भारत की तुलना में चीन की ऊंची रेटिंग : अरविंद सुब्रमणियन ने की रेटिंग एजेंसियों की आलोचना

आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकान्त दास ने भी पिछले सप्ताह वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनकी रेटिंग जमीनी सच्‍चाई से कोषों दूर है.

भारत की तुलना में चीन की ऊंची रेटिंग : अरविंद सुब्रमणियन ने की रेटिंग एजेंसियों की आलोचना

मुख्‍य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन (फाइल फोटो)

खास बातें

  • एसएंडपी ने घटती वृद्धि दर के बावजूद चीन की रेटिंग को AA - रखा है
  • भारत की रेटिंग को कबाड़ या जंक से सिर्फ एक पायदान ऊपर रखा गया है
  • भारत पहले भी रेटिंग एजेंसियों के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है
नई दिल्‍ली:

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारकों में स्पष्ट सुधार के बावजूद भारत की रेटिंग का उन्नयन न किए जाने को लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसियां भारत और चीन के मामले में अलग मानदंड अपना रही हैं. वैश्विक एजेंसियों ने भारत को सबसे निचले निवेश ग्रेड में रखा है, जिससे वैश्विक बाजारों में ऋण की लागत ऊंची पड़ती है, क्योंकि इससे निवेशकों की अवधारणा जुड़ी होती है. उन्होंने कहा, ‘दूसरे शब्दों में कहा जाए तो रेटिंग एजेंसियों का चीन और भारत को लेकर नजरिया उचित नहीं है और यह असंगत है. एजेंसियों के इस रिकॉर्ड को देखते हुए - जिसे हमें खराब मानक कहते हैं - मेरा सवाल यह है कि, हम इन रेटिंग एजेंसियों के विश्लेषण को गंभीरता से क्यों लेते हैं.’

सबप्राइम संकट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मॉर्गेज समर्थन वाली प्रतिभूतियों को AAA रेटिंग का प्रमाणपत्र देने को लेकर भी उनकी भूमिका पर सवाल उठे थे, अमेरिका के 2008 के वित्तीय संकट में ऐसी दूषित संपत्तियां भी शामिल थीं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा वित्तीय संकट को लेकर पहले से चेतावनी नहीं देने की विफलता को लेकर भी उनपर सवाल उठे थे.

सुब्रमणियन ने वीकेआरवी स्मृति व्याख्यान में कहा कि घरेलू मोर्चे पर देखा जाए, तो विशेषज्ञों के विश्लेषण और आधिकारिक फैसलों में स्पष्ट संबंध है. मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमणियन ने कहा कि नीतिगत फैसलों से पहले विशेषज्ञों के आकलन महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन एक बार निर्णय होने के बाद यह देखने वाली बात होती है कि किस तरह विश्लेषण को लेकर बोली बदलती है. विश्लेषक आधिकारिक फैसले को तर्कसंगत ठहराने के लिये पीछे हटने लगते हैं.

आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकान्त दास ने भी पिछले सप्ताह वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनकी रेटिंग जमीनी सच्‍चाई से कोषों दूर है. उन्होंने रेटिंग एजेंसियों को आत्म निरीक्षण करने की हिदायत दे डाली. उन्होंने कहा कि जो सुधार शुरू किये गये हैं उन्हें देखते हुये निश्चित ही रेटिंग में सुधार का मामला बनता है. भारत पहले भी रेटिंग एजेंसियों के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है. भारत का कहना है कि भुगतान जोखिम मानदंडों के मामले में दूसरे उभरते देशों के मुकाबले भारत की स्थिति अधिक अनुकूल है.

विशेषरूप से एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स पर सवाल उठे हैं जिसने बढ़ते कर्ज और घटती वृद्धि दर के बावजूद चीन की रेटिंग को AA - रखा है. वहीं भारत की रेटिंग को कबाड़ या जंक से सिर्फ एक पायदान ऊपर रखा गया है. मूडीज और फिच ने भी इसी तरह की रेटिंग दी है. इसके लिए इन एजेंसियों ने एशिया में सबसे अधिक राजकोषीय घाटे का उल्लेख किया है जिससे भारत की सॉवरेन रेटिंग प्रभावित हुई है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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