
नई दिल्ली:
रोज़ बढ़ते प्रदूषण और ट्रैफिक से पूरी दिल्ली परेशान है। यहां तक की आस-पास के इलाके भी प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं। बड़े-बूढ़े और छोटे बच्चे इसके कारण कई बीमारियों से घिरे हुए हैं। इसमें अस्थमा, सांस लेने में परेशानी, ब्रॉन्काइटिस, स्नोफीलिया जैसी कई समस्याएं शामिल हैं। यहां तक की गर्भवती महिलाएं भी प्रदूषण से घिरी हुई है, जो जन्म लेने वाले बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। दूषित पर्यावरण और लोगों की बढ़ती परेशानियों को देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक शोध किया है। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव दुनिया का सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरा है, जिसका असर आने वाली कई पीढ़ियों तक बना रह सकता है।
जी हां, आपने सही पढ़ा है। सिर्फ आप ही को इससे समस्या नहीं है, बल्कि आपकी आने वाली पढ़ी को भी इससे खतरा हो सकता है। नए अनुसंधान बताते हैं कि इसके दुष्प्रभाव ‘कई पीढ़ियों’ तक बने रह सकते हैं। आपको बता दें कि यह बात सिर्फ आपके लिए चिंताजनक नहीं है, बल्कि प्रदूषण विशेषज्ञों तथा चिकित्सकों के लिए भी चिंता का विषय बन गई है। सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल ऐंड एन्वायरनर्मेंटल हेल्थ के निदेशक टी. के. जोशी ने बताया कि “यह तथ्य अमेरिका के नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायरनर्मेंटल साइंसेस (एनआईईएचएस) द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया है।”
जोशी बताते हैं कि “नए अनुसंधान ने हम सबको हिलाकर रख दिया है। इसके मुताबिक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर कन्या भ्रूण के जीन में बदलाव आ जाता है। ये परिवर्तन ऐसे होते हैं, जो केवल उस तक सीमित नहीं रहते। इसका प्रभाव आगे की कई पीढ़ियों पर पड़ता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति के बच्चे, नाती-पोते भी इससे प्रभावित होंगे। जीन में आए परिवर्तन को सुधारा नहीं जा सकता। इस पर अभी नियंत्रण नहीं पाया गया, तो हम अस्थमा, कैंसर और मस्तिष्काघात जैसे कई रोगों को जन्म देंगे। और आपको बता दें कि इन सभी बीमारियों का कोई इलाज हमारे पास नहीं होगा।”
ये तथ्य पूरी दुनिया पर लागू होते है। लेकिन दिल्ली जैसा शहर जहां प्रदूषण का स्तर काफी ज़्यादा है, वहां के निवासियों को ज़्यादा खतरा है। आईआईटी दिल्ली के प्रो. मुकेश खरे कहते हैं कि हालिया अनुसंधान में घर की भीतरी वायु में प्रदूषण का तथ्य ज़्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि गर्भवती महिलाओं समेत कुछ लोग घर के भीतर ज़्यादा वक़्त गुजारते हैं। इसके अलावा शहरों में घर के भीतर की वायु पर ज़्यादा अनुसंधान नहीं हुए हैं। बाहरी हवा के जैसे मानक भीतरी हवा के लिए भी होने चाहिए। दिल्ली दुनिया का 11वां सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर है।
(इनपुट्स भाषा से भी)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
जी हां, आपने सही पढ़ा है। सिर्फ आप ही को इससे समस्या नहीं है, बल्कि आपकी आने वाली पढ़ी को भी इससे खतरा हो सकता है। नए अनुसंधान बताते हैं कि इसके दुष्प्रभाव ‘कई पीढ़ियों’ तक बने रह सकते हैं। आपको बता दें कि यह बात सिर्फ आपके लिए चिंताजनक नहीं है, बल्कि प्रदूषण विशेषज्ञों तथा चिकित्सकों के लिए भी चिंता का विषय बन गई है। सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल ऐंड एन्वायरनर्मेंटल हेल्थ के निदेशक टी. के. जोशी ने बताया कि “यह तथ्य अमेरिका के नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायरनर्मेंटल साइंसेस (एनआईईएचएस) द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया है।”
जोशी बताते हैं कि “नए अनुसंधान ने हम सबको हिलाकर रख दिया है। इसके मुताबिक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर कन्या भ्रूण के जीन में बदलाव आ जाता है। ये परिवर्तन ऐसे होते हैं, जो केवल उस तक सीमित नहीं रहते। इसका प्रभाव आगे की कई पीढ़ियों पर पड़ता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति के बच्चे, नाती-पोते भी इससे प्रभावित होंगे। जीन में आए परिवर्तन को सुधारा नहीं जा सकता। इस पर अभी नियंत्रण नहीं पाया गया, तो हम अस्थमा, कैंसर और मस्तिष्काघात जैसे कई रोगों को जन्म देंगे। और आपको बता दें कि इन सभी बीमारियों का कोई इलाज हमारे पास नहीं होगा।”
ये तथ्य पूरी दुनिया पर लागू होते है। लेकिन दिल्ली जैसा शहर जहां प्रदूषण का स्तर काफी ज़्यादा है, वहां के निवासियों को ज़्यादा खतरा है। आईआईटी दिल्ली के प्रो. मुकेश खरे कहते हैं कि हालिया अनुसंधान में घर की भीतरी वायु में प्रदूषण का तथ्य ज़्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि गर्भवती महिलाओं समेत कुछ लोग घर के भीतर ज़्यादा वक़्त गुजारते हैं। इसके अलावा शहरों में घर के भीतर की वायु पर ज़्यादा अनुसंधान नहीं हुए हैं। बाहरी हवा के जैसे मानक भीतरी हवा के लिए भी होने चाहिए। दिल्ली दुनिया का 11वां सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर है।
(इनपुट्स भाषा से भी)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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