लाल बलुवा पत्थर से बना लाल किला सियासत और इतिहास के एक ऐसे प्रतीक के रूप में हमारे बीच मौजूद है, जिसने सदियों तक रिश्ते, फरिश्ते, नफासत, रियासत और मोहब्बतों नई तारीख बनती और बिगड़ती देखी और देख रहा है।
इसके अंदर दाखिल होते ही आपको उत्साह से लबरेज लोग मिलेंगे, लेकिन अंदर लगी दुकानों को दरकिनार कर आगे बढ़ते ही लाल पत्थर और बहुत सारे खंबों पर टिका दीवान-ए-आम मिलेगा। जहां से बादशाह का इंसाफ आम लोगों के लिए होता था। लेकिन जब इससे आगे बढ़ेंगे तो सफेद संगमरमर से बना दीवान-ए-खास देखने को मिलेगा।
इसके अंदर आजकल जाने की मनाही है, क्योंकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसको सहजने के काम में जुटा है। भीड़ इसके चबूतरे से खामोशी से गुजरती है। इसे देखकर एक बार भरोसा नहीं होता है कि किसी जमाने में इसकी दीवारों पर बेशकीमती हीरे-जवाहरात जड़े थे.. संगमरमर के वीरान चबूतरे पर बेशकीमती मयूर सिंहासन रखा होता था। जिसपर बैठकर बादशाह अपने खास दरबारियों के साथ हिन्दुस्तान की तारीख का फैसला लेते थे। इसकी छत पर सोने की ऐसी दुर्लभ कारीगरी थी, जिसे देखकर लोगों की आंखें हैरानी से भर उठती थी।
सन 1739 में मुगलिया सल्तनत को रौंदते हुए जब नादिर शाह बेशकीमती मयूर सिंहासन को लूट ले गया। जिसे शाहजहां ने 1150 किलो सोना और 230 किलो कीमती पत्थर जड़वा कर बनवाया था। दीवाने-ए-खास की दीवारों और छतों पर लगे बेशकीमती पत्थरों को अंग्रेजों ने उखाड़ लिए और छतों पर सोने की कारीगरी उतार कर उनकी जगह पेंट कर दिए गए।
लेकिन नादिरशाह और अंग्रेज जो नहीं ले जा पाए वह थी लाल किले और दीवाने-ए-खास को बनाने की 400 साल पहले की इंजीनियरिंग। दो महीने पहले दीवाने-ए-खास की छत बारिश में रिसने लगी। एएसआई यानि भारतीय पुरातत्व सर्वेंक्षण विभाग ने जब इसके संरक्षण का काम शुरू किया तो पता चला कि इसकी छत नौ परतों में बनी है। छत की खुदाई में मिट्टी और लाखौरी ईंटे..चूना पत्थर और साल की लकड़ी के बीम पर टिकी ऐसी छत मिली है जो भवन निर्माण की इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है। साथ ही साल की लकड़ी पर कुछ ऐसे निशान भी मिले है, जिन्हें उस वक्त के कारीगरों ने अपनी नाप और आकार के लिए बनाए थे।
एएसआई के अधीक्षक बसंत स्वर्णकार कहते हैं उन्हें उम्मीद नहीं थी दीवाने-ए-खास की ये छत इतनी खास है.. इसे दोबारा उसी तरह बनाना एएसआई के लिए एक चुनौती है।
लाल किले की खुदाई में मिला महताब बाग
तीन महीना पहले एएसआई को अंग्रेजों के सन 1857 का एक पुराना नक्शा मिला। इस पर रिसर्च करने से पता चला कि
लाल किले के इस हिस्से में महताब बाग होता था। इसी नक्शे के आधार पर एएसआई ने खुदाई शुरू की।
खुदाई में पता चला कि अंग्रेजों ने अपने सैनिकों के लिए लाल किले के अंदर बैरक बनाए और परेड के लिए महताब बाग को तोड़कर ज़मीन में हमेशा के लिए दफन कर दिया। लेकिन खुदाई में महताब बाग के निशान तो मिले ही, कई टेरेकोटा से बने बर्तन और मुगलकालीन मिट्टी के खिलौने मिले हैं।
एएसआई के बसंत स्वर्णकार कहते हैं कि पुरातत्व का काम बेहद धीरे होता है, जिसके चलते काफी वक्त लगता है। लेकिन खुदाई के बाद यहां से मिले ऐतिहासिक धरोहरों से उम्मीद है कि सभ्यता और इतिहास के कई भ्रांतिया टूटेंगी।
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