शीला दीक्षित 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं और इतने लंबे समय मुख्यमंत्री रहने के बाद स्वाभाविक है कि वो कांग्रेस का बड़ा चेहरा बन गईं। उसके बाद वो चुनाव हार गईं और उन्हीं की पार्टी कांग्रेस ने उन्हीं के विरोधी अरविंद केजरीवाल जिन्होंने उन्हें चुनाव हराया था उनकी सरकार को समर्थन दे दिया।
मतलब साफ़ है कि कांग्रेस की प्राथमिकता शीला दीक्षित नहीं रह गईं थीं। औपचारिक बयान ये दिया गया कि मुद्दों पर सरकार का समर्थन किया गया है, लेकिन क्या इन मुद्दों के पीछे ये बात छिपी थी कि शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ लगे आरोपों की जांच केजरीवाल की सरकार करेगी। अब देखना ये होगा कि अगर ये जांच शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ कांग्रेस को और शर्मसार करती है तो कांग्रेस कहां तक इस आम आदमी पार्टी का साथ निभा पाएगी।
या ये दोनों पार्टियां एक तरफ़ एक बड़े नेता के ख़िलाफ़ जांच की बात करके और दूसरी तरफ़ उन्हीं के समर्थन से सरकार चलाकर खुद ही एक्सपोज़ हो जाएगी। बयानों में मनीष सिसौदिया ने ये नौटंकी भरी बातें ज़रूर की कि हमारा मकसद कोई विशेष व्यक्ति नहीं है, हम सिर्फ़ 31 करोड़ की गड़बड़ी की जांच कराना चाहते हैं। लेकिन, सिसौदिया साहब ये भूल रहे हैं इस गड़बड़ी पर कोई जांच सीधे शीला दीक्षित पर आती है।
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