दिल्ली में ईपीएफओ आफिस के बाहर सैकड़ों बुजुर्गों ने तीन दिन तक विरोध प्रदर्शन किया.
नई दिल्ली:
दिल्ली के ईपीएफओ आफिस के सामने हजारों की संख्या में बुजुर्ग तीन दिन तक प्रदर्शन करते रहे. शुक्रवार को शाम 5 बजे इन बुजुर्गों का प्रदर्शन समाप्त हो गया. सर्दी के मौसम में जब इन लोगों को घर में आराम करना चाहिए था तब वे अपने हक के लिए सड़क पर डटे रहे.
इस आंदोलन में अलग- अलग राज्यों से आए यह बुजुर्ग 20 से 30 सालों तक असंगठित क्षेत्र में काम कर चुके हैं लेकिन पेंशन के नाम पर किसी को 300 रुपये मिलते हैं तो किसी को एक हजार. EPFO 95 स्कीम के तहत इन बुजुर्गों को पेंशन मिलती है. जब ये सेवारत थे तब हर महीने इनके वेतन के बेसिक से 8.33 प्रतिशत पैसा कटा है. यह पेंशन सरकार अपनी ओर से नहीं दे रही है, इनकी तनख्वाह से कुल मिलाकर जितने पैसे कटे हैं उसी से इनको पेंशन मिलती है. साल 2014 में केंद्र सरकार की तरफ से यह निर्णय लिया गया था कि EPFO की तरफ से मिलने वाली पेंशन एक हजार से कम नहीं हो सकती है लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि ज़मीन पर ऐसा नहीं है. कई ऐसे बुजुर्ग मिले जिनको पेंशन के रूप में सिर्फ 300 रुपये ही मिलते हैं.
बुजुर्गों की क्या है मांग
इस प्रदर्शन में शामिल अशोक राउत ने NDTV से कहा कि ”पूरी जिंदगी कर्मचारियों को पैसा जमा करना पड़ता है और 60 साल की उम्र में रिटायर्ड होने के बाद जमा हुए पैसे नहीं मिलते हैं और पेंशन के रूप में 250 से लेकर 2500 के बीच मिलता है, जो कि अन्याय है. राउत ने कहा कि सरकार की तरफ से मिनिमम पेंशन 1000 रुपये तय की गई है जबकि देश में 17 लाख ऐसे बुजुर्ग हैं जिनको पेंशन इससे कम मिलती है. प्रदर्शनकारी बुजुर्गों की मांग थी कि कम से कम 7500 बेसिक पेंशन और उस पर महंगाई भत्ता दिया जाए. सभी ईपीएस 95 पेंशनधारकों तथा उनके पती/पत्नी को मुक्त वैधकीय सुविधा का लाभ मिले. EPFO द्वारा जारी किया गया नोटिफिकेशन pen-1/12/33/EPS amendment/96/Vol II/4432/ रद्द किया जाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सभी EPS-95 पेंशनधारकों को उच्च पेंशन की सुविधा प्रदान करे.
यह भी पढ़ें : ...तो सेवानिवृत्त कर्मचारियों की बढ़ जाएगी पेंशन, श्रम मंत्रालय की अहम बैठक
80 साल की उम्र में खेती में मजदूरी कर रही है राजबाई
इस प्रदर्शन में कई ऐसे बुजुर्ग मिले जो जिंदगी के इस पड़ाव पर भी संघर्ष कर रहे हैं. महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले से आई 80 साल की राजबाई ने बताया कि उनके पति किसी असंगठित क्षेत्र में काम करते थे. तीन साल पहले उनकी मौत हो गई. पेंशन के रूप में राजबाई सिर्फ 300 रुपये मिलते हैं. 80 साल की उम्र में भी राजबाई दूसरों के खेत में काम करके गुजारा कर रही है.
महाराष्ट्र से आईं आशा शिंदे ने बताया कि 20 साल पहले उनके पति गुजर गए थे. 20 साल से आशा शिंदे को पेंशन के रूप में सिर्फ 700 रुपये मिलते थे. अभी कुछ महीने पहले उनकी पेंशन बढ़कर 1000 रुपये हुई है, यानी 20 सालों में सिर्फ 300 रुपये की बढ़ोतरी हुई है. आशा शिंदे ने खेती मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया, इंजीनियर भी बनाया लेकिन आज वे खुद अकेली रहती हैं. वे अपने बच्चों पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं, अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती हैं, अच्छे से रहना चाहती हैं. महाराष्ट्र से आईं कई ऐसी महिलाएं मिलीं जो 20-20 साल तक काम कर चुकी हैं और रिटायर्ड होने के बाद पेंशन के रूप में किसी को 700 रुपये मिल रहे हैं तो किसी को हजार रुपये. यह सभी महिलाएं दूसरों के खेतों मे मजदूरी करने जाती हैं.
ड्यूटी के दौरान पैर कट गया लेकिन कुछ नहीं मिला
महाराष्ट्र के बीड़ जिले से आए चतुर्भुज देशमुख महाराष्ट्र के राज्य परिवहन ड्राइवर थे. ड्यूटी के दौरान उनका एक पैर दुर्घटना में कट गया. मुआवजे के नाम पर उन्हें कुछ नहीं मिला. मुआवजे के लिए वे कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. पेंशन के रूप में उन्हें 1368 रुपये मिल रहे हैं जिसमें परिवार चलाना मुश्किल है. पैर काटने के बाद उन्हें 27 महीने घर में खाली बैठना पड़ा. इस दौरान राज्य परिवहन की तरफ से पैसा भी नहीं मिला. इस बुजुर्ग का कहना है कि परिवहन निगम ने कुछ श्रमिक भत्ता दिया था लेकिन 27 महीने के बाद जब इस बुजुर्ग ने दोबारा कंपनी में ज्वाइन किया तो जो भत्ता दिया था वो वेतन से काट लिया.
पेंशन इतनी कम, बेटियों की शादी करना है मुश्किल
एक और बुजुर्ग ने बताया कि नेशनल टेक्सटाइल में क्लर्क के रूप में 25 साल तक काम करने के बावजूद आज उनको पेंशन के रूप में सिर्फ 892 रुपये मिलते हैं. पिछले कई सालों से उन्हें सिर्फ 392 रुपये मिलते थे और दो दिन पहले उनके 500 रुपये बढ़ाए गए हैं. सरकार की तरफ से न्यूनतम पेंशन एक हज़ार रुपये है. इस तरह अभी भी उनको 198 रुपये कम मिल रहे हैं. इस बुजुर्ग के परिवार में छह सदस्य हैं. दो बेटियों की अभी तक शादी नहीं हुई है. बुजुर्ग ने बताया कि आज मरने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है. इतनी कम पेंशन में भी इस बुजुर्ग ने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई है. एक बुजुर्ग ने बताया कि पैसे नहीं हैं इसीलिए बेटी की शादी नहीं करवा पा रहे हैं. थोड़ी ज़मीन है लेकिन इस उम्र में खेती नहीं कर पाते हैं.
30 साल तक काम करने बाद पेंशन 862 रुपये
मध्यप्रदेश में सरकारी बस में नौकरी कर चुके कई कर्मचारी इस प्रदर्शन में शामिल हुए. कोई कंडक्टर था तो कोई ड्राइवर. एक बुजुर्ग ने कहा कि वे 30 साल तक कंडक्टर रहे और अभी उन्हें पेंशन 861 रुपये मिल रही है. इन बुजुर्गों को कहना है कि मध्यप्रदेश में राज्य परिवहन निगम कई साल पहले बंद कर दिया गया है. कर्मचारियों को कुछ-कुछ पैसा देकर निकाल दिया गया था. 2700 कर्मचारी बेघर हो चुके हैं. सरकारी बसों की जगह अब प्राइवेट बसें चल रही हैं और ज्यादा से ज्यादा नेताओं की बसें हैं.
VIDEO : दिल्ली में क्यों जमा हुए सैकड़ों बुजुर्ग
प्रकाश जावड़ेकर का वह खत
भूख हड़ताल पर बैठे एक बुजुर्ग ने एक पत्र दिखाया. यह पत्र कई साल पहले प्रकाश जावड़ेकर ने तब राज्यसभा को लिखा था जब वे राज्यसभा सांसद थे. उन्होंने इस पत्र में लिखा था कि EPFO के तहत न्यूनतम पेंशन 3000 रुपये के साथ कुछ और सुविधाएं मिलनी चाहिए. आज प्रकाश जावड़ेकर खुद मंत्री हैं और केंद्र में उनकी सरकार है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो पाया. आज भी EPFO के तहत न्यूनतम पेंशन सिर्फ एक हजार रुपये है.
इस आंदोलन में अलग- अलग राज्यों से आए यह बुजुर्ग 20 से 30 सालों तक असंगठित क्षेत्र में काम कर चुके हैं लेकिन पेंशन के नाम पर किसी को 300 रुपये मिलते हैं तो किसी को एक हजार. EPFO 95 स्कीम के तहत इन बुजुर्गों को पेंशन मिलती है. जब ये सेवारत थे तब हर महीने इनके वेतन के बेसिक से 8.33 प्रतिशत पैसा कटा है. यह पेंशन सरकार अपनी ओर से नहीं दे रही है, इनकी तनख्वाह से कुल मिलाकर जितने पैसे कटे हैं उसी से इनको पेंशन मिलती है. साल 2014 में केंद्र सरकार की तरफ से यह निर्णय लिया गया था कि EPFO की तरफ से मिलने वाली पेंशन एक हजार से कम नहीं हो सकती है लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि ज़मीन पर ऐसा नहीं है. कई ऐसे बुजुर्ग मिले जिनको पेंशन के रूप में सिर्फ 300 रुपये ही मिलते हैं.
बुजुर्गों की क्या है मांग
इस प्रदर्शन में शामिल अशोक राउत ने NDTV से कहा कि ”पूरी जिंदगी कर्मचारियों को पैसा जमा करना पड़ता है और 60 साल की उम्र में रिटायर्ड होने के बाद जमा हुए पैसे नहीं मिलते हैं और पेंशन के रूप में 250 से लेकर 2500 के बीच मिलता है, जो कि अन्याय है. राउत ने कहा कि सरकार की तरफ से मिनिमम पेंशन 1000 रुपये तय की गई है जबकि देश में 17 लाख ऐसे बुजुर्ग हैं जिनको पेंशन इससे कम मिलती है. प्रदर्शनकारी बुजुर्गों की मांग थी कि कम से कम 7500 बेसिक पेंशन और उस पर महंगाई भत्ता दिया जाए. सभी ईपीएस 95 पेंशनधारकों तथा उनके पती/पत्नी को मुक्त वैधकीय सुविधा का लाभ मिले. EPFO द्वारा जारी किया गया नोटिफिकेशन pen-1/12/33/EPS amendment/96/Vol II/4432/ रद्द किया जाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सभी EPS-95 पेंशनधारकों को उच्च पेंशन की सुविधा प्रदान करे.
यह भी पढ़ें : ...तो सेवानिवृत्त कर्मचारियों की बढ़ जाएगी पेंशन, श्रम मंत्रालय की अहम बैठक
80 साल की उम्र में खेती में मजदूरी कर रही है राजबाई
इस प्रदर्शन में कई ऐसे बुजुर्ग मिले जो जिंदगी के इस पड़ाव पर भी संघर्ष कर रहे हैं. महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले से आई 80 साल की राजबाई ने बताया कि उनके पति किसी असंगठित क्षेत्र में काम करते थे. तीन साल पहले उनकी मौत हो गई. पेंशन के रूप में राजबाई सिर्फ 300 रुपये मिलते हैं. 80 साल की उम्र में भी राजबाई दूसरों के खेत में काम करके गुजारा कर रही है.
महाराष्ट्र से आईं आशा शिंदे ने बताया कि 20 साल पहले उनके पति गुजर गए थे. 20 साल से आशा शिंदे को पेंशन के रूप में सिर्फ 700 रुपये मिलते थे. अभी कुछ महीने पहले उनकी पेंशन बढ़कर 1000 रुपये हुई है, यानी 20 सालों में सिर्फ 300 रुपये की बढ़ोतरी हुई है. आशा शिंदे ने खेती मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया, इंजीनियर भी बनाया लेकिन आज वे खुद अकेली रहती हैं. वे अपने बच्चों पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं, अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती हैं, अच्छे से रहना चाहती हैं. महाराष्ट्र से आईं कई ऐसी महिलाएं मिलीं जो 20-20 साल तक काम कर चुकी हैं और रिटायर्ड होने के बाद पेंशन के रूप में किसी को 700 रुपये मिल रहे हैं तो किसी को हजार रुपये. यह सभी महिलाएं दूसरों के खेतों मे मजदूरी करने जाती हैं.
ड्यूटी के दौरान पैर कट गया लेकिन कुछ नहीं मिला
महाराष्ट्र के बीड़ जिले से आए चतुर्भुज देशमुख महाराष्ट्र के राज्य परिवहन ड्राइवर थे. ड्यूटी के दौरान उनका एक पैर दुर्घटना में कट गया. मुआवजे के नाम पर उन्हें कुछ नहीं मिला. मुआवजे के लिए वे कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. पेंशन के रूप में उन्हें 1368 रुपये मिल रहे हैं जिसमें परिवार चलाना मुश्किल है. पैर काटने के बाद उन्हें 27 महीने घर में खाली बैठना पड़ा. इस दौरान राज्य परिवहन की तरफ से पैसा भी नहीं मिला. इस बुजुर्ग का कहना है कि परिवहन निगम ने कुछ श्रमिक भत्ता दिया था लेकिन 27 महीने के बाद जब इस बुजुर्ग ने दोबारा कंपनी में ज्वाइन किया तो जो भत्ता दिया था वो वेतन से काट लिया.
पेंशन इतनी कम, बेटियों की शादी करना है मुश्किल
एक और बुजुर्ग ने बताया कि नेशनल टेक्सटाइल में क्लर्क के रूप में 25 साल तक काम करने के बावजूद आज उनको पेंशन के रूप में सिर्फ 892 रुपये मिलते हैं. पिछले कई सालों से उन्हें सिर्फ 392 रुपये मिलते थे और दो दिन पहले उनके 500 रुपये बढ़ाए गए हैं. सरकार की तरफ से न्यूनतम पेंशन एक हज़ार रुपये है. इस तरह अभी भी उनको 198 रुपये कम मिल रहे हैं. इस बुजुर्ग के परिवार में छह सदस्य हैं. दो बेटियों की अभी तक शादी नहीं हुई है. बुजुर्ग ने बताया कि आज मरने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है. इतनी कम पेंशन में भी इस बुजुर्ग ने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई है. एक बुजुर्ग ने बताया कि पैसे नहीं हैं इसीलिए बेटी की शादी नहीं करवा पा रहे हैं. थोड़ी ज़मीन है लेकिन इस उम्र में खेती नहीं कर पाते हैं.
30 साल तक काम करने बाद पेंशन 862 रुपये
मध्यप्रदेश में सरकारी बस में नौकरी कर चुके कई कर्मचारी इस प्रदर्शन में शामिल हुए. कोई कंडक्टर था तो कोई ड्राइवर. एक बुजुर्ग ने कहा कि वे 30 साल तक कंडक्टर रहे और अभी उन्हें पेंशन 861 रुपये मिल रही है. इन बुजुर्गों को कहना है कि मध्यप्रदेश में राज्य परिवहन निगम कई साल पहले बंद कर दिया गया है. कर्मचारियों को कुछ-कुछ पैसा देकर निकाल दिया गया था. 2700 कर्मचारी बेघर हो चुके हैं. सरकारी बसों की जगह अब प्राइवेट बसें चल रही हैं और ज्यादा से ज्यादा नेताओं की बसें हैं.
VIDEO : दिल्ली में क्यों जमा हुए सैकड़ों बुजुर्ग
प्रकाश जावड़ेकर का वह खत
भूख हड़ताल पर बैठे एक बुजुर्ग ने एक पत्र दिखाया. यह पत्र कई साल पहले प्रकाश जावड़ेकर ने तब राज्यसभा को लिखा था जब वे राज्यसभा सांसद थे. उन्होंने इस पत्र में लिखा था कि EPFO के तहत न्यूनतम पेंशन 3000 रुपये के साथ कुछ और सुविधाएं मिलनी चाहिए. आज प्रकाश जावड़ेकर खुद मंत्री हैं और केंद्र में उनकी सरकार है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो पाया. आज भी EPFO के तहत न्यूनतम पेंशन सिर्फ एक हजार रुपये है.