इससे पहले, पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के बाद हुई जनसभा में लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज शामिल नहीं हुए।
                                            
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                                                                                मुंबई: 
                                        मुंबई में बीजेपी की रैली में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह की नीतियों की जमकर आलोचना की।
मोदी ने केंद्र सरकार के तीन साल पूरा होने पर जश्न और दावत मनाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र को आम लोगों की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। केंद्र सिर्फ राजनीति कर रहा है। लोगों की संवेदना की चिंता न मनमोहन सिंह को है और ना ही सोनिया गांधी को।
इससे पहले, पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के बाद हुई जनसभा में लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज शामिल नहीं हुए। हालांकि वजह बताई जा रही है कि अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार ही दोनों नेता इस जनसभा में उपस्थित नहीं हो पाए, लेकिन माना जा रहा है कि कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पार्टी अध्यक्ष के पद पर एक ही व्यक्ति के लगातार दो कार्यकालों को मंजूरी देने के प्रस्ताव को पारित किए जाने से आडवाणी खिन्न हैं, क्योंकि इससे नितिन गडकरी के दूसरे कार्यकाल का रास्ता साफ हो गया।
आडवाणी पिछले कई दशकों से पार्टी की रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं और कभी भी ऐसा मौका नहीं आया, जब इतनी अहम रैली में उन्होंने शिरकत नहीं की हो।
गौरतलब है कि पार्टी कार्यकारिणी की बैठक शुरू होने से पहले ही रूठने-मनाने का दौर बना रहा और पार्टी में अपने विरोधी संजय जोशी के इस्तीफे के बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें शिरकत की। वहीं, येदियुरप्पा भी शुरू में बैठक में शामिल होने से साफ मना कर चुके थे, लेकिन मोदी के वहां पहुंचने के बाद उन्होंने भी अपना इरादा बदल लिया और बैठक में शामिल होने पहुंच गए।
दिन में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हुए केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार पर हमला बोला गया। साथ ही हाल में विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों का जिक्र करते हुए आत्म विश्लेषण की आवश्यकता पर बल दिया गया।
प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिह आजादी के बाद देश की सबसे भ्रष्ट सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। इसमें कहा गया है, "भ्रष्टाचार करना और ऐसा करने वालों को संरक्षण देना मनमोहन सिंह सरकार की विशेषता बन गई है। गठबंधन के सहयोगियों और कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों की भ्रष्टाचार में संलिप्ततता को लेकर अलग-अलग मानदंड बना दिए गए हैं। मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम जब वित्त मंत्री थे तो उस समय 2जी घोटाला हुआ। इसमें स्वयं उनकी भूमिका संदेहास्पद है और इसकी निष्पक्ष जांच कराए जाने की आवश्यकता है। फिर भी वह प्रधानमंत्री के निर्विवाद विश्वासपात्र बने हुए हैं।"
प्रस्ताव के मुताबिक आदर्श घोटाले में महाराष्ट्र के अनेक कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम सामने आए हैं और हैरानी की बात यह है कि उनमें से कई केंद्र सरकार में मंत्री बने हुए हैं। इसी तरह, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित को लगातार संरक्षण दिया जा रहा है, जबकि इस मामले की जांच के लिए खुद प्रधानमंत्री द्वारा गठित शुंगलू समिति की रिपोर्ट में उनकी भूमिका को लेकर गम्भीर टिप्पणी की गई है।
"काले धन का पता लगाने के लिए प्रभावी और अर्थपूर्ण समयबद्घ कार्यक्रम चलाने तथा विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम जनता के सामने लाने के लिए सरकार में राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। सरकार जानती है कि यदि ये नाम उजागर हो जाएं तो उसकी फजीहत होगी।" प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रति गम्भीर नहीं है।
हाल में कई राज्यों में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के बारे में प्रस्ताव में कहा गया है, "पंजाब में अकाली दल, भाजपा गठबंधन भारी बहुमत से विजयी रहा। पिछले 40 वर्ष में पंजाब में वह ऐसी पहली सरकार थी जो सत्ता में रहते हुए दोबारा चुनी गई। जाहिर है कि लोगों ने अकाली-भाजपा सरकार द्वारा किए गए अच्छे कार्यों पर भरोसा किया। इसी तरह गोवा में भाजपा की जीत काबिले तारीफ है।"
उत्तराखण्ड के बारे में कहा गया है, "राज्य में एक सीट कम रहने के कारण हम अपनी सरकार नहीं बना पाए। हमें इससे सबक लेने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम संतोषजनक नहीं रहे। हमें गम्भीरता से आत्म विश्लेषण करने, सुधार करने और पार्टी के कार्यकर्ताओं व समर्थकों को प्रेरित तथा उत्साहित करने की जरूरत है।"
भाजपा के प्रस्ताव में संप्रग सरकार पर संघीय ढांचे के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) की स्थापना के प्रयास और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) तथा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कानून में सुरक्षा संबंधी अधिकार को लेकर केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधन से केंद्र व राज्यों के बीच अविश्वास तथा संदेह बढ़ा है।
                                                                        
                                    
                                मोदी ने केंद्र सरकार के तीन साल पूरा होने पर जश्न और दावत मनाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र को आम लोगों की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। केंद्र सिर्फ राजनीति कर रहा है। लोगों की संवेदना की चिंता न मनमोहन सिंह को है और ना ही सोनिया गांधी को।
इससे पहले, पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के बाद हुई जनसभा में लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज शामिल नहीं हुए। हालांकि वजह बताई जा रही है कि अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार ही दोनों नेता इस जनसभा में उपस्थित नहीं हो पाए, लेकिन माना जा रहा है कि कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पार्टी अध्यक्ष के पद पर एक ही व्यक्ति के लगातार दो कार्यकालों को मंजूरी देने के प्रस्ताव को पारित किए जाने से आडवाणी खिन्न हैं, क्योंकि इससे नितिन गडकरी के दूसरे कार्यकाल का रास्ता साफ हो गया।
आडवाणी पिछले कई दशकों से पार्टी की रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं और कभी भी ऐसा मौका नहीं आया, जब इतनी अहम रैली में उन्होंने शिरकत नहीं की हो।
गौरतलब है कि पार्टी कार्यकारिणी की बैठक शुरू होने से पहले ही रूठने-मनाने का दौर बना रहा और पार्टी में अपने विरोधी संजय जोशी के इस्तीफे के बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें शिरकत की। वहीं, येदियुरप्पा भी शुरू में बैठक में शामिल होने से साफ मना कर चुके थे, लेकिन मोदी के वहां पहुंचने के बाद उन्होंने भी अपना इरादा बदल लिया और बैठक में शामिल होने पहुंच गए।
दिन में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हुए केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार पर हमला बोला गया। साथ ही हाल में विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों का जिक्र करते हुए आत्म विश्लेषण की आवश्यकता पर बल दिया गया।
प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिह आजादी के बाद देश की सबसे भ्रष्ट सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। इसमें कहा गया है, "भ्रष्टाचार करना और ऐसा करने वालों को संरक्षण देना मनमोहन सिंह सरकार की विशेषता बन गई है। गठबंधन के सहयोगियों और कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों की भ्रष्टाचार में संलिप्ततता को लेकर अलग-अलग मानदंड बना दिए गए हैं। मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम जब वित्त मंत्री थे तो उस समय 2जी घोटाला हुआ। इसमें स्वयं उनकी भूमिका संदेहास्पद है और इसकी निष्पक्ष जांच कराए जाने की आवश्यकता है। फिर भी वह प्रधानमंत्री के निर्विवाद विश्वासपात्र बने हुए हैं।"
प्रस्ताव के मुताबिक आदर्श घोटाले में महाराष्ट्र के अनेक कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम सामने आए हैं और हैरानी की बात यह है कि उनमें से कई केंद्र सरकार में मंत्री बने हुए हैं। इसी तरह, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित को लगातार संरक्षण दिया जा रहा है, जबकि इस मामले की जांच के लिए खुद प्रधानमंत्री द्वारा गठित शुंगलू समिति की रिपोर्ट में उनकी भूमिका को लेकर गम्भीर टिप्पणी की गई है।
"काले धन का पता लगाने के लिए प्रभावी और अर्थपूर्ण समयबद्घ कार्यक्रम चलाने तथा विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम जनता के सामने लाने के लिए सरकार में राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। सरकार जानती है कि यदि ये नाम उजागर हो जाएं तो उसकी फजीहत होगी।" प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रति गम्भीर नहीं है।
हाल में कई राज्यों में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के बारे में प्रस्ताव में कहा गया है, "पंजाब में अकाली दल, भाजपा गठबंधन भारी बहुमत से विजयी रहा। पिछले 40 वर्ष में पंजाब में वह ऐसी पहली सरकार थी जो सत्ता में रहते हुए दोबारा चुनी गई। जाहिर है कि लोगों ने अकाली-भाजपा सरकार द्वारा किए गए अच्छे कार्यों पर भरोसा किया। इसी तरह गोवा में भाजपा की जीत काबिले तारीफ है।"
उत्तराखण्ड के बारे में कहा गया है, "राज्य में एक सीट कम रहने के कारण हम अपनी सरकार नहीं बना पाए। हमें इससे सबक लेने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम संतोषजनक नहीं रहे। हमें गम्भीरता से आत्म विश्लेषण करने, सुधार करने और पार्टी के कार्यकर्ताओं व समर्थकों को प्रेरित तथा उत्साहित करने की जरूरत है।"
भाजपा के प्रस्ताव में संप्रग सरकार पर संघीय ढांचे के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) की स्थापना के प्रयास और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) तथा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कानून में सुरक्षा संबंधी अधिकार को लेकर केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधन से केंद्र व राज्यों के बीच अविश्वास तथा संदेह बढ़ा है।
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