इरोम शर्मिला ने मंगलवार को शहद चाटकर अपना अनशन तोड़ा था
इंफाल:
16 साल बाद अनशन खत्म करने वाली मणिपुर की 'आयरन लेडी' इरोम शर्मिला अब भी अफस्पा नहीं हटने तक नाखून न काटने, बाल न संवारने, घर न जाने और अपनी मां से न मिलने के संकल्प पर कायम हैं.
वर्ष 2000 में 5 नवंबर के दिन इरोम शर्मिला ने सरकार द्वारा आफस्पा हटाए जाने तक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करने का संकल्प लिया था. उनके इस विरोध प्रदर्शन में कई आयाम थे, जो खाना-पानी न लेने से कहीं ज्यादा थे. अफस्पा के तहत सशस्त्र बलों को उनकी कार्रवाई के लिए अभियोजन से छूट मिलती है.
(वीडियो रिपोर्ट : अफस्पा के खिलाफ 16 साल पुराना अनशन तोड़ने वाली इरोम की आशाएं)
शर्मिला के विरोध प्रदर्शन से जुड़ा सबसे कड़ा आयाम यह था कि उन्होंने अफस्पा हटवाने के अपने लक्ष्य को हासिल किए बिना अपने घर न जाने और अपनी मां शाखी देवी से न मिलने का संकल्प कर लिया था. इन 16 सालों में शर्मिला इंफाल शहर के कोने पर स्थित कोंगपाल कोंगखम लेइकई में बने अपने घर एक बार भी नहीं गईं.
शहद की बूंदों से मंगलवार को अपना अनशन तोड़ने वाली 44-वर्षीय शर्मिला ने यह साफ किया कि जब तक आफस्पा हट नहीं जाता, वह तब तक घर नहीं जाएंगी और आश्रम में ही रहेंगी. उनके सहयोगियों ने कहा कि किसी भी भावनात्मक सैलाब से बचने के लिए शर्मिला अनशन के दौरान अपनी मां से नहीं मिलीं.
(पढ़ें : 16 साल लंबा अनशन तोड़ने के बाद इरोम शर्मिला फिर अस्पताल में भर्ती)
शर्मिला के बड़े भाई सिंहजीत ने कहा कि उनकी मां अपनी बेटी की जीत के क्षण का इंतजार कर रही हैं. यह क्षण तभी आ सकता है, जब अफस्पा हटा दिया जाए. एक-दूसरे से कुछ ही मीटर की दूरी पर रहने के बावजूद मां और बेटी इन सालों में एक ही बार मिली हैं. यह मुलाकात भी तब हो सकी थी, जब शर्मिला की मां को जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया गया था. शर्मिला को यहीं पर पुलिस हिरासत के तहत नाक में नली से जबरन भोजन दिया जा रहा था. सिंहजीत ने बताया कि वर्ष 2009 में उनकी मां अस्थमा अटैक के बाद कोमा में चली गई थीं.
उन्होंने कहा, 'शर्मिला को उनकी मौत का डर था इसलिए वह आधी रात को उसी अस्पताल में भर्ती अपनी मां के वॉर्ड में चली गईं, जब वह मां के चेहरे के करीब गईं तो उनकी मां को अचानक होश आ गया, लेकिन हमारी मां ने उसे फौरन वापस चले जाने के लिए कह दिया था. इसके बाद शर्मिला बिना कुछ कहे एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह वहां से चली गईं.
(पढ़ें : इरोम शर्मिला ने कहा- उग्रवादियों को मेरे रक्त से भ्रम दूर करने दीजिए)
सिंहजीत ने अपनी मां और उनकी बहन के बीच उस दौरान हुई बातचीत का जिक्र करते हुए बताया कि उनकी मां ने कहा था, 'जीतने के बाद मेरे पास आना। मैं उस क्षण का इंतजार कर रही हूं, जब तुम घर आओगी और मेरे लिए खाना बनाओगी.' इरोम शर्मिला अपने नौ भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. सिंहजीत ने कहा कि उनकी मां अब भी अपनी उस बात पर कायम हैं.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
वर्ष 2000 में 5 नवंबर के दिन इरोम शर्मिला ने सरकार द्वारा आफस्पा हटाए जाने तक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करने का संकल्प लिया था. उनके इस विरोध प्रदर्शन में कई आयाम थे, जो खाना-पानी न लेने से कहीं ज्यादा थे. अफस्पा के तहत सशस्त्र बलों को उनकी कार्रवाई के लिए अभियोजन से छूट मिलती है.
(वीडियो रिपोर्ट : अफस्पा के खिलाफ 16 साल पुराना अनशन तोड़ने वाली इरोम की आशाएं)
शर्मिला के विरोध प्रदर्शन से जुड़ा सबसे कड़ा आयाम यह था कि उन्होंने अफस्पा हटवाने के अपने लक्ष्य को हासिल किए बिना अपने घर न जाने और अपनी मां शाखी देवी से न मिलने का संकल्प कर लिया था. इन 16 सालों में शर्मिला इंफाल शहर के कोने पर स्थित कोंगपाल कोंगखम लेइकई में बने अपने घर एक बार भी नहीं गईं.
शहद की बूंदों से मंगलवार को अपना अनशन तोड़ने वाली 44-वर्षीय शर्मिला ने यह साफ किया कि जब तक आफस्पा हट नहीं जाता, वह तब तक घर नहीं जाएंगी और आश्रम में ही रहेंगी. उनके सहयोगियों ने कहा कि किसी भी भावनात्मक सैलाब से बचने के लिए शर्मिला अनशन के दौरान अपनी मां से नहीं मिलीं.
(पढ़ें : 16 साल लंबा अनशन तोड़ने के बाद इरोम शर्मिला फिर अस्पताल में भर्ती)
शर्मिला के बड़े भाई सिंहजीत ने कहा कि उनकी मां अपनी बेटी की जीत के क्षण का इंतजार कर रही हैं. यह क्षण तभी आ सकता है, जब अफस्पा हटा दिया जाए. एक-दूसरे से कुछ ही मीटर की दूरी पर रहने के बावजूद मां और बेटी इन सालों में एक ही बार मिली हैं. यह मुलाकात भी तब हो सकी थी, जब शर्मिला की मां को जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया गया था. शर्मिला को यहीं पर पुलिस हिरासत के तहत नाक में नली से जबरन भोजन दिया जा रहा था. सिंहजीत ने बताया कि वर्ष 2009 में उनकी मां अस्थमा अटैक के बाद कोमा में चली गई थीं.
उन्होंने कहा, 'शर्मिला को उनकी मौत का डर था इसलिए वह आधी रात को उसी अस्पताल में भर्ती अपनी मां के वॉर्ड में चली गईं, जब वह मां के चेहरे के करीब गईं तो उनकी मां को अचानक होश आ गया, लेकिन हमारी मां ने उसे फौरन वापस चले जाने के लिए कह दिया था. इसके बाद शर्मिला बिना कुछ कहे एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह वहां से चली गईं.
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सिंहजीत ने अपनी मां और उनकी बहन के बीच उस दौरान हुई बातचीत का जिक्र करते हुए बताया कि उनकी मां ने कहा था, 'जीतने के बाद मेरे पास आना। मैं उस क्षण का इंतजार कर रही हूं, जब तुम घर आओगी और मेरे लिए खाना बनाओगी.' इरोम शर्मिला अपने नौ भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. सिंहजीत ने कहा कि उनकी मां अब भी अपनी उस बात पर कायम हैं.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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