यह ख़बर 06 सितंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी

खास बातें

  • विपक्षी पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बहिर्गमन के बीच राज्यसभा ने गुरुवार को न्यायपालिका में उच्च स्तर पर न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करने के लिए एक न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के उद्देश्य से लाए गए संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।
नई दिल्ली:


विपक्षी पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बहिर्गमन के बीच राज्यसभा ने गुरुवार को न्यायपालिका में उच्च स्तर पर न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करने के लिए एक न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के उद्देश्य से लाए गए संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।

संविधान संशोधन (120वां) विधेयक पर हुए चर्चा का उत्तर देते हुए केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार न्यायपालिका के साथ भागीदारी वाली प्रक्रिया चाहती है ताकि उच्च स्तर की न्यायपालिका में सही तरह के लोग नियुक्त हो सकें।

उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2013 को स्थायी समिति के पार भेजे जाने पर सहमति बन चुकी है।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सदस्य अरुण जेटली ने सरकार को 1993 से पूर्व की पद्धति में लौटने के खिलाफ खबरदार किया और विधेयक को संसद की स्थायी समिति के हवाले करने का सुझाव दिया।

सिब्बल ने न्यायपालिका में उच्च स्तर पर न्यायाधीशों की नियुक्ति को कारगर बनाने और उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता के संतुलन को बहाल करने की जरूरत को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा, "न्यायाधीशों की नियुक्ति में संतुलन बहाल करने की जरूरत है और न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यकारी की व्यवस्था होनी ही चाहिए।"

उन्होंने कहा कि सदन में संविधान संशोधन विधेयक इसलिए पेश किया जा रहा है क्योंकि 'मौजूदा प्रणाली काम नहीं कर रही है।'

सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालयों की न्यायपालिका का 'नाजुक स्वतंत्रता संतुलन' सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम से विक्षुब्ध है। देश के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम में शीर्ष अदालत के वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं।

उन्होंने कहा, "उच्च न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय से स्वतंत्र माना जाता है, सहयोगी नहीं। अब उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की तरफ देखते हैं। इससे देश में उच्च न्यायालयों की नाजुक स्वतंत्रता बाधित होती है।"

सिब्बल ने कहा कि सरकार 1993 से पूर्व की उस स्थिति को वापस नहीं लाना चाहती जब न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यकारी अकेले फैसला लेता था। सरकार इस दिशा में सम्मिलित प्रयास चाहती है।

उन्होंने कहा, "न्यायपालिका कहती है कि सरकार पारदर्शी और जवाबदेह बने। यह सही है और न्यायपालिका ने कई अवसरों पर उचित तरीके से हमारी त्रुटि को पकड़ा भी है।"

सिब्बल ने कहा, "लेकिन न्यायधीशों की नियुक्ति जिस तरीके से होती है उसकी जानकारी लोगों को नहीं है।"

उन्होंने कहा, "जज किस तरह चुने जाते हैं उस फैसले की जानकारी या पारदर्शिता नहीं है क्योंकि सूचना का अधिकार उस पर लागू नहीं होता। न्यायपालिका का जो कथन कार्यकारी पर अनिवार्य रूप से लागू होता है वह न्यायपालिका पर भी अनिवार्य रूप से लागू हो।"

सिब्बल ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति को कारगर बनाने का समय आ गया है और नियुक्ति की अर्हता विस्तार में तय की जाएगी।

इससे पहले चर्चा में हिस्सा लेते हुए नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने कहा कि न्यायपालिका में उच्च स्तर पर न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कार्यकारी की व्यवस्था वाला विधेयक संसदीय समिति को सौंपा जाना चाहिए।

जेटली ने कहा कि विधेयक एक 'विधायिका की उल्लेखनीय कृति' है और इसकी संसद की स्थायी समिति द्वारा समीक्षा जरूरी है।

उन्होंने कहा, "हम इस विधेयक के विचार का समर्थन करते हैं। स्थायी समिति विभिन्न सहभागियों के पक्ष की सुनवाई करेगी, सभी को अपना विचार रखने की छूट दी जानी चाहिए।"

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जेटली ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली में समिति में शामिल न्यायाधीश अपनी पसंद को ही तवज्जो देते हैं।

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