
Stem Cell Therapy: आजकल स्टेम सेल थेरेपी का नाम खूब सुनने को मिल रहा है. कई बड़ी बीमारियों में इसका इस्तेमाल हो रहा है, जैसे लगातार रहने वाला दर्द, अचानक लगी चोट, ब्लड से जुड़ी दिक्कतें, बोन मैरो संबंधित परेशानी, और यहां तक कि एजिंग को भी रोकने के लिए लोग इसे आजमा रहे हैं. इस ट्रीटमेंट में खास बात ये है कि ये बॉडी को खुद-ब-खुद यानी अपने आप रिपेयर करने में मदद करता है. दर्द और सूजन कम करता है, और जो सेल्स खराब हो गए हैं उन्हें फिर से बनने में मदद करता है. आसान भाषा में कहें तो इसकी मदद से बॉडी खुद की ऑटो रिपेयरिंग करती है.
स्टेम सेल क्या होते हैं? (What Is Stem Cell)
इन्हें आप शरीर के शुरुआती या बेसिक सेल्स कह सकते हैं. मतलब ये कि इनमें इतनी ताकत होती है कि जरूरत पड़ने पर ये शरीर के किसी भी दूसरे सेल की तरह बन सकते हैं, चाहे वो स्किन हो, मसल्स हो या ब्लड. इन सेल्स की मदद से किसी भी नुकसान की पूर्ति की जा सकती है. जैसे बच्चे के जन्म से पहले जो सेल्स होते हैं, वो किसी भी अंग में बदल सकते हैं. वैसे ही कुछ स्टेम सेल्स बड़ों के शरीर में भी होते हैं, जो थोड़े लिमिटेड होते हैं लेकिन फिर भी बहुत काम के होते हैं.
क्या स्टेम सेल थेरेपी अभी नई चीज है?
नहीं, इसका आइडिया नया नहीं है. इसकी शुरुआत 1800s के आखिरी सालों में हुई थी. 1888 में दो जर्मन साइंटिस्ट्स थे, थियोडोर बोवेरी और वैलेंटिन हेकर. इन्होंने सबसे पहले ‘स्टेम सेल' शब्द का इस्तेमाल किया.
पर इलाज के लिए इसका इस्तेमाल कई सालों बाद शुरू हुआ. 1958 में फ्रांस के डॉक्टर जॉर्ज माथे ने एक बीमार मरीज को बोन मैरो ट्रांसप्लांट दिया. उस समय किसी को ये नहीं पता था कि इसमें काम करने वाली चीज असल में स्टेम सेल ही हैं. बाद में, 1963 में दो साइंटिस्ट्स- अर्नेस्ट मैक्कलक और जेम्स टिल ने ये साबित किया कि ऐसे सेल्स वाकई होते हैं जो जरूरत पड़ने पर खुद को बदल सकते हैं और नई जगह पर जाकर काम कर सकते हैं.
स्टेम सेल से इलाज करना कैसे मुमकिन हुआ?
जब ये समझ में आ गया कि ऐसे सेल्स होते हैं, तब अगला सवाल था कि इन्हें शरीर से निकालकर कैसे इस्तेमाल करें? 1981 में पहली बार चूहों के भ्रूण (Embryo) से ऐसे सेल्स निकाले गए. इसके कुछ साल बाद, 1988 में इंसान के भ्रूण से भी स्टेम सेल निकालने में सफलता मिली. लेकिन ये तरीका ठीक नहीं माना गया, क्योंकि किसी इंसान के भ्रूण से सेल्स निकालना एथिकल यानी नैतिक तौर पर सही नहीं था.
इसके बाद हल कहां से निकला?
2005 में एक बड़ी खोज हुई. पता चला कि बच्चे के जन्म के बाद जो अंबिलिकल कॉर्ड (नाल) बचती है, उसमें भी स्टेम सेल्स होते हैं. और ये नाल आसानी से और बिना किसी नुकसान के मिल सकती है. इसके अगले ही साल, 2006 में जापान के साइंटिस्ट्स ने एक और कमाल किया. उन्होंने इंसान की स्किन से एक खास तरह के सेल लिए और उन्हें दोबारा स्टेम सेल जैसा बना दिया. इन्हें कहते हैं (Induced Pluripotent Stem Cells) यानी बिना भ्रूण के, वैसे ही काम करने वाले सेल्स. 2007 में एम्नियोटिक फ्लूइड (जो मां के पेट में बच्चे के आसपास होता है) में भी स्टेम सेल्स मिल गए. और 2008 में तो एक इंसान के बाल से भी ऐसे सेल्स निकाल लिए गए.
अब हालात ये हैं कि स्टेम सेल्स शरीर के कई हिस्सों से निकाले जा सकते हैं. जैसे खून, फैट, नाल का ब्लड, एम्नियोटिक फ्लूइड, व्हार्टन जैली और यहां तक कि बालों से भी. और इन्हें वापस शरीर में इंजेक्ट करके इलाज किया जाता है.
तो क्या कोई एक इंसान है जिसने स्टेम सेल थेरेपी बनाई?
नहीं. ये किसी एक का काम नहीं है. कई सालों तक हजारों साइंटिस्ट्स ने इस पर मेहनत की है. कई रिसर्च, कई ट्रायल्स और मरीजों के अनुभवों से आज ये थेरेपी इस मुकाम पर पहुंची है.
स्टेम सेल ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है?
आइए जानते हैं कि ये थेरेपी या ट्रीटमेंट इंसानों को किस तरह से दिया जाता है-
सबसे पहले बॉडी से लिए गए स्टेम सेल्स को फिर से किसी खास जगह पर इंजेक्ट किया जाता है, जैसे घुटना, कंधा या रीढ़ की हड्डी या जहां भी समस्या होती है. कई बार ये IV यानी ड्रिप के जरिए भी दिए जाते हैं. ये सेल्स वहां जाकर दूसरे सेल्स की तरह काम करने लगते हैं, दर्द कम करते हैं और नई सेल्स बनाने में मदद करते हैं. खास बात ये है कि जो स्टेम सेल्स नाल, एम्नियोटिक फ्लूइड या व्हार्टन जैली से मिलते हैं, उनमें वो चीजें नहीं होतीं जिनसे बॉडी में रिएक्शन हो, इसलिए ये ज़्यादा सेफ माने जाते हैं.
फिलहाल ये इलाज इतना कॉमन क्यों नहीं है?
असल में अभी सिर्फ कुछ खास बीमारियों जैसे ब्लड कैंसर के लिए ये FDA से अप्रूव्ड है. और सिर्फ वहीं पर इंश्योरेंस इसे कवर करता है. बाकी मामलों में, ये इलाज खुद के खर्चे पर करवाना पड़ता है. लेकिन लोग फिर भी इसे आजमा रहे हैं. खासकर स्पोर्ट्स पर्सन, सेलेब्रिटी और वो लोग जिन्हें पुराना दर्द या कोई लंबी बीमारी है.
कुछ मशहूर खिलाड़ी जिन्होंने स्टेम सेल थेरेपी ली
क्रिस्टियानो रोनाल्डो – घुटने की चोट के बाद उन्होंने स्टेम सेल ट्रीटमेंट लिया.
राफेल नडाल – पहले घुटने और फिर कमर के लिए स्टेम सेल थेरेपी ली.
कोबी ब्रायंट – घुटनों की परेशानी के लिए जर्मनी में इलाज कराया.
बार्तोलो कोलोन – उनके बोन मैरो और फैट से निकाले गए सेल्स को उनके कंधे और कोहनी में लगाया गया.
सी.जे. निटकोव्स्की – कंधे की पुरानी परेशानी के लिए स्टेम सेल थेरेपी ली और फिर न्यूयॉर्क मेट्स से वापसी की.
क्या आप इसे आजमा सकते हैं?
अगर आप लंबे समय से किसी दर्द, चोट या पुरानी बीमारी से परेशान हैं और दवाओं से खास आराम नहीं मिल रहा, तो स्टेम सेल थेरेपी आपके लिए एक नया रास्ता हो सकती है. इस ट्रीटमेंट को शुरू करने से पहले क्लिनिक में एक फ्री कंसल्टेशन दिया जाता है, जिसमें आपकी परेशानी को अच्छे से समझा जाता है. फिर ये तय किया जाता है कि ये थेरेपी आपके लिए असरदार होगी या नहीं.
अगर कोई इस बारे में सोच रहा है, तो बेहतर होगा कि वो पहले पूरी जानकारी हासिल करे, एक्सपर्ट से सलाह ले और तभी कोई फैसला करे. क्योंकि जैसा हर नई तकनीक के साथ होता है, स्टेम सेल थेरेपी के भी अपने फायदे और सीमाएं हैं, जिन्हें ठीक से समझना सबसे ज़रूरी है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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