सुप्रीम कोर्ट का फाइल फोटो...
नई दिल्ली:
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर के केस भी अब देश के दूसरे हिस्सों में ट्रांसफर किए जा सकते हैं। इनमें सिविल और क्रिमिनल केस शामिल हैं। हालांकि कानूनन ट्रांसफर करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को ही है। अभी तक कानून में ये प्रावधान नहीं था।
5 जजों की संविधान पीठ ने फैसले में कहा है कि 'संविधान का आर्टिकल 21 कहता है कि सबको न्याय पाने का अधिकार है और कोई भी नागरिकों को इस अधिकार से वंचित नहीं रख सकता। अगर कोई किसी दूसरे राज्य में जाकर यात्रा करने में असमर्थ है तो वो एक तरह से न्याय पाने से वंचित है। साथ ही आर्टिकल 14 देश में सभी को कानून की नजर में बराबरी और कानून से सभी की सुरक्षा का मौलिक अधिकार देता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 136 के तहत अधिकार है कि वो सभी को न्याय दिलाए और न्याय के हित में ये जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार आर्टिकल 32, 136 और 142 का इस्तेमाल कर राज्य से कोई केस बाहर ट्रांसफर कर सकता है।'
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उस दलील को भी ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया कि राज्य में अपना कानून है और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया है, जिनमें जम्मू-कश्मीर से केस बाहर ट्रांसफर न होने के प्रावधान को चुनौती दी गई थी। इनमें ज्यादातर केस वैवाहिक थे और कुछ सिविल व क्रिमिनल भी थे।
क्यों है जम्मू-कश्मीर अलग
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में सिविल प्रोसिजर कोड CPC या IPC और CrPC का प्रावधान नहीं है। इनमें CPC के प्रावधान 35 और CrPC के प्रावधान 406 के तहत सुप्रीम कोर्ट केसों को दूसरी जगह ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में रनबीर पैनल कोड यानी RPC और अपना सिविल कोड लागू है। वहां ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा केस
यानि अब सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर के केस देश में कहीं भी ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में साबित करना होगा कि केस ट्रांसफर करना जरूरी है और ये साबित करना जरूरी है कि केस में न्याय नहीं मिल पा रहा और ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
क्यों है ये फैसला खास...
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला खास है, क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के प्रावधान 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए स्पेशल स्टेट्स को बरकरार रखा है तो वहीं राज्य के अपने कानून को भी छेड़ा नहीं है। साथ ही बाकी देश मे लागू सिविल और क्रिमिनल कोड को भी राज्य में नहीं लागू किया है। केस में राज्य की ओर से पैरवी करने वाले वकील सुनील फर्नांडिस का कहना है कि ये फैसला स्वागत योग्य है।
5 जजों की संविधान पीठ ने फैसले में कहा है कि 'संविधान का आर्टिकल 21 कहता है कि सबको न्याय पाने का अधिकार है और कोई भी नागरिकों को इस अधिकार से वंचित नहीं रख सकता। अगर कोई किसी दूसरे राज्य में जाकर यात्रा करने में असमर्थ है तो वो एक तरह से न्याय पाने से वंचित है। साथ ही आर्टिकल 14 देश में सभी को कानून की नजर में बराबरी और कानून से सभी की सुरक्षा का मौलिक अधिकार देता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 136 के तहत अधिकार है कि वो सभी को न्याय दिलाए और न्याय के हित में ये जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार आर्टिकल 32, 136 और 142 का इस्तेमाल कर राज्य से कोई केस बाहर ट्रांसफर कर सकता है।'
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उस दलील को भी ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया कि राज्य में अपना कानून है और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला उन याचिकाओं पर सुनाया है, जिनमें जम्मू-कश्मीर से केस बाहर ट्रांसफर न होने के प्रावधान को चुनौती दी गई थी। इनमें ज्यादातर केस वैवाहिक थे और कुछ सिविल व क्रिमिनल भी थे।
क्यों है जम्मू-कश्मीर अलग
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में सिविल प्रोसिजर कोड CPC या IPC और CrPC का प्रावधान नहीं है। इनमें CPC के प्रावधान 35 और CrPC के प्रावधान 406 के तहत सुप्रीम कोर्ट केसों को दूसरी जगह ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में रनबीर पैनल कोड यानी RPC और अपना सिविल कोड लागू है। वहां ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा केस
यानि अब सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर के केस देश में कहीं भी ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में साबित करना होगा कि केस ट्रांसफर करना जरूरी है और ये साबित करना जरूरी है कि केस में न्याय नहीं मिल पा रहा और ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
क्यों है ये फैसला खास...
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला खास है, क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के प्रावधान 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए स्पेशल स्टेट्स को बरकरार रखा है तो वहीं राज्य के अपने कानून को भी छेड़ा नहीं है। साथ ही बाकी देश मे लागू सिविल और क्रिमिनल कोड को भी राज्य में नहीं लागू किया है। केस में राज्य की ओर से पैरवी करने वाले वकील सुनील फर्नांडिस का कहना है कि ये फैसला स्वागत योग्य है।
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