मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता की वापसी का पूरा घटनाक्रम

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता की वापसी का पूरा घटनाक्रम

चेन्नई:

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में पांचवीं बार शपथ ग्रहण करने वाली अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता ने चार दशक पुराने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। उनके राजनीतिक करियर से जुड़ी मुख्य घटनाओं का क्रम इस प्रकार हैं...

24 जून, 1991 : विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक को अपने नेतृत्व में बड़ी सफलता दिलाने के बाद जयललिता ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया।

मई 1996 : अन्नाद्रमुक के शासन में भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच पार्टी की विधानसभा चुनावों में हार हुई। द्रमुक की सत्ता में वापसी हुई।

11 जुलाई, 1996 : तत्कालीन जनता पार्टी के नेता डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने जयललिता पर 1991 से 1996 के दौरान आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक 66.65 करोड़ रुपये की संपत्ति रखने का आरोप लगाते हुए अदालत में निजी शिकायत दर्ज कराई।

सात दिसंबर 1996 : जयललिता को गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति इकट्ठा करने सहित भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए।

अप्रैल 1997 : द्रमुक सरकार ने जयललिता, उनके पूर्व कैबिनेट सहयोगियों और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार के 47 मामलों की सुनवाई के लिए तीन विशेष अदालतें गठित कीं।

1997 : जयललिता, उनकी निकट मित्र शशिकला और दो अन्य के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में चेन्नई अदालत में मुकदमा शुरू हुआ।

चार जून, 1997 : आय से अधिक संपत्ति मामले में आरोप पत्र दायर हुआ।

1999 : विशेष अदालत ने कोयला आयात करार मामले में बरी किया। मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला बरकरार रखा।

दो फरवरी, 2000 : विशेष अदालत ने कथित रूप से नियमों का उल्लंघन करके निर्माण की अनुमति देने संबंधी प्लेजेंट स्टे होटल मामले में उन्हें दोषी करार दिया।

आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति मामले में सुनवाई शुरू हुई। अगस्त 2000 तक अभियोजन पक्ष के 260 में से 250 गवाहों से पूछताछ की गई।

अक्टूबर, 2000 : चेन्नई की एक विशेष अदालत ने जयललिता को तांसी भूमि सौदे मामले में दोषी ठहराया।

14 मई, 2001 : जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक को विधानसभा चुनावों में शानदार जीत मिली। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। हालांकि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराया गया।

21 सितंबर, 2001 : तांसी मामले में दोषसिद्धि के बाद चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता की नियुक्ति को अमान्य करार दिया। इसके कारण उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी।

चार दिसंबर 2001 : मद्रास हाई कोर्ट ने तांसी मामले और प्लेजेंट स्टे होटल मामले में जयललिता को बरी किया।

21 फरवरी 2002 : जयललिता आंदीपत्ती विधानसभा सीट के उपचुनाव में विधानसभा के लिए चुनी गईं।

दो मार्च, 2002 : जयललिता ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।

आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में तीन सरकारी वकीलों ने इस्तीफा दिया। अभियोजन पक्ष के कई गवाह अपने पूर्व के बयानों से पलट गए।

18 नवंबर, 2003 : द्रमुक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले को बेंगलूरू में स्थानांतरित किया।

24 नवंबर, 2003 : सुप्रीम कोर्ट ने तांसी मामले में जयललिता की दोषमुक्ति को बरकरार रखा।

23 जनवरी, 2004 : 28.28 करोड़ रुपये के स्पिक विनिवेश मामले में विशेष अदालत ने बरी किया।

19 फरवरी, 2005 : कर्नाटक सरकार ने आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में अभियोग चलाने के लिए पूर्व महाधिवक्ता बी.वी. आचार्य को विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) नियुक्त किया।

11 मई, 2006 : अन्नाद्रमुक विधानसभा चुनाव हारी, द्रमुक की सत्ता में वापसी हुई।

16 मई, 2011 : जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक को विधानसभा चुनावों में जीत मिली। जयललिता ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।

अक्टूबर: नवंबर 2011 : जयललिता आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में बेंगलूरू विशेष अदालत में पेश हुईं और न्यायाधीश के 1,339 प्रश्नों का उत्तर दिया।

12 अगस्त 2012: आचार्य ने एसपीपी के तौर पर काम करने के प्रति असमर्थता दिखाते हुए इस्तीफा दिया जिसके बाद आचार्य को एसपीपी की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया।

दो फरवरी, 2013 : कर्नाटक सरकार ने जी भवानी सिंह को एसपीपी नियुक्त किया।

28 अगस्त, 2014 : विशेष अदालत ने निर्णय सुरक्षित रखा।

27 सितंबर, 2014 : विशेष अदालत ने जयललिता और तीन अन्य को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया। उन्हें चार-चार साल कारावास की सजा सुनाई गई। जयललिता पर 100 करोड़ रुपये और तीन अन्य आरोपियों पर 10-10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।

दोषसिद्धि के कारण विधायक के तौर पर अयोग्य हो जाने के बाद जयललिता ने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़ी।

18 अक्टूबर, 2014 : सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता की जमानत स्वीकार की। वह 21 दिनों तक बेंगलुरु जेल में रहने के बाद बाहर आई।

19 जनवरी, 2015 : हाई कोर्ट ने भवानी सिंह को एसपीपी की जिम्मेदारी से हटाए जाने संबंधी अनबझगन की याचिका खारिज की।

24 जनवरी, 2015 : बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने स्वयं को जयललिता की याचिका के मामले में एक पक्ष बनाए जाने की अनुमति मांगते हुए हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की।

11 फरवरी, 2015 : हाई कोर्ट ने भवानी सिंह को एपीपी की जिम्मेदारी से हटाने संबंधी याचिका अस्वीकार होने के खिलाफ अनबझगन की अपील खारिज की।

11 मार्च, 2015 : स्वामी ने अदालत से जयललिता की अपील खारिज करने और उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि करने का अनुरोध किया।

11 मार्च, 2015 : कर्नाटक हाई कोर्ट ने जयललिता और तीन अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा।

27 अप्रैल, 2015 : सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा एसपीपी के तौर पर भवानी सिंह की नियुक्ति को रद्द किया।

28 अप्रैल, 2015 : बी.वी. आचार्य को एसपीपी के तौर पर फिर से नियुक्त किया गया। उन्होंने हाई कोर्ट में लिखित आवेदन दायर किया, जयललिता और अन्य की याचिकाएं खारिज करने की मांग की।

11 मई, 2015 : कर्नाटक हाई कोर्ट ने जयललिता को बरी किया।

22 मई, 2015 : जयललिता अन्नाद्रमुक विधायक दल की नेता चुनी गईं।

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23 मई, 2015 : पांचवीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।