
आरुषि-हेमराज हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तलवार दंपति को झटका देते हुए उनकी पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है।
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न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति जेएस खेहर की पीठ ने उनकी जमानत याचिका को भी खारिज कर दिया और कहा कि इसमें कोई ठोस आधार नहीं है। पीठ ने उनकी पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा, "हमें पुनरीक्षण याचिका में कोई गुण नजर नहीं आया और निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप को तैयार नहीं हैं।" हालांकि, पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला किया, लेकिन न्यायमूर्ति पटनायक ने निचली अदालत के फैसले के कुछ हिस्सों में कुछ खास खामियों को उल्लेखित करने के लिए अलग से फैसला लिखने को वरीयता दी।
पीठ ने हालांकि, समूची परिस्थितियों और विस्तृत कारणों को देखते हुए विशेष अदालत की आदेश जारी करने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की जरूरत महसूस नहीं की। पीठ ने 16 मई को नूपुर तलवार और सीबीआई के तर्कों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीबीआई ने नूपुर की याचिकाओं का जबर्दस्त ढंग से विरोध किया था।
पुनरीक्षण याचिकाओं पर न्यायाधीश के कक्षों में सुनवाई की सामान्य प्रक्रिया से हटते हुए शीर्ष अदालत ने 15 मार्च को याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई करने का फैसला किया था। याचिका में इसके 6 जनवरी के फैसले की समीक्षा का आग्रह किया गया था। इस फैसले में दोहरे हत्याकांड में आपराधिक कार्यवाही रद्द किए जाने के उनके आग्रह को खारिज करते हुए दंत चिकित्सक दंपति नूपुर तलवार और राजेश तलवार के खिलाफ मुकदमा चलाने का मार्ग प्रशस्त हो गया था।
नूपुर तलवार ने शीर्ष अदालत के समक्ष नए सिरे से जमानत के लिए लिए भी आग्रह किया। पुनरीक्षण याचिका में उन्होंने अपने और अपने पति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही आगे बढ़ाए जाने के फैसले की समीक्षा करने का आग्रह किया। नूपुर तलवार ने तर्क दिया था कि वह हत्याकांड में क्लीन चिट दिए जाने का आग्रह नहीं कर रही हैं, लेकिन यह चाहती हैं कि सीबीआई को मामले की फिर से जांच करने का निर्देश दिया जाए।
14 वर्षीय आरुषि 20008 में 15 और 16 मई की रात नोएडा स्थित अपने आवास पर मृत पाई गई थी। हेमराज का शव अगले दिन मकान की छत से मिला था। नूपुर तलवार इस समय न्यायिक हिरासत में हैं, जबकि उनके पति राजेश तलवार जमानत पर हैं। इस दोहरे हत्याकांड में उनके खिलाफ मुकदमा गाजियाबाद सत्र अदालत में लंबित है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा नूपुर को दिया गया संरक्षण वापस लेने के बाद गाजियाबाद स्थित विशेष सीबीआई अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। इसके बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए नूपुर ने शीर्ष अदालत में आवेदन दायर किया था। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने 27 अप्रैल को उन्हें निर्देश दिया कि वह 30 अप्रैल को गाजियाबाद की निचली अदालत के समक्ष समर्पण कर दें। सीबीआई अदालत द्वारा उनका आग्रह खारिज कर दिए जाने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत भेज दिया गया था।
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