अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीती थीं.(फाइल फोटो)
दिल्ली नगर निगम के नतीजों से दो चीजें स्पष्ट हैं. पहली यह कि 2014 के लोकसभा चुनावों से शुरू हुई मोदी लहर का जलवा अभी भी बरकरार है. दूसरी बात यह कि दो साल पहले दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतकर सत्ता में आने वाले केजरीवाल सरकार की चमक फीकी पड़ गई है. हालांकि यह भी सही है कि 2015 के विधानसभा चुनावों में मोदी लहर का जादू नहीं चला और अरविंद केजरीवाल जीतने में कामयाब रहे. यानी स्पष्ट है कि लोग दिल्ली की सत्ता में अरविंद केजरीवाल को चाहते थे लेकिन इन दो वर्षों में कुछ न कुछ तो ऐसा जरूर हुआ है जिसके चलते आम आदमी पार्टी को अपने ही गढ़ में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.
ये नतीजे इस मायने में भी अहम है क्योंकि पिछले 10 वर्षों से दिल्ली नगर निगम में बीजेपी का कब्जा था. भ्रष्टाचार और बदइंतजामी की वजह से लोगों में गुस्सा भी था. उसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि बीजेपी ने लगभग सभी पार्षदों का टिकट काटकर नए प्रत्याशियों को उतारा. बीजेपी के इस कदम को सत्ता विरोधी लहर को थामने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है.
हाल में पंजाब और गोवा के बाद अब दिल्ली नगर निगम में हार के बाद अरविंद केजरीवाल के सामने आगे की राह कठिन दिख रही है. जिस तेजी से आप सत्ता तक पहुंची और उसके बाद राष्ट्रीय क्षितिज पर उभरने की अरविंद केजरीवाल ने कोशिश की, इन चुनावों से उस मुहिम को धक्का लगा है. अब पार्टी के भीतर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं. अगले चंद हफ्तों में लाभ के पद के मसले पर फैसला आ सकता है. इस मामले में आप के 21 विधायक फंसे हैं. यदि फैसला आप के खिलाफ गया और अगले चंद महीनों में दोबारा इन 21 सीटों पर चुनाव हुए, तो आप को जनता के बीच तब तक अपनी लोकप्रिय छवि को हासिल करने के लिए दोबारा मेहनत करनी होगी और यदि उसमें भी आप पराजित हो गई तो वह पार्टी के मनोबल को पूरी तरह से तोड़ने जैसा होगा. वैसे भी पंजाब में सत्ता में आने का ख्वाब देखने वाली आप नतीजों के बाद मायूस हो गई. ऐसा लगता है कि वह इस हार से उबर ही नहीं पाई तभी तो वह बीजेपी के मुकाबले नगर निगम चुनाव में मजबूती से उतर नहीं पाई. चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा दिख भी रहा था. इन मौजूदा सियासी परिस्थितियों में आप और अरविंद केजरीवाल की भविष्य की राह चुनौतीपूर्ण हो गई है.
ये नतीजे इस मायने में भी अहम है क्योंकि पिछले 10 वर्षों से दिल्ली नगर निगम में बीजेपी का कब्जा था. भ्रष्टाचार और बदइंतजामी की वजह से लोगों में गुस्सा भी था. उसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि बीजेपी ने लगभग सभी पार्षदों का टिकट काटकर नए प्रत्याशियों को उतारा. बीजेपी के इस कदम को सत्ता विरोधी लहर को थामने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है.
हाल में पंजाब और गोवा के बाद अब दिल्ली नगर निगम में हार के बाद अरविंद केजरीवाल के सामने आगे की राह कठिन दिख रही है. जिस तेजी से आप सत्ता तक पहुंची और उसके बाद राष्ट्रीय क्षितिज पर उभरने की अरविंद केजरीवाल ने कोशिश की, इन चुनावों से उस मुहिम को धक्का लगा है. अब पार्टी के भीतर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं. अगले चंद हफ्तों में लाभ के पद के मसले पर फैसला आ सकता है. इस मामले में आप के 21 विधायक फंसे हैं. यदि फैसला आप के खिलाफ गया और अगले चंद महीनों में दोबारा इन 21 सीटों पर चुनाव हुए, तो आप को जनता के बीच तब तक अपनी लोकप्रिय छवि को हासिल करने के लिए दोबारा मेहनत करनी होगी और यदि उसमें भी आप पराजित हो गई तो वह पार्टी के मनोबल को पूरी तरह से तोड़ने जैसा होगा. वैसे भी पंजाब में सत्ता में आने का ख्वाब देखने वाली आप नतीजों के बाद मायूस हो गई. ऐसा लगता है कि वह इस हार से उबर ही नहीं पाई तभी तो वह बीजेपी के मुकाबले नगर निगम चुनाव में मजबूती से उतर नहीं पाई. चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा दिख भी रहा था. इन मौजूदा सियासी परिस्थितियों में आप और अरविंद केजरीवाल की भविष्य की राह चुनौतीपूर्ण हो गई है.
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