
ज्योति प्रसाद राजखोवा की फाइल तस्वीर
- राजखोवा ने पहले इस्तीफा देने से किया था इनकार
- मेघालय के गवर्नर को अरुणाचल का अतिरिक्त प्रभार
- राजखोवा को पिछले साल मई में राज्यपाल नियुक्त किया गया था
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नई दिल्ली:
अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बहाल किए जाने के कुछ ही महीने के बाद पद से हटा दिया गया है. उनकी जगह मेघालय के राज्यपाल को अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है.
राजखोवा ने इससे पहले दावा किया था कि केंद्र ने उन्हें 'खराब स्वास्थ्य' के आधार पर इस्तीफा देने को कहा, लेकिन उन्होंने पद छोड़ने से इनकार कर दिया. राजखोवा ने कहा था कि राष्ट्रपति चाहें तो उन्हें बर्खास्त कर दें.
कुछ हफ्ते पहले राजखोवा ने गुवाहाटी आधारित एक टीवी चैनल से कहा था, मैं चाहता हूं कि राष्ट्रपति मुझे बर्खास्त करें. मैं खुद इस्तीफा नहीं दूंगा. राष्ट्रपति को अपनी नाखुशी जाहिर करने दें. सरकार को संविधान के अनुच्छेद 156 का इस्तेमाल करने दें. पूर्व नौकरशाह राजखोवा को पिछले साल मई में राज्यपाल नियुक्त किया गया था.
13 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में कांग्रेस की सरकार को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया था. 26 जनवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य में 15 दिसंबर 2015 वाली स्थिति बरकार रखने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्वनर को विधानसभा बुलाने का अधिकार नहीं था, यह गैरकानूनी था.
राजखोवा ने इससे पहले दावा किया था कि केंद्र ने उन्हें 'खराब स्वास्थ्य' के आधार पर इस्तीफा देने को कहा, लेकिन उन्होंने पद छोड़ने से इनकार कर दिया. राजखोवा ने कहा था कि राष्ट्रपति चाहें तो उन्हें बर्खास्त कर दें.
कुछ हफ्ते पहले राजखोवा ने गुवाहाटी आधारित एक टीवी चैनल से कहा था, मैं चाहता हूं कि राष्ट्रपति मुझे बर्खास्त करें. मैं खुद इस्तीफा नहीं दूंगा. राष्ट्रपति को अपनी नाखुशी जाहिर करने दें. सरकार को संविधान के अनुच्छेद 156 का इस्तेमाल करने दें. पूर्व नौकरशाह राजखोवा को पिछले साल मई में राज्यपाल नियुक्त किया गया था.
13 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में कांग्रेस की सरकार को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया था. 26 जनवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य में 15 दिसंबर 2015 वाली स्थिति बरकार रखने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्वनर को विधानसभा बुलाने का अधिकार नहीं था, यह गैरकानूनी था.
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