विटामिन डी के विशेष स्तर की कमी से हो सकते हैं दिल के रोग

लंबे समय तक शरीर में विटामिन डी की कमी से हृद्य संबंधी रोग हो सकते हैं

विटामिन डी के विशेष स्तर की कमी से हो सकते हैं दिल के रोग

विटामिन डी की कमी मतलब दिल को खतरा। लंबे समय तक शरीर में विटामिन डी की कमी से हृद्य संबंधी रोग हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने हार्ट अटैक और स्ट्रोक बढ़ने के विशेष खतरे के स्तर की पहचान की है। उटाह के साल्ट लेक सिटी में इंटरमाउंटेन मेडिकल सेंटर हार्ट इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के अनुसार, रोगियों में 15 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर से कम विटामिन डी होने पर हृद्य संबंधी रोगों का खतरा काफी बढ़ जाता है। सामान्य ब्लड टेस्ट द्वारा ही बॉडी में विटामिन डी की कमी का पता लगाया जा सकता है।

 

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इंटरमाउंटेन मेडिकल सेंटर हार्ट इंस्टीट्यूट के कार्डियोवस्क्यूलर रिसर्च के डायरेक्टर जे. ब्रेंट मुहलेसटेइन का कहना है कि, “हालांकि 30 से ऊपर विटामिन डी का स्तर पारंपरिक रूप से सामान्य माना जाता है। हाल ही में कुछ शोधकर्ताओं ने प्रस्ताव रखा कि 15 से ऊपर का स्तर सुरक्षित है।” लेकिन उन्होंने कहा कि, “अभी तक रिसर्च के साथ नंबर्स को समर्थन नहीं दिया गया।”
 
ऑरलैंडो, फ्लोरिडा में अमेरिकन साइंटिफिक सेशन में पेश किए निष्कर्ष का डाटाबेस तकरीबन 230,000 से भी ज़्यादा रोगियों पर आधारित था, जिन्हें तीन साल तक फॉलो किया गया। शोधकर्ताओं ने मृत्यु, कोरोनरी आट्री रोग, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, हार्ट और किडनी का फेल होना आदि के साथ प्रमुख हानिकर हृद्य की घटनाओं पर नज़र रखी।
 
उच्चतम खतरे के ग्रुप में 15 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर से ज़्यादा विटामिन डी वाले लोगों के मुकाबले, दूसरे लोगों में हृद्य संबंधी रोग होने का खतरा 35 प्रतिशत बढ़ गया। लगभग दस लोगों में से एक व्यक्ति में विटामिन डी का स्तर कम होने का अनुमान है। विटामिन डी स्वभाविक रूप से बॉडी द्वारा ही निर्मित किया जाता है, जब व्यक्ति धूप में निकलता है तो उसे विटामिन डी मिलता है। साथ ही यह फिश, अंडे के पीले भाग और कुछ डेयरी प्रॉडक्ट में पाया जाता है।

 

 

मुहलेसटेइन ने कहा कि वह विटामिन डी कमी वाले रोगियों के साथ परिक्षण करने की सोच रहे हैं कि क्या लंबे समय तक पूरक आहार से रोगियों मे हार्ट संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है या नहीं।

उन्होंने कहा कि, “हम विटामिन डी और हार्ट पर अध्ययन करेंगे, ताकि हमें पूरी जानकारी मिल सके और हम रोगियों को सूचित कर सकें कि हृद्य संबंधी रोग को दूर करने के लिए वह क्या संभव चीज़ें कर सकते हैं।”

 

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