केदारनाथ त्रासदी की फाइल फोटो
देहरादून:
साल 2013 में केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के प्रभावों से निपटने के लिए अगर उत्तराखंड सरकार की तैयारियां पुख्ता होती और राहत व बचाव अभियान वक्त रहते हो पाता, तो इस आपदा में कई और जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। केदारनाथ आपदा के संबंध में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। आपको बता दें कि इस त्रासदी में चारधाम तीर्थयात्रियों समेत चार हजार लोग मारे गए थे।
राज्य सरकार का रवैया रहा ढुलमुल
हाल में ही गैरसैंण में संपन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा, जून- 2013 पर रखी गई रिपोर्ट में कैग ने हिमनदियों पर गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लागू ना करने, विषम हिमालयी क्षेत्र में अवसंरचना विकास कार्यों के लिए विस्फोटकों के प्रयोग को नियंत्रित करने के लिए कोई नीति न होने और निर्माण गतिविधियों के दौरान पैदा होने वाले मलबे के सुरक्षित ढंग से हटाने को लेकर केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निर्देशों को लागू न करने के लिए राज्य को जिम्मेदार ठहराया और कहा है कि इससे जून 2013 में आई प्राकृतिक आपदा की भयावहता बढ़ गई।
रिपोर्ट में 16-17 जून, 2013 को हुई लगातार मूसलाधार बारिश के बाद आई आपदा से निपटने के लिए तैयारियां न होने को लेकर भी राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया है। कैग ने कहा कि खराब मौसम और तैयारियों के अभाव में राज्य मशीनरी और जिला प्रशासन व्यापक स्तर पर हुए जान माल के नुकसान को कम करने के लिए प्रभावी रूप से प्रतिक्रिया नहीं दे सका।
आपदा के वक्त हुई कई गलतियां
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण लगभग अक्रियाशील था और जून, 2013 की आपदा से पूर्व राज्य आपदा प्रबंधन योजना को लागू करने में सक्षम नहीं था। राज्य एवं जनपद दोनों स्तरों पर आपातकालीन परिचालन केंद्र पर्याप्त मानव शक्ति, उपकरण एवं आवश्यक संचार नेटवर्क के बिना ही चल रहे थे। कैग ने कहा है कि जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आपदा के बाद खोज, बचाव एवं राहत अभियानों के लिए जरूरी किसी नियंत्रण प्रणाली को सक्रिय नहीं कर सका। इस रिपोर्ट के अनुसार, आपदा के दौरान सुरक्षित राहत शिविर स्थलों को चिह्नित ना करने के कारण प्रभावित लोगों के जीवन को खतरे में डाला गया। राज्य सरकार के पास तीर्थयात्रियों के रजिस्ट्रेशन का कोई तंत्र नहीं था, जिससे उनकी संख्या को लेकर काफी भ्रम फैला।
रिपोर्ट में जिला स्तर के अधिकारियों को भी पर्याप्त मात्रा में राशन एवं दवाइयों के भंडारण का रखरखाव नहीं करने का भी दोषी ठहराया गया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कई कमियों की तरफ इशारा किया है, जिसके कारण त्रासदी की भयावहता और बढ़ गई। रिपोर्ट के अनुसार, बचाव अभियान देरी से, 18 जून को शुरू किया गया। लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए हैलीपैड उपलब्ध नहीं थे और विभिन्न विभागों में आपसी समन्वय की भी कमी रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जरूरी खोज एवं बचाव उपकरण जैसे आपातकालीन लाइट्स, सोलर लाइट्स, गैस कटर और वुड कटर आदि प्रभावित जिलों के आपातकालीन परिचालन केंद्रों में उपलब्ध नहीं थे। प्रशिक्षित मानवशक्ति में उपलब्ध 7849 लोगों की सेवाओं का प्रयोग नहीं किया जा सका और उचित संचार नेटवर्क की अनुपलब्धता से भी अभियान में बाधा पहुंची। कैग ने राहत वितरण में 92 प्रतिशत मामलों में विलंब होने पर भी सवाल खड़ा किया है और कहा है कि राहत के वितरण और हानियों के प्रमाणीकरण में एकरूपता नहीं थी।
गौरतलब है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पर आपदा से प्रभावी रूप से निपटने में कथित विफलता के आरोप लगे थे और उसी के चलते उन्हें जनवरी, 2014 में पद छोड़ना पड़ा था। उनके बाद एक फरवरी को हरीश रावत ने प्रदेश की कमान संभाली।
राज्य सरकार का रवैया रहा ढुलमुल
हाल में ही गैरसैंण में संपन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा, जून- 2013 पर रखी गई रिपोर्ट में कैग ने हिमनदियों पर गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लागू ना करने, विषम हिमालयी क्षेत्र में अवसंरचना विकास कार्यों के लिए विस्फोटकों के प्रयोग को नियंत्रित करने के लिए कोई नीति न होने और निर्माण गतिविधियों के दौरान पैदा होने वाले मलबे के सुरक्षित ढंग से हटाने को लेकर केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निर्देशों को लागू न करने के लिए राज्य को जिम्मेदार ठहराया और कहा है कि इससे जून 2013 में आई प्राकृतिक आपदा की भयावहता बढ़ गई।
रिपोर्ट में 16-17 जून, 2013 को हुई लगातार मूसलाधार बारिश के बाद आई आपदा से निपटने के लिए तैयारियां न होने को लेकर भी राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया है। कैग ने कहा कि खराब मौसम और तैयारियों के अभाव में राज्य मशीनरी और जिला प्रशासन व्यापक स्तर पर हुए जान माल के नुकसान को कम करने के लिए प्रभावी रूप से प्रतिक्रिया नहीं दे सका।
आपदा के वक्त हुई कई गलतियां
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण लगभग अक्रियाशील था और जून, 2013 की आपदा से पूर्व राज्य आपदा प्रबंधन योजना को लागू करने में सक्षम नहीं था। राज्य एवं जनपद दोनों स्तरों पर आपातकालीन परिचालन केंद्र पर्याप्त मानव शक्ति, उपकरण एवं आवश्यक संचार नेटवर्क के बिना ही चल रहे थे। कैग ने कहा है कि जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आपदा के बाद खोज, बचाव एवं राहत अभियानों के लिए जरूरी किसी नियंत्रण प्रणाली को सक्रिय नहीं कर सका। इस रिपोर्ट के अनुसार, आपदा के दौरान सुरक्षित राहत शिविर स्थलों को चिह्नित ना करने के कारण प्रभावित लोगों के जीवन को खतरे में डाला गया। राज्य सरकार के पास तीर्थयात्रियों के रजिस्ट्रेशन का कोई तंत्र नहीं था, जिससे उनकी संख्या को लेकर काफी भ्रम फैला।
रिपोर्ट में जिला स्तर के अधिकारियों को भी पर्याप्त मात्रा में राशन एवं दवाइयों के भंडारण का रखरखाव नहीं करने का भी दोषी ठहराया गया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कई कमियों की तरफ इशारा किया है, जिसके कारण त्रासदी की भयावहता और बढ़ गई। रिपोर्ट के अनुसार, बचाव अभियान देरी से, 18 जून को शुरू किया गया। लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए हैलीपैड उपलब्ध नहीं थे और विभिन्न विभागों में आपसी समन्वय की भी कमी रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जरूरी खोज एवं बचाव उपकरण जैसे आपातकालीन लाइट्स, सोलर लाइट्स, गैस कटर और वुड कटर आदि प्रभावित जिलों के आपातकालीन परिचालन केंद्रों में उपलब्ध नहीं थे। प्रशिक्षित मानवशक्ति में उपलब्ध 7849 लोगों की सेवाओं का प्रयोग नहीं किया जा सका और उचित संचार नेटवर्क की अनुपलब्धता से भी अभियान में बाधा पहुंची। कैग ने राहत वितरण में 92 प्रतिशत मामलों में विलंब होने पर भी सवाल खड़ा किया है और कहा है कि राहत के वितरण और हानियों के प्रमाणीकरण में एकरूपता नहीं थी।
गौरतलब है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पर आपदा से प्रभावी रूप से निपटने में कथित विफलता के आरोप लगे थे और उसी के चलते उन्हें जनवरी, 2014 में पद छोड़ना पड़ा था। उनके बाद एक फरवरी को हरीश रावत ने प्रदेश की कमान संभाली।
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