केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) को आज उस वक्त काफी तल्ख शब्दों का सामना करना पड़ा, जब पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने कहा कि सीबीआई को ‘सरकार के हथियार’ और ‘डर्टी ट्रिक्स विभाग’ के तौर पर बदनामी मिली है।
सीबीआई के अतिथि वक्ता के तौर पर गांधी ने 15वें डीपी कोहली स्मृति व्याख्यान में इस जांच एजेंसी को सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में लाने की पुरजोर पैरवी की और कहा कि इसे ‘सनसनीखेज ढंग’ से नहीं, बल्कि ‘बेहतरीन ढंग’ से स्वायत्त बनाना होगा।
गांधी ने सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा तथा संपूर्ण वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में तल्ख शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, 'इसे सरकार के ईमानदार सहयोगी की तरह नहीं, बल्कि हथियार के तौर पर देखा जाता है। इसे अक्सर डीडीटी कहा जाता है जिसका मतलब रंगहीन, स्वादहीन, गंधहीन कीटनाशक (डाईक्लोरो डाईफेनिल ट्राईक्लोरोएथेन) नहीं, बल्कि ‘डिपार्टमेंट ऑफ डर्टी ट्रिक्स’ है।'
भ्रष्टाचार के मुद्दे का हवाला देते हुए 69 साल के गांधी ने कहा कि सीबीआई की ‘मिलीजुली छवि’ है जिसमें हर बात की जी हुजूरी नहीं होती और इसे पहले से बनी छवि को बदलना होगा।
‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवासं स्टडीज’ (आईआईएएस) के अध्यक्ष गांधी ने कहा कि ‘आरटीआई प्रशिक्षित’ जनता सीबीआई के बदलाव का उपकरण बनने की उम्मीद करती है।
गांधी ने कहा, 'सीबीआई अपारदर्शिता का वस्त्र पहने हुए है और फिर उसके पास गोपनीयता के आभूषण हैं तथा आखिर में रहस्य का परफ्यूम भी लगाए हुए है।' उन्होंने सीबीआई को आरटीआई के दायरे में लाने की पैरवी करते हुए कहा, 'यह बहुत दयनीय है। सीबीआई भ्रष्टाचार और कुछ अपराध के मामलों की जांच के लिए है। यह सुरक्षा और खुफिया एजेंसी नहीं है।'
‘एक्लिप्स एट नून: शैडोज ओवर इंडियाज कांसिएंस’ नामक व्याख्यान का आयोजन सीबीआई के रजत जयंती समारोह के समापन के मौके पर किया गया था।
तमिलनाडु कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी गांधी ने कहा कि सीबीआई के बारे में डर्टी ट्रिक्स विभाग की बनी धारणा को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'भारत की जनता को भागीदार बनाकर सीबीआई कुछ नहीं खोएगी, बल्कि हासिल ही करेगी।'
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