
सीबीआई निदेशक अनिल सिन्हा शुक्रवार को अपने पद से सेवानिवृत्त हो गए
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अस्थाना को दो दिन पहले अतिरिक्त निदेशक के रूप में प्रोन्नत किया गया था
सरकार ने अभी जांच ब्यूरो के लिए पूर्ण कालिक प्रमुख की घोषणा नहीं की
सिन्हा ने आज दो साल का अपना कार्यकाल पूरा किया
दस साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि निवर्तमान सीबीआई प्रमुख के उत्तराधिकारी का चयन नहीं किया गया है. सिन्हा ने आज दो साल का अपना कार्यकाल पूरा किया.
सरकार ने सीबीआई निदेशक के चयन की प्रक्रिया शुरू भी नहीं की है. सरकार की तरफ़ से सिर्फ़ इतना कहा जा रहा है कि 42 अफ़सरों की सूची में से तीन नामों का पैनल बनाया जाएगा. फिर प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया की मंज़ूरी के बाद नाम तय किया जाएगा. वैसे पिछले दस सालों में ये पहली बार है कि सीबीआई निदेशक का पद खाली रहेगा. कहा ये भी जा रहा है कि जनवरी में चीफ़ जस्टिस के रिटायरमेंट के बाद ही ये चयन प्रक्रिया शुरू होगी.
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग का आदेश कहता है, "सक्षम प्राधिकार ने आईपीएस (बिहार 1979) अनिल कुमार सिन्हा के अपना कार्यकाल पूरा करने के तत्काल बाद प्रभाव से और अगले आदेश तक के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक पद का अतिरिक्त कार्यभार आईपीएस (गुजरात 1984) राकेश अस्थाना को बतौर सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक सौंपने को मंजूरी प्रदान की है." सीबीआई प्रमुख का चयन एक कॉलेजियम करता है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता और प्रधान न्यायाधीश होते हैं. अभी कॉलेजियम की बैठक नहीं हो पाई है.
साठ वर्षीय सिन्हा ने तब सीबीआई की कमान संभाली थी जब जांच ब्यूरो 'पिंजरे में बंद तोता' और 'बंद जांच एजेंसी' जैसे तीखे कटाक्षों का सामना कर रहा था. सिन्हा ने सोशल मीडिया से दूर रहकर एजेंसी के कामकाज को संभाला एवं उसे आगे बढ़ाया. सिन्हा एजेंसी के मृदु भाषी लेकिन दृढ़ नेता साबित हुए जिन्होंने शीना बोरा हत्याकांड एवं विजय माल्या ऋण गड़बड़ी कांड जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच का मार्गदर्शन किया.
माल्या मामले में सिन्हा ने यह तय किया कि इस तड़क-भड़क वाले शराब कारोबारी के खिलाफ बंद पड़ चुकी उसकी किंगफिशर एयरलाइंस को मिले ऋण की कथित रूप से अदायगी नहीं किये जाने को लेकर मामला दर्ज हो जबकि बैंक शिकायत लेकर सीबीआई नहीं पहुंची थी. सिन्हा ने शीना बोरा हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपे जाने के बाद अपनी टीमों को इस मामले में पीटर मुखर्जी की भूमिका खंगालने का निर्देश दिया.
उन्होंने यह पक्का किया कि सीबीआई सार्वजनिक बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों के ढेरों मामलों की सघनता से तहकीकात हो जबकि बैंक संभावित मध्य मार्ग बंद हो जाने के डर से इन मामलों की जांच शुरू किये जाने के पक्ष में नहीं थे. बैंकों को लगता था कि ऋण उल्लंघनकर्ताओं से बातचीत से बीच का रास्ता निकल सकता है.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना के पहले दशक में ही उसके छात्र रहे सिन्हा की मनोविज्ञान एवं अर्थशास्त्र में रूचि रही है और उन्हें अपने परिवार के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता है.
बहराल जहां एक तरफ़ सरकार सभी अहम पदों के प्रमुखों को सेवा विस्तार दे रही है वहीं दूसरी तरफ़ सीबीआई जैसी अहम जांच एजेंसी के प्रमुख का चयन करने से हिचक रही है. उधर विपक्ष ये भी अब आरोप लगा रहा है कि सरकार में गुजरात काडर के अफ़सर हावी होते जा रहे हैं.
(साथ में इनपुट भाषा से...)
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