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This Article is From Apr 16, 2015

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस की हवा सांस लेने लायक नहीं

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस की हवा सांस लेने लायक नहीं
वाराणसी:

अगर आप सांस के रोगी, दमा और अस्थमा से पीड़ित हैं और इन दिनों प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस आना चाहते हैं तो संभल कर आएं क्योंकि यहां की हवा में उड़ रहे धूल के कण और गाड़ियों के कार्बन आपकी बीमारी को बढ़ा सकते हैं। और जो लोग इन बीमारियों से ग्रस्त नहीं है वो भी सतर्क रहें क्योंकि बनारस की फ़िज़ा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है।

ये बातें हम नहीं प्रदूषण विभाग कह रहा है। क्योंकि आप को धूल के गुबार से बमुश्किल ही बनारस की सड़क दिखाई पड़ेगी और ये हाल किसी अकेली सड़क का नहीं बल्कि शहर की हर सड़क धूल से ऐसी ही पटी हुई है। जिसकी वजह से धर्म की नगरी का स्वास्थ्‍य हाशिये पर है। हर सांस के साथ धूल के हानिकारक कण लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं।

प्रदूषण विभाग के टी एन सिंह बताते है कि वैस्कुलर पॉल्‍यूशन है, जो गाड़ियां शहर में आ रही हैं, बनारस शहर में दशकों से खुदाई चल रही है, उसके जो पार्टिकल हैं वो उड़ रहे हैं, जेनसेट से बहुत समस्या है, उसका भी बहुत असर पड़ रहा है और मेनली जो वैस्कुलर पॉल्यूशन है वो 80 से 85 फीसदी काउंट कर रहा है।

बनारस की हवा में घुलते इस ज़हर के हैरान करने वाले आंकड़े तब सामने आए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हफ्ते पहले राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक लागू किया। इसके सूचकांक बता रहे हैं कि बनारस की फ़िजा सांस लेने लायक नहीं है।

बनारस के अर्दली बाजार स्थित सूचकांक का सेंसर बताता है कि पीएम 10 की मात्रा का औसत 244 माइक्रॉन प्रति घन सेन्टीमीटर है। यह न्यूनतम 110 और अधिकतम 427 दर्ज़ किया गया। जबकि इसका स्तर 60 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर से कम होना चाहिये। इसी तरह 10 माइक्रॉन से छोटे आकार के धूल के कण मानक से 7 गुना ज़्यादा पाए गए। इसी क्रम में पीएम 2.5 की मात्रा का औसत मिला 220। चौबीस घंटे में इसका न्यूनतम 50 और अधिकतम 500 रिकॉर्ड किया गया जबकि इसकी मात्रा 40 से कम होनी चाहिये। यानी ये मानक से 12 गुना अधिक है।

हवा में घुले पार्टिकल कितने खतरनाक हैं, इस पर बीएचयू के प्रोफ़ेसर बी डी त्रिपाठी कहते हैं, 'पार्टिकुलेट मैटर का साइज़ जिसको की 100 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर होना चाहिये वो 300 से 400 मिल रहा है। ये बहुत खतरनाक द्योतक है। ये इंडीकेट करता है कि बनारस की हवा सांस लेने लायक नहीं है।

धूल के अलावा बनारस जैसे संकरे शहर में जनसंख्या का दबाव बहुत है। गाड़ियों का आना जाना भी बहुत है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ तक़रीबन 11 लाख स्कूटर और मोटरसाइकिल हैं। 1 लाख से ऊपर कार और जीप है, ट्रैक्टर 5300 है तो ट्रेलर 10 हज़ार इसी तरह ट्रक और बसें हैं जिनके धुओं से बीमारियां बढ़ रही हैं। डॉक्टर बताते हैं कि इन दिनों सांस और दमे के मरीज बहुत बढ़ गए हैं।

यानी बनारस की सड़कों पर इन दिनों आप बिना मास्क पहने नहीं चल सकते नहीं तो सड़कों पर उड़ रहे धूल के न जाने कौन से कण कौन सी बीमारी दे जाएं ये हमें खुद नहीं पता। खस्ताहाल सड़क, बदहाल सीवर से बेहाल बनारसियों के लिये ये एयर पॉल्यूशन ज़िन्दगी को नर्क बनाए हुए है और अफ़सोस इस बात का है कि इसका हाल लेने वाला कोई नहीं, फिर चाहे इस शहर का सांसद देश का प्रधानमन्त्री ही क्यूं न हो।

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