
सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में कर्मचारियों ने उठाई है कई आपत्तियां
नई दिल्ली:
सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रमोशन के नियमों में हुए बदलाव को लेकर केंद्र सरकार के सभी कर्मियों खासतौर पर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के लोगों में काफी नाराज़गी थी. इसका कारण बन रहे एमएसीपी में बदलाव से कर्मचारी काफी नाराज़ थे. लेकिन अब सरकार द्वारा गठित समिति और कर्मचारी संगठनों के नेताओं में हुई बातचीत के बाद सरकार इस मुद्दे पर सुझाव के अनुसार पुनर्विचार पर तैयार हो गई है.
कर्मचारी नेताओं ने इस मुद्दे पर सरकारी पक्ष को अपनी तमाम चिंताओं से अवगत करा दिया है. ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शिवगोपाल मिश्रा ने एनडीटीवी से कहा कि सरकारी पक्ष ने बातचीत में यह कहा है कि वे इस मुद्दे को फिर से देखने को तैयार हैं. हालांकि सरकार की ओर से इस मुद्दे पर किसी प्रकार का आश्वासन नहीं दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिश लागू होने के साथ ही कर्मचारियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत के तौर पर एमएसीपी को सरकार द्वारा स्वीकारना बना. इससे खास तौर पर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नाराजगी खुलकर सामने आई.
एमएसीपी यानी मोडीफाइड एर्श्योड करियर प्रोगेशन. इसके तहत ऐसे केंद्रीय कर्मचारियों का वार्षिक अप्रेजल या इंक्रीमेंट नहीं होगा, जिनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं होगा. वित्त मंत्रालय ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन संबंधी अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि अब कर्मचारियों के प्रमोशन और वार्षिक इंक्रीमेंट के संबंधित बेंचमार्क का नया स्तर 'अच्छा' से 'बहुत अच्छा' कर दिया है.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए मंत्रालय ने यह भी कहा कि पहले की तरह 10 साल, 20 और 30 साल की सेवा से संबंधित मोडीफाइड एर्श्योड करियर प्रोगेशन (एमएसीपी) स्कीम को जारी रखा जाएगा. जिन कर्मचारियों का प्रदर्शन एमएसीपी के लिए निर्धारित बेंचमार्क या पहले 20 सालों की सेवा के दौरान नियमित प्रमोशन के लिए अपेक्षित नहीं पाया जाएगा तो ऐसे कर्मचारियों की वार्षिक इंक्रीमेंट को रोक देने संबंधित सिफारिश को 'स्वीकार' कर लिया गया है.
जानकारी के लिए बता दें कि यह एमएसीपी वर्तमान में लागू है क्योंकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने एमएसीपी को नोटिफाई कर दिया है. लेकिन, इसे लागू कैस किया जाएगा, अभी भी इस मुद्दे पर बातचीत की प्रक्रिया में हैं.
कर्मचारी नेताओं का कहना है कि पहले ही प्रमोशन के नियम पेशेवर नहीं हैं और अब इससे ज्यादा परेशानी होगी. उनका कहना है कि नए नियमों के लागू होने के बाद किसी भी कर्मचारी को तभी तरक्की मिलेगी जब उसका काम 'वेरी गुड' की श्रेणी में आएगा. अब तक "गुड" आने से ही तरक्की का रास्ता खुल जाता था.
बता दें कि वेतन आयोग ने कहा था कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सभी श्रेणियों के लिए कामकाज संबंधी भुगतान (पीआरपी) की व्यवस्था की शुरुआत की जानी चाहिए.
वेतन आयोग के अनुसार कर्मचारियों में ऐसी धारणा है कि वेतन में बढ़ोतरी और पदोन्नति स्वाभाविक रूप से होती है. धारणा यह भी है कि करियर में प्रगति (मोडीफाइड अस्योर्ड करियर प्रोग्रेसन-एमएसीपी) को बड़े ही सामान्य तरीके से लिया जाता है, जबकि इसका संबंध कर्मचारी के कामकाज से जुड़ा होता है.
आयोग ने कहा था, इस आयोग का मानना है कि कामकाज के मापदंड को पूरा नहीं करने वाले कर्मचारियों को भविष्य में सालाना बढ़ोतरी नहीं मिलनी चाहिए. ऐसे में आयोग उन कर्मचारियों के वेतन में वार्षिक बढ़ोतरी को रोकने का प्रस्ताव देता है जो पहले 20 साल की सेवा के दौरान एमएसीपी या नियमित पदोन्नति के लिए तय मापदंड को पूरा नहीं करते हैं.
वेतन आयोग ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था, 'यह लापरवाह और अक्षम कर्मचारियों के लिए प्रतिरोधक का काम करेगा. यह जुर्माना नहीं है, ऐसे में अनुशासनात्मक मामलों में दंडात्मक कार्रवाई के लिए बने नियम ऐसे मामलों में लागू नहीं होंगे. इसे कार्य क्षमता बढ़ाने के तौर पर देखा जाएगा.' आयोग ने कहा कि ऐसे कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की तय शर्तों पर ही सेवा से मुक्त हो सकते हैं.
कर्मचारियों को 10, 20 और 30 साल की सेवा में एमएसीपी मिलता है. आयोग ने इस समय अंतराल को बढ़ाने की मांग ठुकरा दी. केंद्र सरकार के तहत करीब 47 लाख कर्मचारी काम करते हैं. वेतन आयोग का मानना है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए पीआरपी के जरिये मंत्रालयों एवं विभागों में कामकाज को बढ़ाने के लिए विश्वसनीय रूपरेखा होनी चाहिए.
कर्मचारी नेताओं ने इस मुद्दे पर सरकारी पक्ष को अपनी तमाम चिंताओं से अवगत करा दिया है. ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शिवगोपाल मिश्रा ने एनडीटीवी से कहा कि सरकारी पक्ष ने बातचीत में यह कहा है कि वे इस मुद्दे को फिर से देखने को तैयार हैं. हालांकि सरकार की ओर से इस मुद्दे पर किसी प्रकार का आश्वासन नहीं दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिश लागू होने के साथ ही कर्मचारियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत के तौर पर एमएसीपी को सरकार द्वारा स्वीकारना बना. इससे खास तौर पर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नाराजगी खुलकर सामने आई.
एमएसीपी यानी मोडीफाइड एर्श्योड करियर प्रोगेशन. इसके तहत ऐसे केंद्रीय कर्मचारियों का वार्षिक अप्रेजल या इंक्रीमेंट नहीं होगा, जिनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं होगा. वित्त मंत्रालय ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन संबंधी अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि अब कर्मचारियों के प्रमोशन और वार्षिक इंक्रीमेंट के संबंधित बेंचमार्क का नया स्तर 'अच्छा' से 'बहुत अच्छा' कर दिया है.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए मंत्रालय ने यह भी कहा कि पहले की तरह 10 साल, 20 और 30 साल की सेवा से संबंधित मोडीफाइड एर्श्योड करियर प्रोगेशन (एमएसीपी) स्कीम को जारी रखा जाएगा. जिन कर्मचारियों का प्रदर्शन एमएसीपी के लिए निर्धारित बेंचमार्क या पहले 20 सालों की सेवा के दौरान नियमित प्रमोशन के लिए अपेक्षित नहीं पाया जाएगा तो ऐसे कर्मचारियों की वार्षिक इंक्रीमेंट को रोक देने संबंधित सिफारिश को 'स्वीकार' कर लिया गया है.
जानकारी के लिए बता दें कि यह एमएसीपी वर्तमान में लागू है क्योंकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने एमएसीपी को नोटिफाई कर दिया है. लेकिन, इसे लागू कैस किया जाएगा, अभी भी इस मुद्दे पर बातचीत की प्रक्रिया में हैं.
कर्मचारी नेताओं का कहना है कि पहले ही प्रमोशन के नियम पेशेवर नहीं हैं और अब इससे ज्यादा परेशानी होगी. उनका कहना है कि नए नियमों के लागू होने के बाद किसी भी कर्मचारी को तभी तरक्की मिलेगी जब उसका काम 'वेरी गुड' की श्रेणी में आएगा. अब तक "गुड" आने से ही तरक्की का रास्ता खुल जाता था.
बता दें कि वेतन आयोग ने कहा था कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सभी श्रेणियों के लिए कामकाज संबंधी भुगतान (पीआरपी) की व्यवस्था की शुरुआत की जानी चाहिए.
वेतन आयोग के अनुसार कर्मचारियों में ऐसी धारणा है कि वेतन में बढ़ोतरी और पदोन्नति स्वाभाविक रूप से होती है. धारणा यह भी है कि करियर में प्रगति (मोडीफाइड अस्योर्ड करियर प्रोग्रेसन-एमएसीपी) को बड़े ही सामान्य तरीके से लिया जाता है, जबकि इसका संबंध कर्मचारी के कामकाज से जुड़ा होता है.
आयोग ने कहा था, इस आयोग का मानना है कि कामकाज के मापदंड को पूरा नहीं करने वाले कर्मचारियों को भविष्य में सालाना बढ़ोतरी नहीं मिलनी चाहिए. ऐसे में आयोग उन कर्मचारियों के वेतन में वार्षिक बढ़ोतरी को रोकने का प्रस्ताव देता है जो पहले 20 साल की सेवा के दौरान एमएसीपी या नियमित पदोन्नति के लिए तय मापदंड को पूरा नहीं करते हैं.
वेतन आयोग ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था, 'यह लापरवाह और अक्षम कर्मचारियों के लिए प्रतिरोधक का काम करेगा. यह जुर्माना नहीं है, ऐसे में अनुशासनात्मक मामलों में दंडात्मक कार्रवाई के लिए बने नियम ऐसे मामलों में लागू नहीं होंगे. इसे कार्य क्षमता बढ़ाने के तौर पर देखा जाएगा.' आयोग ने कहा कि ऐसे कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की तय शर्तों पर ही सेवा से मुक्त हो सकते हैं.
कर्मचारियों को 10, 20 और 30 साल की सेवा में एमएसीपी मिलता है. आयोग ने इस समय अंतराल को बढ़ाने की मांग ठुकरा दी. केंद्र सरकार के तहत करीब 47 लाख कर्मचारी काम करते हैं. वेतन आयोग का मानना है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए पीआरपी के जरिये मंत्रालयों एवं विभागों में कामकाज को बढ़ाने के लिए विश्वसनीय रूपरेखा होनी चाहिए.
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