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This Article is From Sep 15, 2015

पीएचडी, डॉक्टर, इंजीनियर भी बनना चाहते हैं चपरासी, 368 पदों के लिए 23 लाख अर्जियां

पीएचडी, डॉक्टर, इंजीनियर भी बनना चाहते हैं चपरासी, 368 पदों के लिए 23 लाख अर्जियां
चपरासी पद के लिए बीटेक की उपाधि प्राप्त आलोक चौरसिया।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार एक बड़ी मुसीबत में फंस गई है। विधान सभा सचिवालय में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख से ज्यादा लोगों ने एप्लाई कर दिया है। इनमें 255 पीएचडी, डेढ़ लाख से ज्यादा बी टेक ,बीएससी ,बी कॉम  और 25000 आवेदक एमएससी ,एम कॉम और एम ए हैं। इनकी भर्ती इंटरव्यू से होनी है जिसमें चार साल से ज्यादा वक्त लगेगा। सरकार एक्सपर्ट्स की राय ले रही है कि ऐसे हालात में वह चपरासियों की भर्ती कैसे करे?

आवेदनों की तादाद ने उड़ा दिए अफसरों के होश
विधान सभा सचिवालय में 10 साल के बाद चपरासियों की पोस्ट के इश्तेहार निकले। इस बार ऑनलाइन आवेदन करने की व्यवस्था की गई। अर्ज़ी देने की मियाद पूरी हुई और अफसरों ने अर्जियों की तादाद पता की तो उनके होश उड़ गए। चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख से ज्यादा अर्ज़ियां आ गईं। सरकार की तरफ से चपरासी के पद के लिए दो ही योग्यताएं मांगी गई थीं कि आवेदक को पांचवी पास होना चाहिए और उसे साइकिल चलाना आना चाहिए। लड़कियों और विकलांगों के लिए साइकिल चलाना आना जरूरी नहीं है। अब जब इन अर्जियों का विश्लेषण  किया गया तो पता चला कि इनमें दरजा पांच पास तो सिर्फ 53000 लोग ही हैं, लेकिन 153000 लोग बी टेक,बीएससी, बी कॉम और बी ए हैं।

बिना नौकरी से बेहतर है चपरासी होना
बड़ी तादाद में चपरासी बनने के दावेदारों में बी टेक किए हुए नौजवान हैं। लखनऊ के पारा इलाके में रहने वाले आलोक चौरसिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में बी टेक किया है। पिछले एक साल से कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली, लिहाजा सचिवालय में चपरासी पद के दावेदार हैं। अलोक कहते हैं कि 'मंदी की वजह से मार्किट में नौकरियां नहीं हैं। ऐसे में कितने दिन बेरोजगार रहा जा सकता है। सोचा कि खाली रहने से बेहतर है कि चपरासी का ही काम कर लें।'

चार साल में हो पाएंगे सभी के इंटरव्यू
चपरासी की भर्ती के लिए सिर्फ इंटरव्यू होता है। अगर 23 लाख लोगों के इंटरव्यू किए जाएं तो इसमें 10 इंटरव्यू बोर्ड बनाने पर भी 4 साल से ज्यादा वक्त लगेगा। भर्ती का कोई और तरीका अपनाने के लिए भर्ती नियमावली बदलनी होगी। अगर नियमावली बदली गई तो दुबारा अर्ज़ियां मांगनी होंगी। सरकार के मंत्री अम्बिका चौधरी कहते हैं कि 'इससे एक और समस्या पैदा हो सकती है। हो सकता है कि इतना पढ़ने-लिखने के बाद चपरासी बनने वाला कुंठा का शिकार हो जाए। यह भी हो सकता है कि इतने पढ़े-लिखे चपरासी से काम लेने में अफसरों को भी हिचकिचाहट हो।'

पुराने चपरासी आशंकाओं से घिरे
काम पढ़े-लिखे पुराने चपरासी भी भविष्य के इन विद्वान चपरासियों से आशंकित हैं। उन्हें लगता है कि इतने पढ़े-लिखे चपरासी मुमकिन है कि उनके साथ भेदभाव करें। बहरहाल अगर पीएचडी किए हुए यह 255 लोग चपरासी बन गए तो शायद सचिवालय में बाबू उनसे कुछ यूं काम करा रहे होंगे…'डॉक्टर साहब ! मेज़ कुर्सी ठीक से साफ़ कीजिए। '…या फिर 'डॉक्टर साहब ! पानी पिलाइए। ' वगैरह।

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