कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक दुर्लभ मामले में एक महिला को 35 सप्ताह के बाद गर्भ गिराने की अनुमति दे दी. एक मेडिकल बोर्ड को भ्रूण में विकृतियों का पता लगा था, जिसके आधार पर अदालत ने यह अनुमति दी. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा संचालित एसएसकेएम अस्पताल के नौ सदस्यीय मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि मौजूदा गर्भावस्था से जन्मे बच्चे के जीवित रहने या सामान्य जीवन जीने की संभावना बहुत कम है.
न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने यह देखते हुए कि रिपोर्ट में मां के साथ-साथ बच्चे के लिए भी जोखिम की बात कही गई है, आदेश दिया कि ''तथ्यों और परिस्थितियों के पूरे पहलू को ध्यान में रखते हुए, यह अदालत याचिकाकर्ता को एक अधिकृत अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र में गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त कराने की अनुमति देती है.''
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि नौ वरिष्ठ डॉक्टरों की टीम ने कहा है कि बच्चा चिकित्सकीय हस्तक्षेप के जरिये पैदा हो भी जाए तो भी उसे गंभीर हानि और दीर्घकालिक बीमारियां होने की संभावना है. 36 वर्षीय महिला ने याचिका में अपील की थी कि वह और उसका पति इस स्थिति के कारण गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करवाना चाहते हैं.
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