
इंसान की आदत होती है कि वह हमेशा किसी नई चीज की ही तलाश में रहता है, भले ही वह कोई अनदेखा प्लेस हो या फिर कोई अंजान रेस्तरां। यहां का कल्चर और फ्लेवर उन्होंने पहले कभी टेस्ट नहीं किया होता, लेकिन ताज़गी के लिए वह यहीं जाना पसंद करते हैं। जिंदगी के छोटे-छोटे अनुभव हमें अहसास कराते हैं कि हमारा अतीत कभी पुराना नहीं हो सकता क्योंकि उसकीं जड़े हमारे जीवन के साथ ही जुड़ी होती हैं।
ऐसा ही हाल फूड के साथ भी है। भारत धीरे-धीरे एक लज़ीज बाजार के रूप में उभर कर आ रहा है और ग्लोबल फूड को गले लगा रहा है और पिछले कई दशकों में यह उत्साह और बढ़ा है। राजधानी, दिल्ली और कई बड़े महानगर, कुछ साल पहले से काफी आगे निकल आए हैं। आज अगर कोई बाहर खाना खाने जाता है, तो कई ऑफर्स के साथ उसके लिए कई नए विकल्प मौजूद हैं।
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लेकिन सही में क्रीमी थाई करी, सुशी खाने के बाद ऐसा लगता है कि क्या हमें साधारण, क्लासिक भारतीय खाने की लालसा नहीं है? समय के साथ चखे गए व्यंजन और सदाबहार पसंद किए जाने वाले फ्लेवर हमें हमेशा ही लुभाते रहे हैं। जैसे ही हम उन पुराने स्वाद की तलाश करते हैं तो हम उन अनोखे रेस्तरां की ओर ही मुड़ते हैं जो तब से हमारे आस-पास बने हुए हैं।
इस आर्टिकल के जरिए हम नॉर्थ और ईस्ट इंडिया के उन रेस्तरां के बारे में आपको बता रहे हैं, जो हमेशा से लोगों को पसंद रहे हैं। यही नहीं, इन रेस्तरां की ख़ास बात यह है कि स्वतंत्रा से पहले से यह भारत में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। ये पुराना और साधारण खाना सिर्फ स्थानीय लोगों द्वारा ही पसंद नहीं किया जाता, बल्कि यहां आने वाले ट्यूरिट भी इन्हें खूब पसंद करते हैं। यह समय के साथ आगे बढ़ गए, लेकिन अपने साथ पुराने समय के टेस्ट को लाना यह नहीं भूलें और यही बात इनकी लोकप्रियता को कम नहीं होने देती।
दिल्ली
करीम्सः राजधानी में यह सबसे फेमस खाने की जगह है। कई अवॉर्ड विजेता और कई पुरस्कार पाने वाले करीम अपने लाजवाब नॉनवेज के लिए फेमस हैं, जो कि 1913 से आपके लिए लज़ीज नॉन-वेज परोसते आ रहे हैं। यही नहीं, धीरे-धीरे राजधानी से बाहर भी करीम्स ने अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए हैं। इसने मुगल काल के रहस्यमयी टेस्ट को अभी तक बरकरार रखा हुआ है।

“रॉयल खाना पकाना करीम्स का वंशानुगत पेशा है क्योंकि बाबर के समय से मुगल जहां भी गए, वह हमारे पूर्वजों को अपने साथ ले गए। 1911 में हाज़ी करीमुद्दीन किंग जॉर्ज 5 राज्याभिषेक के लिए भारत के कोने-कोने से आए लोगों की खातिरदारी के लिए ढाबा खोलने के नए आइडिए के साथ आया। हाज़ी करीमुद्दीन ने ढाबा शुरू किया और उस पर सिर्फ दो चीजें आलू गोश्त और रुमाली रोटी के साथ दाल परोसी।” 1913 में, हाज़ी करीमुद्दीन ने गली कबाबीअन, जामा मस्जिद, दिल्ली में करीम होटल खोला। करीम्स की ऑफिशियल वेबसाइट पर कहा गया है कि,“मैं आम आदमी को रॉयल फूड परोस कर नाम और पैसा कमाना चाहता था।”
16, गली कबाबीअन, जामा मस्जिद, नई दिल्लीः चावड़ी बाज़ार मेट्रो स्टेशन के पास
दो लोगों के लिएः 800 रुपये
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यूनाइटेड कॉफी हाउसः 1942 में खुला यूनाइटेड कॉफी हाउस आज भी राजधानी के फूड लवर्स के दिल में मौजूद है। कनॉट प्लेस में बसा यह कॉफी हाउस दावा करता है कि दिल्ली में कुछ ही रेस्तरां ऐसे थे जिन्होंने फाइन-डाइनिंग की पेशकश की थी, जिनमें से एक यूनाइटेड कॉफी हाउस भी है। जब से इसने अपने गेट जनता के लिए खोले हैं, तब से राजनेता, राजनायकों, नौकरी-पेशा लोग, आर्टिस्ट और ट्यूरिस्टों ने यहां आना शुरू कर दिया। इसकी सजावट कई सालों से एक जैसी-ही है और आजादी से पहले की प्राचीनता को बरकरार रखा हुआ है। खाने के हिसाब से ही बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं, आपके लिए यहां के मैन्यू में बहुत सी वैरायटी भी मौजूद है।
इसमें क्लासिक यूरोपीयन तैयारी से लेकर मेडिटेरेनियन और भारतीय खाना हाल ही में जोड़ा गया है। यहां का खाना देसी जायके और इंटरनैशनल क्लासिक का दिलचस्प मिश्रण है।

ई-15, क्नॉट प्लेस, नई दिल्लीः राजीव चौक, मेट्रो स्टेशन के पास
दो लोगों के लिएः 2100
मोती महलः लोगों के दिल में अपनी ख़ास जगह बना चुका मोती महल रेस्तरां भी 1947 में दरिया गंज में खुला था। इसे 1991 में ओनर कुंदन लाल गुजराल ने विनोद चड्ढा से खरीदा था। दरियागंज में स्थित रेस्तरां उनकी कोई ओर चेन न होने का दावा करते हैं, जबकि कुंदन गुजराल का पोता मोनीश गुजराल देश भर में इसकी चेन फैलाने के लिए तैयार हैं।
यकीनन, देश को तंदूरी खाने से पहचान करवाने वाला पहला रेस्तरां दरियागंज स्थित मोती महल ही है। कई फेमस हस्तियां भी यहां का तंदूरी स्वाद चख चुकी हैं जैसे- पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और हाल ही में इंटरनैशनल शेफ गॉर्डन रामसे ने यहां का तंदूरी स्वाद चखा। यहां के व्यंजन की सुंदरता देखते ही आपके मुंह में पानी आ जाएगा। अपनी लाइफ में एक बार यहां का फूड जरूर ट्राई करें।
3704, नेता सुभाष मार्ग, दरिया गंज, चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेसन के पास
दो लोगों के लिएः 1100
लखनऊ
टुंडे कबाबीः लखनऊ का नाम लेते ही वहां के फेमस टुंडे कबाबी द्वारा सर्व किए जाने वाले गिलौटी कबाब का टेस्ट आपकी भूख बढ़ा देगा। यह जगह दुनियाभर में खूब प्रसिद्ध है, जो कि पुराने लखनऊ की छोटी गलियों में स्थित है। यह करीब 100 साल पुराना रेस्तरां हैं। ऐसा माना जाता है कि यह शॉप हाज़ी मुराद द्वारा 1905 में स्थापित की गई थी और तब से ही यह शॉप देशभर में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में पैर पसार रही है।

हाज़ी मुराद अली का एक हाथ नहीं था, फिर भी उन्हें लखनऊ के स्टार कुक के नाम से जाना जाता था। दिलचस्प बात यह है कि टुंडे कबाबी की विरासत आज भी जिंदा है, वही मिश्रण और मसालों के साथ, जिनसे लज़ीज कबाब, बिरयानी, कोरमा और दूसरी नॉन वेज डिश बनाई जाती हैं।
151, फूल वाली गली, चौक, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
दो लोगों के लिएः 400 रुपये
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इलाहाबाद
हरी राम एंड सन्सः इलाहाबाद मुंह में पानी लाने वाली चाट और स्ट्रीट फूड के लिए जाना जाता है। हरी राम एंड सन्स शहर में सबसे पुरानी स्ट्रीट फूड शॉप के लिए फेमस है, 1890 से अभी तक यह अपने मूल को बनाए रखता आ रहा है। अपनी चटकारेदार चाट से लेकर पालक की नमकीन, मसाला समोसा, छोटा समोसा, खस्ता कचोड़ी और शुद्ध देसी घी में बनने वाले कुछ स्वादिष्ट स्नैक तक लोगों के दिल के काफी करीब हैं, जो की काफी कम रेट पर उपलब्ध हैं। कई शताब्दी पुराना बिजनस, धीरे-धीरे और भी मजबूत होता जा रहा है। कई जानी-मानी हस्तियां यहां दस्तक दे चुकी हैं। ख़ासतौर से यहां का कम आलू वाला मसाला समोसा लोग पैकेट में पैक करवा कर ले जाते हैं।

लोकनाथ लेन, चौक, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
दो लोगों के लिए-200 रुपये
दार्जिलिंग
ग्लेनरीज रेस्तराः बेकरी के साथ-साथ रेस्तरां भी, एक इटली वासी द्वारा खोला गया था, जिसका असली नाम वादो था। यह बाद में एक स्थानीय कार्यकर्ता द्वारा खरीद लिया गया, जो यहां का मैनेजर बन गया। ग्लेनरीज सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी है। यहां का डेजर्ट ख़ास है और कई दिलकश व्यंजन जिसमें रोमांचक मीट पीस, सूप, स्टेक, चीज़ बॉल्स, पकौड़ा, फ्राइस, सिज़लर और बहुत कुछ शामिल है। यहां की कॉफी और दार्जलिंग चाय पीना तो बिल्कुल न भूलें। यही नहीं, यहां एक स्टॉक बार भी है, जो कि लोगों की खूब पसंद है।
नेहरू रोड, गणेशग्राम, दार्जलिंग 734101
दो लोगों के लिएः 1000 रुपये
कोलकाता
इंडियन कॉफी हाऊसः इसकी देशभर के कोने-कोने में 400 से भी ज़्यादा ब्रांच हैं, जिसमें से पहली ब्रांच मुंबई में खुली है। 1940 के दशक में देशभर में इसके करीब 50 आउटलेट थे। यही नहीं, कलकत्ता में ही इसकी कई ब्रांच है, जिसमें सबसे उल्लेखनीय कॉलेज स्ट्रीट को मिलाकर, जादवपुर, मेडिकल कॉलेज और सेंट्रल अवेन्यू हैं। कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट वाला कॉफी हाउस सबसे पुराना है। यहां रविंद्रनाथ टैगोर, अमर्त्य सेन, मन्ना डे, सत्यजीत रे और कई हस्तियों ने कॉफी- चाय के साथ ऑमलेट और कटलेट का स्वाद लेते हुए कई आइडिया शेयर किए।
15, बंकीम चटर्जी स्ट्रीट, कॉलेज स्ट्रीट, कोलकाता
दो लोगों के लिएः 400 रुपये
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शिलांग
दिल्ली मिष्ठान भंडारः यह व्यस्त पुलिस बाजार के बीच स्थित है। यह अनूठी छोटी शॉप 1930 से छोले भटूरे, कटलेट, गुलाब जामुन, लस्सी और बहुत कुछ सर्व करती आ रही है। यही नहीं, दुकान पर शानदार जलेबी का एक अलग सेक्शन बना हुआ है, जिस पर लोगों की अच्छी-खासी भीड़ देखी जा सकती है। 2008 में विश्वभर में सबसे बड़ी जलेबी बनाने के लिए शॉप गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुकी है।

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक,“ 75 इंच की चौड़ाई वाली 15 किलो की जलेबी को पांच कुक द्वारा स्थानीय हलवाई दिल्ली मिष्ठान भंडार ने बानाया, जो कि शिलांग के पुलिस बाज़ार में सबसे पुरानी दुकान है।”
होटल सेंटर पॉइंट के पास, पुलिस बाज़ार, शिलांग
दो लोगों के लिएः 400 रुपये
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