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक लाखों करोड़ों शरणार्थियों के यातनापूर्ण नरक जैसे जीवन से मुक्ति दिलाने का साधन बनने जा रहा है. ये लोग भारत के प्रति श्रद्धा रखते हुए हमारे देश में आए, उन्हें नागरिकता मिलेगी.
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शाह ने कहा, ‘मैं सदन के माध्यम से पूरे देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह विधेयक कहीं से भी असंवैधानिक नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता. अगर इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं होता तो मुझे विधेयक लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.'
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