फिल्म ब्रदर्स में अक्षय और सिद्धार्थ
मुंबई:
इस फ़िल्मी फ्राइडे रिलीज़ हुई है अक्षय कुमार और सिद्धार्थ मल्होत्रा की 'ब्रदर्स'। 'ब्रदर्स' का निर्माण किया है धर्मा प्रोडक्शन और एंडेमॉल ने और इसका निर्देशन किया है करण मल्होत्रा ने। 'ब्रदर्स' हॉलीवुड फ़िल्म 'वॉरियर्स' की हिंदी रीमेक है। फ़िल्म के मुख्य किरदार हैं जैकी श्रॉफ़, अक्षय कुमार, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जैकलीन फ़र्नांडिस, आशुतोष राणा, किरण कुमार, कुलभूषण खरबंदा, शेफ़ाली शाह और फ़िल्म में मेहमान भूमिका निभाई है करीना कपूर के। ब्रदर्स कहानी है दो सौतेले भाइयों की। जो बॉक्सर हैं। एक ऐसा वक्त आता है इनकी जिंदगी में कि इन्हें एक दूसरे के खिलाफ़ बॉक्सिंग रिंग में उतरना पड़ता है।
बात फ़िल्म की ख़ामियों और खूबियों की। 'ब्रदर्स' की कहानी बहुत छोटी है और उसे फैलाने पर वो ढ़ीली हो जाती है। ये फ़िल्म फ्लैशबैक और छोटे-छोटे सीन्स यानी मोंटाज का एक जमावड़ा सा है। ये सीन्स दर्शकों की भावनाओं का छू नहीं पाते।
पहले भाग में दर्शक इंटरवल का इंतज़ार करते रहते हैं और जब लगता है इंटरवल आ सकता है तभी एक गाना आता, 'मेरा नाम मैरी है' ये गाना फ़िल्म को और लंबा खींचता है। साथ ही गाने की कोरियोग्राफ़ी में कोई दम नहीं। गाना शीला, मुन्नी, पिंकी के बाद फीका दिखता है साथ ही सोचने पर मजबूर करता है कि अभी और कौन-कौन से नाम बचे हैं जिनपर गाने बनने बाक़ी हैं।
पहले भाग में फ़िल्म बिखरी हुई दिखती है, कहानी के मोड़ का अंदाज़ा आप पहले ही लगा सकते हैं। फ़ाइट के खेल को दमदार और पर्दे पर भव्य दिखाने के लिए जिस तरह कॉमेंट्री का इस्तेमाल किया गया वो कुढ़ाती है।
ये थीं फ़िल्म की ख़ामियां। बात करें खूबियों की तो सबसे पहले बात अदाकारी की जिसमें बाज़ी मारती हैं शेफ़ाली शाह, दूसरे नंबर पर जैकी श्रॉफ़ और फिर सिद्धार्थ मल्होत्रा। पूरी फ़िल्म में अभिनय की बात करें तो ये तीन पर्दे पर उभरकर आते हैं। फ़िल्म के दो गाने 'सपना जहां', 'गाये जा' अच्छे लगे। फ़िल्म के क्लाइमैक्स का इमोशनल एंगल और इसके अलावा तीन चार सीन्स दर्शकों के अंदर जज़्बा जगाने में कामयाब होते हैं।
'ब्रदर्स' की सिनेमेटोग्राफ़ी ठीक है। फ़िल्म को मेरी ओर से 1.5 स्टार्स.
बात फ़िल्म की ख़ामियों और खूबियों की। 'ब्रदर्स' की कहानी बहुत छोटी है और उसे फैलाने पर वो ढ़ीली हो जाती है। ये फ़िल्म फ्लैशबैक और छोटे-छोटे सीन्स यानी मोंटाज का एक जमावड़ा सा है। ये सीन्स दर्शकों की भावनाओं का छू नहीं पाते।
पहले भाग में दर्शक इंटरवल का इंतज़ार करते रहते हैं और जब लगता है इंटरवल आ सकता है तभी एक गाना आता, 'मेरा नाम मैरी है' ये गाना फ़िल्म को और लंबा खींचता है। साथ ही गाने की कोरियोग्राफ़ी में कोई दम नहीं। गाना शीला, मुन्नी, पिंकी के बाद फीका दिखता है साथ ही सोचने पर मजबूर करता है कि अभी और कौन-कौन से नाम बचे हैं जिनपर गाने बनने बाक़ी हैं।
पहले भाग में फ़िल्म बिखरी हुई दिखती है, कहानी के मोड़ का अंदाज़ा आप पहले ही लगा सकते हैं। फ़ाइट के खेल को दमदार और पर्दे पर भव्य दिखाने के लिए जिस तरह कॉमेंट्री का इस्तेमाल किया गया वो कुढ़ाती है।
ये थीं फ़िल्म की ख़ामियां। बात करें खूबियों की तो सबसे पहले बात अदाकारी की जिसमें बाज़ी मारती हैं शेफ़ाली शाह, दूसरे नंबर पर जैकी श्रॉफ़ और फिर सिद्धार्थ मल्होत्रा। पूरी फ़िल्म में अभिनय की बात करें तो ये तीन पर्दे पर उभरकर आते हैं। फ़िल्म के दो गाने 'सपना जहां', 'गाये जा' अच्छे लगे। फ़िल्म के क्लाइमैक्स का इमोशनल एंगल और इसके अलावा तीन चार सीन्स दर्शकों के अंदर जज़्बा जगाने में कामयाब होते हैं।
'ब्रदर्स' की सिनेमेटोग्राफ़ी ठीक है। फ़िल्म को मेरी ओर से 1.5 स्टार्स.
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