
न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी ने एकांत में दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंधों को दंडनीय अपराध करार देने संबंधी कानूनी प्रावधान को बरकरार रखने के अपने निर्णय पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। इस निर्णय की समलैंगिक रिश्तों के पक्षधर वर्ग ने आलोचना की है।
सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के अवसर पर आयोजित एक विदाई समारोह के बाद संवाददाताओं के सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा, कृपया पहले फैसला पढ़िए। फिर आप आइए और मुझसे सवाल पूछिए। न्यायमूर्ति सिंघवी द्वारा सुनाए गए निर्णय पर समलैंगिक अधिकारों के हिमायती वर्ग ने निराशा व्यक्त की है।
न्यायमूर्ति सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एकांत में परस्पर सहमति से दो वयस्कों द्वारा समलैंगिक यौन संबंध कायम करने को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी से बाहर रखने वाला दिल्ली हाईकोर्ट का 2009 का फैसला रद्द कर दिया था।
इस समारोह में प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम ने न्यायमूर्ति सिंघवी के कामकाज की सराहना करते हुए कहा कि वह 23 साल से अधिक समय तक न्यायपालिका का हिस्सा रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट में छह साल से अधिक कार्यकाल के दौरान नोएडा भूमि अधिग्रहण, लाल बत्ती के उपयोग तथा समलैंगिक यौन संबंधों सहित अनेक महत्वपूर्ण मसलों पर उन्होंने फैसले सुनाए। प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत की सफलता का श्रेय भी न्यायमूर्ति सिंघवी को दिया। इस आयोजन में देश भर में 71.78 लाख मुकदमों का निबटारा किया गया था।
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