असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्रीय मंत्री अमित शाह को नागरिकता संशोधन कानून पर बहस को लेकर चुनौती दी है. अमित शाह ने मंगलवार को विपक्षी नेताओं ममता बनर्जी, राहुल गांधी और अखिलेश यादव को नागरिकता कानून पर बहस करने की चुनौती दी थी. न्यूज एजेंसी एएनआई ने एआईएमआईएम पार्टी चीफ ओवैसी के हवाले से लिखा है, 'उनके साथ बहस क्यों? मेरे साथ बहस कीजिए?' साथ ही उन्होंने कहा, 'आपको मेरे साथ बहस करनी चाहिए. मैं तैयार हूं. उनके साथ बहस क्यों करनी? बहस किसी दाढ़ी वाले शख्स से करनी चाहिए. मैं उनके साथ सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर बहस कर सकता हूं.' सीएए और एनआरसी के तहत मुस्लिमों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया जा रहा है. जबकि CAA के तहत ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया है.
बता दें, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध कर रहे विपक्षी पार्टियों पर निशाना साधते हुए मंगलवार को उन्हें चुनौती दी कि जिसको विरोध करना है, करे लेकिन सीएए वापस नहीं होने वाला है. शाह ने सीएए के समर्थन में लखनऊ के बंग्लाबाजार स्थित कथा पार्क में आयोजित विशाल जनसभा में कहा, 'इस बिल को लोकसभा में मैंने पेश किया है. मैं विपक्षियों से कहना चाहता हूं कि आप इस बिल पर सार्वजनिक रूप से चर्चा कर लो. यदि ये अगर किसी भी व्यक्ति की नागरिकता ले सकता है, तो उसे साबित करके दिखाओ.'
साथ ही उन्होंने कहा, 'देश में सीएए के खिलाफ भ्रम फैलाया जा रहा है, दंगे कराए जा रहे हैं. सीएए में कहीं पर भी किसी की नागरिकता लेने का कोई प्रावधान नहीं है, इसमें नागरिकता देने का प्रावधान है ... मैं आज डंके की चोट पर कहने आया हूं कि जिसको विरोध करना है करे, सीएए वापस नहीं होने वाला है.' गृह मंत्री ने कहा कि कांग्रेस और सपा समेत विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनकी आंखों पर वोट बैंक की पट्टी बंधी है.
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उन्होंने कहा, 'सीएए के खिलाफ प्रचार किया जा रहा है कि इससे देश के मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी. मैं कहने आया हूं कि जिसमें भी हिम्मत है वह इस पर चर्चा करने के लिये सार्वजनिक मंच ढूंढ ले. हम चर्चा करने के लिये तैयार हैं.' शाह ने कहा कि सीएए की कोई भी धारा मुसलमान तो छोड़ दें, किसी भी बाशिंदे की नागरिकता लेती हो तो बता दें.
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गृह मंत्री ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तरफ इशारा करते हुए कहा 'राहुल बाबा कान खोलकर सुन लो... आपकी पार्टी के पाप के कारण 16 जुलाई 1947 को धर्म के आधार पर विभाजन को स्वीकार किया गया. बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान में 30 प्रतिशत और पश्चिमी पाकिस्तान में 23 प्रतिशत हिन्दू, सिख बौद्ध और जैन थे मगर अब वहां अब वे सिर्फ सात और तीन प्रतिशत ही रह गये हैं. बाकी कहां गये? वे या तो मार दिये गये या उनका धर्म परिवर्तन किया... या फिर भारत आकर शरण ली. इन आंखों के अंधों को दिखायी नहीं दिया कि करोड़ों लोगों पर अत्याचार हुआ.'
शाह ने सीएए और अनुच्छेद 370 हटाने के मुद्दों का जिक्र करते हुए कहा कि इन सारी चीजों में राहुल, अखिलेश, मायावती और ममता की भाषा और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की भाषा एक ही है. “मुझे समझ नहीं आता है कि आखिर इन लोगों का इमरान खान से क्या सम्बन्ध है.”
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