2019 लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी में भी मंथन, टिकट काटने से लेकर नए समीकरणों पर विचार

2014 में मोदी मैजिक के चलते मिली करारी हार को विपक्ष ने गंभीरता से लिया और लगातार यह देखा गया कि इन चार सालों में विपक्ष ने एक दूसरे पर हमले कम किए और सीधा निशाना पीएम नरेंद्र मोदी, उनकी नीतियां और पार्टी पर ही रखा.

2019 लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी में भी मंथन, टिकट काटने से लेकर नए समीकरणों पर विचार

बीजेपी के वरिष्ठ नेता.

खास बातें

  • बीजेपी ने 2019 की तैयारी शुरू की
  • कुछ सांसदों के टिकट कटने की संभावना
  • यूपी को लेकर बीजेपी में चिंता.
नई दिल्ली:

2018 का पहला महीना बीतने को है और देश की राजनीति का तापमान बढ़ना शुरू हो गया है. 2018 में ही राजनीतिक दल 2019 की तैयारी में जुट गए हैं. कुछ पार्टियां जहां अपने अपने उम्मीदवारों के टिकटों को तय कर चुकी हैं तो कुछ इस प्रक्रिया को आरंभ कर चुकी है. यानि 2014 में मोदी मैजिक के चलते मिली करारी हार को विपक्ष ने गंभीरता से लिया और लगातार यह देखा गया कि इन चार सालों में विपक्ष ने एक दूसरे पर हमले कम किए और सीधा निशाना पीएम नरेंद्र मोदी, उनकी नीतियां और पार्टी पर ही रखा. यह भी देखा गया कि इन सालों में विपक्ष ने कोई मौका नहीं छोड़ा जहां पर बीजेपी और मोदी पर हमला किया जा सके.

उधर, भारतीय जनता पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 से भी अच्छा प्रदर्शन दोहराने के प्रयास में है. इसको लेकर पार्टी काफी गहन मंथन पर रही है और उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सूबे की 80 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है.

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पार्टी के भीतर के लोगों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के इस अभियान को लेकर सबसे बड़ी चुनौती अपने ही सांसद बन गए हैं. क्षेत्र में उनकी छवि ठीक नहीं है और कार्यकर्ताओं का असंतोष चरम पर है. पार्टी की कसौटी पर दो-तीन दर्जन से ज्यादा सांसद खरे नहीं उतर रहे हैं. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इनका टिकट कट सकता है.

गौरतलब है कि हाल ही में सीतापुर के महोली में तहसील परिसर में हाल में कंबल वितरण कार्यक्रम के दौरान धौरहरा की सांसद रेखा वर्मा एवं महोली के विधायक शशांक त्रिवेदी के बीच टकराव हो गया था. दोनों के समर्थकों में सिरफुटव्वल हो गया. पार्टी को इस प्रकार की घटना से चिंता हो गई. इसका कारण यह है कि यह केवल एक घटना ही नहीं बल्कि अनुशासित पार्टी समझी जाने वाली बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती भी है. 

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पार्टी की चिंता और नाराजगी का कारण यह भी है कि पीएम मोदी, सरकार और पार्टी की ओर से इन सांसदों को जो भी कार्यक्रम और लक्ष्य सौंपे गये उसमें कई सांसदों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. यह अलग बात है कि यूपी विधानसभा चुनावों में भी तमाम दावों के बावजूद मोदी लहर का असर दिखाई दिया. पार्टी के नेताओं का मानना है कि विधानसभा चुनाव में बेहतर रिजल्ट आने की वजह से सांसदों की कमी छिप गई, लेकिन निकाय चुनाव और अन्य कार्यक्रमों ने उनकी भूमिका उजागर की है. 

पार्टी को निकाय चुनावों ने कुछ समझने का मौका दिया. निकाय चुनाव में खराब परिणाम वाले कई क्षेत्रों के ऐसे सांसद भी चिह्नित किये जा रहे हैं जिनका कार्य और व्यवहार दोनों ठीक नहीं है. यूपी भाजपा अध्यक्ष डॉ महेंद्रनाथ पांडेय और संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने कार्यकर्ताओं से मिली शिकायत के आधार पर दो दर्जन से ज्यादा ऐसे सांसदों की सूची तैयार की है जिनकी जनता के बीच नकारात्मक छवि बनी हुई है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि पश्चिम से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक ऐसे सांसदों के बारे में अमित शाह से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी तक अवगत कराया जा चुका है.

भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लिए राज्य की 80 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए वह जनता के बीच लोकप्रिय और प्रभावी लोगों को मौका देने की तैयारी कर रही है. 2014 में लोकसभा चुनाव और 2017 में विधानसभा चुनावों में जिस प्रकार बीजेपी ने अपनी रणनीति को लागू किया और जीत हासिल की, वैसे अब बीजेपी के रणनीतिकार यह मान रहे हैं कि उस रणनीति में ज्यादा बदलाव की स्थिति नहीं है. पार्टी को अभी भी यही लग रहा है कि 2019 के चुनाव में भी वही रणनीति कामयाब रहेगी. 

VIDEO: एक देश में एक चुनाव

बीजेपी अपने कई विधायकों को इसके लिए संकेत दे चुकी है कि वह क्षेत्र में मेहनत करें. पार्टी में इस बात का भी मंथन चल रहा है कि जिस बिरादरी के सांसद का टिकट कटेगा, उसी बिरादरी को मौका दिया जाएगा. अगर संबंधित जाति की बात पक्की नहीं हो सकी तो अगड़ों की जगह अगड़ा और पिछड़ों में पिछड़ी जाति को ही मौका देंगे. प्रदेश सरकार के कुछ मंत्री भी लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाये जा सकते हैं. 
 


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